साहब और आफिस की पालिटिक्स..

तो मित्रो!जो भाग्य के सांढ थे वो आज दफ्तरों मे साहब बने पड़े है पर उनकी अफसरीयत तेल लाने चलीे जाती है जब सुपर क्लास बाबू अर्थात टाप क्लास के अफसर ,जो किसी दफ्तर या सरकारी आफिस को अपनी मिल्कियत समझते हुए वहाँ प्रवेश तो करते हैं पर  वहाँ राज नही कर पाते! बडे अरमान थे पर अरमानो का हश्र इस कदर जाया होगा, सोचा न होगा।भले ही मुगालते मे रहें कि मै इस आफिस का बास हूं जो " दिल को बहलाने के लिए तथा तबीयत बहलाने के लिए अच्छा भी है, वरना उस समाज को मुंह क्या दिखा पायेंगे ,जहाँ रौब गांठ कर आये हैं कि साला मै तो साहिब बन गया। क्या वो वहाँ बता पायेंगे कि टाप क्लास की परीक्षा को पास कर बने इस अफसर को उस आफिस का बाबू, सहायक और चपरासी चरा रहा है या यूँ कहे कि अपने हिसाब से काम करा लेता है।सरकारी आफिस एक ऐसी पवित्र संस्था है जिसने अपने शाश्वत स्वरूप को अक्षुण्ण रखते हुए मैंगो पीपुल का विश्वास क़ायम रखा है कि आम खाने को मिलता है तो खाओ पर गुठली न गिनो"! रेड टेपिज्म को अपना जीवन धर्म बनाये हुए कभी भी सीधे से कोई काम न करने की कसम खा रखी है। वैसे कार्यालय उसे कहते हैं जहाँ कार्य किया जाता है, पर यह नियम इन पर लागू नही होता, यह आफिस है है जहाँ या तो काम ऑफ होता है या काम समय ऑफ होने के बाद होता है या ऑफ दि रिकार्ड होता है।किसी भी आफिस मे एक ट्रायंगिल बना होता है साहिब, बाबू और चपरासी और इनके मध्य फरियादी या जनता त्रिशंकु के भांति लटकता रहता है।त्रिकोण मे  साहब इसी मुग़ालते में जीत रहते हैं कि पूरा ऑफिस उनके कण्ट्रोल में है और यह उनका साम्राज्य है जिसमे राजगद्दी पर बैठे वो शासन सत्ता संभाले है। उनकी स्थिति मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की तरह होती है जो लाल किले मे सिमटे साम्राज्य के शासक थे और दिनभर गजलें लिखा करते थे।उन्हें लगता है कि आफिस मे क्या चल रहा है ,उसे खबर है पर यह भ्रम होता है क्योंकि उसके आंख नाक और कान तो बाबू और चपरासी, अर्दली ही तो हैं जो वही दिखाते सुनाते हैं जो वे दिखाना सुनाना चाहते है।अगर साहब ईमानदार हों तो ये मुग़ालता पाल लेतें हैं कि उनके ज्वाइन करते ही समस्त भ्रष्टाचार स्वयं ऑफिस से बाहर चला गया है।वैसे इस प्रकार के विलुप्त प्राय प्रजाति को फील्ड मे खुला नही छोड़ा जाता बल्कि इनके संरक्षण पर सरकार खास ध्यान देती है और उन्हें सम्मान पूर्वक सचिवालय के हाई प्रोटेक्टिव एरिया मे किसी तल पर बने कमरो मे सुशोभित कराती है। जाहिर है फील्ड के साहब खुद ऊपरी कमाई के शौक़ीन होंते हैं और सोचते हैं कि सबसे शातिर और सबसे अधिक कमाई करने वाले पूरे ऑफिस में बस वही एक हैं। साहबों के लिए मुग़ालते पालते रहना उनके अस्तित्व  व स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, अन्यथा अफसरीयत व साहबी का मतलब ही क्या रह गया?यदि इस विधा का ज्ञान उन्हें नही है तो नौसिखिये साहबों को मुग़ालते पालना सिखा दिया जाता है।राजदरबार के भांड कवि की तरह सत्ता संभालते ही चपरासी और बाबू रुपी कवि यशोगान मे लग जाते हैं। "आपने तो सबकी हवा टाईट कर दी है, आपके आने के बाद तो ये तीर मारा गया, वो कारनामा किया गया, आज से पहले इस कुर्सी पर इतना, सज्जन, सुशील, मृदुभाषी, अनुशासन प्रिय और कर्मठ तो बैठा ही नही, आपने तो आते ही माहौल ही बदल दिया है।" साहब फूल के कूप्पा! साहब  को पकड़ के केले के झाड़ पर चढ़ा दिया।"जितना काम आपने साहब सात दिन में कर दिखाया इतना तो पिछले साहब सात साल में नहीं कर पाये।"ये कुछ डोज है जो स्टेनो, अर्दली और चपरासी साहब लोगों को सुबह शाम देते रहते हैं और रोज़ाना चार डोज़ के बाद सात दिन में साहब को अपनी साहबी में इस कदर यकीन हो जाता है कि वे मान लेते हैं कि उनके सिवा 'न भूतो न भविष्यति'।अर्दली अन्य लोगों के लिए साहब के पास पहुंचने के मार्ग  जितना दुर्गम करेगा ,उसका महत्व उतना ही उसका महत्व बढेगा। इस नियम का पालन करते हुए वो साहब को तेल लगाता है और लोग साहब से मिलने के लिए उसको तेल लगाते हैं। कोई मिलने पहूंचा तो बोला " साहब अभी बिजी है भले ही साहब अंदर फेसबुक पर बैठे हों या व्हाट्स एप पर चैटिंग कर रहे हों। साहब के लगातार बिजी होने की बात कहने पर साहब और अर्दली ,दोनो का वजन बढता है। साहब खलिहर नही हैं।साहब को पटाने के उसे बहुत गुर आते है। अर्दली, चपरासी, यहाँ तक की साहब का ड्राइवर भी अपनी डींगे हांकने मे होड़ लगाते हैं" ऐसे साहब तो आते जाते रहते हैं ,हम तो परमानेंट हैं। जितने उमर के ये साहब होंगे उतने साहब तो तो हमने ट्रेन पर बिठा के मद्रास छोड़ दिया। इ का बतियायेंगे, इन्हें तो हम बताते हैं तो कलम पकड़ना आया है, । सबमे बिजली की गति से काम कराने का भरोसा दिलाने की होड़ मची होती है।चपरासी सबसे कुशल साइकोलोजिस्ट होता है। उसे पता होता है कि आज साहब का मूड कैसा है? आज आफिस मे चिल्लायेंगे या आसानी से फाइल कर देंगे! आज मत मिलो मूड ठीक नही, मेम साहब से बाताबाती हो गई है, आज सामने पड़ोगे तो डांटा जाओगे! साहब भी अपनी सारी बात अपने अर्दली से शेयर करते हैं और उसका कहना भी ज्यादातर नही टालते। कब साहब के कुर्सी के सफ़ेद तौलिये को बदलना है, बाथरूम मे कौन से फ्लेवर का फ्रैशनर डालना है,साहब को कितनी कितनी देर पर चाय पीनी है,कब मेम साहब से फोन पर बात करना है, साहब गाडी में साथ कौन सी डायरी और फ़ाइल ले जाना चाहते है,आज कितने बजे घर वापस लौटना है, आज छोटी वाली साली को लेने एयर पोर्ट जाना है ,यह आटोमेटिकली उसे पता होता है और उसकी काबिलियत की निशानी है जो एक जाने वाला साहब जाते वक्त आने वाले साहब को उसके बारे मे बता के जाता है! इसने मेरा बड़ी अच्छे तरीके से ख्याल रखा ,आपका भी रखेगा! यहीं पर इंट्रोडक्शन हो जाता है।साहब कभी अपने अर्दली और ड्राइवर से नही गुस्साते , यदि गुस्साये भी तो तुरंत मना भी लेते हैं। अरे! उनकी गाड़ी का सारथी होता है, कहीं भी ठोक देगा, भिड़ा देगा, आखिरकार जान का सवाल है, रिस्क लेना ठीक नहीं।कभी आप रात बिरात सुनसान रास्ते से जा रहे हों अचानक गाड़ी खराब कर देगा, कहेगा उतर कर धक्का लगाओ। कोई विकल्प नही होगा। और अर्दली तो कही भी कुछ भी खिला देगा, वही लटक गये। साहब इनसे अच्छा संबंध मेनटेन करते है। तो आफिस का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है, स्टेनो या क्लर्क जो सरकारी ऑफिस का इंजन होता है।कहते हैं क्लर्क का प्रादुर्भाव ब्रह्मा के भी पहले हुआ था क्योंकि ब्रह्मा के जन्म की फ़ाइल भी आसमानी क्लर्क चित्रगुप्त महाराज के पास मिल जाएगी। ये कलम के जादूगर होते हैं, अरे मै प्रेमचंद जी की बात नही कर रहा। ये "होनी को अनहोनी कर दे, अनहोनी को होनी कर दे" जैसी अद्भुत शक्ति के स्वामी होते हैं। अरे इनके कलम के मारे तो आज तक पानी मांग रहे है। कई तो अभी तक अपने को जिंदा साबित करने मे लगे हुए है पर हो नही पा रहे। तो ऐसे बाबू से कौन टकराये?यदि साहब के पक्ष मे खड़ा हो जायें तो कैसी भी टिकलिस फाइल को चुटकियो मे क्लीयर कर दे और घुमाना चाहे तो साहब को नानी याद आ जाएगी, ऐसे ऐसे शासनादेश और व्याख्या नोट शीट पर ले आयेंगे की साहब की कलम उस के इशारों पर नाचती हुई लिखने लगती है।यदि वो गुस्सा गये या उनकी भृकुटि तन गई तो उच्चाधिकारियो या अन्य विभागों के सामने आपको बेइज्जत होने से कोई बचा नही सकता। ऐन मौके पर कहेगा" आज सुचना नही बन पायी, मेरी तबीयत ठीक नही! अचानक सी एल ले लेगा और कहेगा ये तो मेरा अधिकार है! ऐन मौके पर कंप्युटर खराब कर देगा! आप क्या कर लेंगे? यदि कोई काम कराना हो तो उनकी व्याख्या सुनिए"महोदय को फलां अधिनियम की फलां धारा में ऐसी शक्तियां प्राप्त हैं"। अब यदि जाम्बंत जी हनुमान जी को उनकी छुपी क्षौर भूली हुई शक्ति याद दिलाने पर उतारू हो जाय तो हनुमान जी की मजाल है कि वो समुद्र लांघने और लंका जलाने से इंकार कर दे।  अगर साहब  ज्यादा सवालों मे उलझे तो" महोदय! स्वयं अध्ययन कर निर्णय करने में सक्षम हैं"। इसके बाद तो साहब पानीपत के मैदान मे हथियार डालने के लिए ही उतरता है।वैसे साहब फाइल करने के लिए अपनी सेटिंग बनाने के लिए वहाँ उपलब्ध जीवों मे से किसी न किसी को माध्यम बनाता है और ऐसी फाइलों का निपटारा साहब के आवास पर होता है।इसी माध्यम बनने की होड़ मे सारा महाभारत हो जाता है।भले साहब जब आउटडोर शुटिंग पर होते हैं तो ड्राइवर और अर्दली की चल जाये पर वहाँ भी उनकी हरकतों पर क्लर्क या स्टेनो की संजय दृष्टि लगी होती ,कहीं उनके विरूद्ध कान न फूंका जा रहा हो! आफिस रुपी कुरुक्षेत्र मे साहब रुपी धृतराष्ट्र को वही दीखता है जो संजय रुपी स्टेनो दिखाता है। ऑफिस में वर्चस्व की लड़ाई में सब एक दूसरे को धरने के उपाय खोजते हैं । सभी साहब के सामने सुर्खुरु बनने की कोशिश करते है, एक दूसरे की चुगली करते है, कभी कोई मंथरा तो कोई शकुनि का रोल प्ले करता रहता है और इन सबके मध्य साहब कभी कृष्ण बनकर मंद मंद मुस्कुरा रहा होता है तो कभी अपना सर पीट रहा होता है।" साहब आपके नाम पर पैसा लूटा जा रहा है, स्टेनो साहब ने साहबो को चूना लगाकर बिल्डिंग खड़ी कर ली है, लक्जरी कार मे चल रहे हैं, बच्चों को बड़े शहरों मे पढ़ा रहा है, इतना कमा रहे हैं किसके नाम पर? आपके! उधर स्टेनो आकर आग लगाता है" साहब ! उसको समझा दीजिए ,बड़ी बदनामी हो रही है, फाइल कराने और आपसे मिलाने के नामपर उसने फलाना से पैसा ऐंठ लिया है! साहब मन ही मन इठलाते हैं कि सब एक दूसरे की कमी उसे बता रहे हैं। पर ये ड्राइवर, अर्दली और स्टेनो साहब अपने उपरी कनेक्शन को भी बताने से नही चुकते ! इसमे छुपी धमकी भी होतीं है कि हमको छूआ तो आपकी खैर नहीं! साहब के सामने जब होंगे तभी ही उनको मंत्री जी, विधायक जी का फोन आएगा। वैल्यू बढाने के लिए। साहब बड़े अच्छे रिश्ते है, पिछले दिनो ही घर पर खाना खाने आये थे, जगराता और भंडारा मे। आपका कोई काम हो तो बताईएगा। यह इन डायरेक्ट चेतावनी है कि आपका काम तो नही होगा पर टेनी मेनी किया तो आपको चलता करने मे देरी नही होगी।वस्तुतः आफिस एक बस  के समान होता है जिसमें ड्राइवर कंडक्टर परमानेंट होते है और साहब पेसेंजर जो आते है और जाते रहते हैं।साहब मनुष्य की तरह नश्वर है,इसलिए जहाँ उसने उन महान विभूतियों को छेड़ा कि वे सक्रिय हो जाते हैं और उनके आका उन निरीह साहबों को किसी अन्य चारागाह मे या तल पर भेज देते हैं। चपरासी , अर्दली, ड्राइवर आत्मा की तरह शाश्वत है जो उसी आफिस मे रिटायर पर्यन्त बने रहेंगे, नश्वर शरीर दूसरे साहब के रुप मे जन्म लेकर आयेगा और फिर वही प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी।

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