पुस्तक समीक्षा - आहिल

बाल मनोविज्ञान पर अनेक कहानियां लिखी गई जिसमें मन्नू भंडारी की " आपका बंटी" सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। बच्चों को लेकर भगवंत अनमोल ने भी उपन्यास " बाली उमर" लिखी है। मेरे कथा संग्रह "बटेसर ओझा" में भी दादी और पोते के संबंध पर  भी एक कहानी कही गई है।  लेखक राहगीर का पहला उपन्यास "आहिल" एक पांच बरस के  ऐसे बच्चे की कहानी है, जिसकी हंसती- खेलती जिंदगी में एक पीर बाबा ने आग लगा दी, जिसने उसके अब्बा को यह समझा दिया कि  कुरान में लिखा है कि अच्छे और सम्मानजनक कार्य दांये तरफ होते हैं और बुरे और घृणित काम बांये तरफ। आहिल का दुर्भाग्य था कि वह वामहस्ती या बांये हाथ से काम करनेवाला था। बस क्या था उसके अब्बा ने अपने घर में होनेवाले हरेक दुर्घटना, ग़लत काम या बुरे काम के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। रोजाना मार पीट ,जलालत, तिरस्कार ने उसे अंदर से क्रूर और दृढनिश्चयी बना दिया।  आहिल राजस्थान के एक छोटे-से गाँव के एक छोटे से घर में जन्मा, पला-बढ़ा लेकिन उसकी दुनिया बहुत अलग थी।

 "गुज़रा कल किसी पागल सांड को छेड़ने में गुज़र गया, आने वाला कल उसके आगे भागने में गुजरेगा," यह टैग लाइन है इस उपन्यास का। आहिल वह बच्चा है जिसकी जिंदगी उतार चढ़ाव से भरी पड़ी है। जो बचपन से ही समय और मजबूरी की मार उसे बेचारा बनने पर मजबूर कर देती है तो सयाने होने पर वो ऐसे घृणित कार्य में लिप्त हो जाता है कि पढ़ते हुए कभी आपको उस के कैरेक्टर से  मोह होगा तो दूसरे ही पल  घृणा हो जाएगी। बाप द्वारा किए जा रहे अत्याचार का बदला वह अपने मासूम छोटे भाई दिवंगत को कुंए में धकेल कर लेता है कि अब  यदि अब्बा के पास कोई आप्शन नहीं होगा तो मुझे ही प्यार करेंगे। लेकिन वह ग़लत था, अब्बा ने क्षणिक आवेश में आकर उसके बुरे कामों के लिए जिम्मेदार बांये हाथ को ही काट डाला। अब वह अपंग था पर उसके सपने, साहस और सोच वैसे ही थे। वह घर छोड़कर निकल जाता है अपनी जिंदगी जीने के लिए। अपने द्वारा उठाए गए गलत कदम पर सोच कर उसके भी कदम कभी कभी डगमगाने लगते हैं। उसे भी अपने पर ग्लानि महसूस होती है, शर्म आती है। लेकिन दूसरे ही  पल वह दूसरों के भोलेपन का फायदा उठाकर उनका शिकार कर वह अपनी आगे की ज़िंदगी ठाट से गुजारने के लिए निकल पड़ता है। वह जानता है कि यदि कुएं में पत्थर फेंकने के मज़े लेने हैं तो कुछ कबूतरों की ज़िंदगी तो हराम करनी ही पड़ती है।" यह आहिल के पांच से पच्चीस वर्ष की कहानी है जिसमें माधव ट्रक ड्राइवर, सेठ, सेठानी, खुशी आदि मिलते जाते हैं और वह उन सबको अपनी सीढ़ी बनाता हुआ आगे बढ़ता जाता है। अंत उसे उसी गांव में ले आता है जहां बाप पागल होकर मर चुका है और मां मौत के कगार पर। उसी कुंए के पास कहानी खत्म होती है जहां उसने अपने छोटे भाई को नीचे धकेल दिया था। 

              राहगीर का कहानी कहने का अंदाज नया और अनूठा है। कहानी के अंदर एक दूसरी कहानी कहते हुए अपनी पात्र को आगे बढ़ाते हैं, जैसे रुदारस की कहानी। उपन्यास में वनलाइनर बहुत सारे है और वे इफेक्टिव भी है जैसे"

 - इंसान प्यार का भूखा होता है, उसे जहां भी प्यार मिलता है, वह खुद को वहाँ बार-बार जाने से रोक नहीं पाता।

-अगर शरीर का एक-एक कतरा खून बहाकर भी आज़ादी मिल पाए तो वह भी कोई घाटे का सौदा नहीं है

-कभी-कभी किसी का एक पल में लिया फैसला दूसरों की पूरी ज़िंदगी की कहानी बदल देता है।

-कैसे किसी की ज़िंदगी एक पल में बदल जाती है और कोई अपनी पूरी ज़िंदगी एक ही बुलबुले जितने संसार में बिता देता है

--एक-दो-साल के अकाल के बाद हुई बरसात में नदियों के पानी को पुराने रास्ते तलाशने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

--जब सपने आदमी को डराने लगें तो वह हकीकत का ही दामन थामता है

-कोई भी अपनी खोई चीज़े वापस नहीं पाता है, कम-से- कम जिस हालत में कोई उस हालत में तो बिल्कुल भी नहीं

-कभी-कभी एक छोटा सा झूठ लोगों को पूरी ज़िंदगी काटने में मदद देता है।

-पीछे की ज़िंदगी में मिले सारे दुख आगे मिलने वाले रोमांच के लिए चुकाई कीमत होती है और कुछ नहीं।

-ज़िंदगी इतनी मनमौजी है कि कभी-कभी आदमी अपने ही लोगों में खुश नहीं रह सकता, लेकिन अजनबियों से उसे खुशी मिल जाती है।

-जिन आँखों को हजारों चमकते सूरज भी चौंधिया नहीं पाते, वो अक्सर कुछ चमकते सिक्कों से अंधी हो जाती हैं।

-कभी-कभी आदमी को ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए गलत काम करने ही पड़ते हैं।

-ज़िंदगी में एक ऐसा वक्त आता है कि झूठे दोस्त पीठ नहीं दिखाते, सीधा गायब हो जाते हैं।

-गलत करने पर अपने ज़मीर की आवाज को दबाने ले लिए हर इंसान दूसरों के गुनाहों के बारे में भौंकने लगता है।

-कुछ लोगों की किस्मत इतनी खराब होती है कि उन्हे पूरी ज़िंदगी एक ही जगह, एक ही रूटीन में बितानी पड़ती है और उससे भी दिलचस्प बात यह है कि वो उसी में खुश रहते हैं।

         वैसे इस उपन्यास में खुशी की कहानी का कोई स्कोप बनता नहीं है फिर भी लगता है राहगीर ने जैसे उसे जबरदस्ती किसी असल से ठूंस दिया है। कहानी को यदि राहगीर ने ट्रक के एक्सीडेंट के बाद कुछ और मोड़ दिया होता या उसी समय भटकते हुए आहिल को गांव तक पहुंचा देते तो भले ही यह कम मोटी होती परंतु मेरी नज़र में ज्यादा इफेक्टिव होती। इन कमियों के बावजूद यह उपन्यास पढ़ने योग्य है । बाल मनोविज्ञान को अच्छे से पकड़ा है राहगीर ने। कहानी के माध्यम से  यह अच्छा संदेश भी देने की कोशिश की है सबको रुदारस टाईप के मक्कार और फरेबियों से बचकर रहना चाहिए। उसकी पहचान उजागर करनी चाहिए वरना जब सबकुछ लुटा जाएगा तो पहचान कर भी क्या करेंगे? हिंदयुग्म प्रकाशन से प्रकाशित यह उपन्यास अपने ट्रीटमेंट के कारण लोकप्रिय हो रही है। वैसे भी राहगीर की अपनी फैन फालोइंग है जो उसके गीतों और कविताओं से बनी है।



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