युनिवर्सल बेसिक इनकम और भारत

रवीश कुमार जब प्राइम टाइम मे गैर पालिटिकल और गैर धार्मिक टापिक पर चर्चा करते हैं तो अच्छा करते है और उस समय वायस्ड भी कम होते हैं या होने का स्कोप कम होता है।आज उन्होंने एक नये विषय वस्तु को उठाया ,जो भविष्य मे देश मे विमर्श का विषय बन सकता है" युनिवर्सल बेसिक इनकम"!भारत के लिए यह नया हो सकता है पर विदेशों मे काफी पहले से इस पर चर्चा चल रही थी। इस युबीआई का तात्पर्य है सभी लोगों को एक समान रुप से आय सुनिश्चित करना। कल्याणकारी देश की परिकल्पना है की सभी के लिए सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित किया जाय। आज भी देश मे तमाम तरह के कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना, वृद्धावस्था पेन्शन योजना, विधवा पेंशन,आवास योजना, मध्यान्ह भोजन योजना, बाल पोषाहार सहित शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला, अंत्योदय, गरीबी रेखा से नीचे की योजनाओं जैसी सब्सिडी योजना चालू है। आज जितनी भी योजनाएं चल रही है वो टारगेटेड लाभार्थी परक योजनाएं है अर्थात इसमे लाभार्थी एक निश्चित पात्रता सूची से होते है और उस सूची का निर्माण अधिकारियों /कर्मचारियों द्वारा बनाया जाता है जिसमें पक्षपात, धांधली, मनमानापन और गड़बड़ी की संभावना होतीं है। विभिन्न रिसर्च से ज्ञात होता है कि इन योजनाओं मे पर्याप्त लीकेज है और उसका कारण गलत लाभार्थी चयन है। वस्तुत: युनिवर्सल बेसिक इंकम का कानसेप्ट ही इस चयन प्रक्रिया की अवधारणा को समाप्त करता है। इसमे बिना किसी पक्षपात या डिसक्रिसन के सभी को एक समान रुप से योजना का लाभ दिया जाता है तो इसमे किसी लाभार्थी के बच जाने की संभावना समाप्त हो जाती है। रही बात अपात्रो को लाभ मिलने कि तो आज घरेलु गैस वितरण योजना मे डीबीटीएल लागू होने के बाद करोड़ों द्वारा सब्सिडी छोड़ने के उदाहरण को लिया जा सकता है,अर्थात जिन अमीरो या उच्च मध्य वर्ग को इस बेसिक इनकम की आवश्यकता नही होगी ,वो इसे छोड़ सकते हैं। भारतीय न्याय व्यवस्था की मूल सिद्धांत यह है कि भले अनेक दोषी बरी हो जाय पर किसी निर्दोष को सजा न दी जाय। कहीं न कही यह इसी लाइन पर चलती है कि भले कई अपात्र लाभ ऊठा ले पर कोई पात्र छूट न जाय।अभी लागू योजनाओं मे पात्र छुट जा रहे हैं क्योंकि लाभार्थियों की संख्या निश्चित रखनी होती है, यदि यह सबको इसमे शामिल कर ले तो कोई बचेगा नही। आज हम यह चयन करते हैं कि किसे लाभ देना है। इस बेसिक इनकम मे हम यह देखने लगेंगे ककि कोई लाभ से बच न जाए,जो ज्यादा आसान है।  विदेशों मे और निकट भविष्य मे भारत, चीन, अफ्रीकी देशो मे लगातार बढते आटोमेशन या मशीनीकरण से बड़ी संख्या मे नौकरियां जाने वाली है और काफी लोग बेकार हो जायेंगे, लेकिन  उनको एक न्युनतम जीवन स्तर उपलब्ध कराना कल्याणकारी शासन की जिम्मेदारी भी है। इसमे इस योजना को लागू करने के बाद अनेक प्रचलित कल्याणकारी योजनाएं समाप्त होकर इसमे मर्ज कर जाएगी तो शासन पर ज्यादा आर्थिक बोझ भी नही पड़ेगा।जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना को लें तो इसमें लगभग 75% ग्रामीण जनसंख्या और 50% शहरी जनसंख्या, कुल 69% भारतीय जनसंख्या आच्छादित की गई है तो मात्र 31% भारतीय जनसंख्या अर्थात एक तिहाई जनसंख्या ही बची। इस राखासुयो मे काफी लीकेज है और पात्रता सूची तैयार करने मे बहुत बड़ी धांधली की गई है क्योंकि पात्रता चयन प्रणाली काफी गलत है। गांवों मे इसे चुनने का अधिकार ग्राम प्रधान एवं ग्राम विकास अधिकारी को दिया गया है जिसमें विभाग ने गैर कानूनी तरीके से कोटेदारो को भी शामिल करा दिया। मनमाने तरीके से अपनों को पात्र बनाया गया, चहेतो को रबड़ी बांटी गई, बड़े बड़े कोठी वाले भी गांव मे अपनी पहुंच के कारण पात्र बन गए और  वास्तविक गरीब अपात्र। यह तो सिर्फ एक योजना का हाल है। सभी योजनाओं मे अपात्रो की भरमार है। एक और उदाहरण डीजल पेट्रोल सब्सिडी है जिसका उपयोग सभी अमीर और मध्य वर्ग करता है, गरीबों को इससे कोई लाभ नही, अर्थात यहाँ सरकार गैर गरीब सेक्शन को लाभ पहुंचा रही है तो यदि सभी को सम्मिलित कर दिया जाय तो और बेहतर होगा।युबीआई से पात्र- अपात्र का मसला ही खत्म हो जाएगा।रही बात सबको बेसिक इनकम पहुंचाने की समस्या तो इसमे " JAM" अर्थात जन धन योजना, आधार कार्ड योजना और मोबाइल बैंकिंग के जरिये सभी को सब्सिडी की तरह उसके खाते मे भेजा जाया सकेगा। आज जबसे समाज कल्याण की पेंशन योजना और कृषि विभाग की सब्सिडी सीधे खातो मे भेजी जाने लगी है, भेजने के माध्यम या उसमे लीकेज अर्थात जगह जगह पर कमीशन काटकर पेमैंट करने की समस्या समाप्त हो गई है परंतु जिसके खाते मे जा रहा है वह सही लाभार्थी है या नही, इसकी पुष्टि करने का तंत्र कमजोर या विफल है। युनीवर्सल बेसिक इनकम इस की संभावना ही समाप्त कर देता है। भले ही यह यहाँ के लिए नया है और अभी यहाँ लागू करने मे कोसों दूर सफर तय करना पड़ेगा पर इस पर बहस तो चल ही सकतीं है। ऐसा नही है कि यह योजना आशंका रहित है जैसे न्युनतम धनराशि कितनी होनी चाहिए?इसपर व्यय होनेवाली धनराशि कहाँ से आएगी? हो सकता है निश्चित आमदनी वाले नौकरी पेशा वालों को इसके लिए ज्यादा टैक्स देना पड़े?

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल