तलाक के बहाने चुनावी रोटियां....

तलाक के बहाने मुस्लिम महिला के अधिकार, बहुविवाह और कामन सिविल कोड काफी पहले से विमर्श का विषय बना रहा है।मुस्लिम महिलाओ के समानता के अधिकार को संविधान भी समर्थन करता है और आज प्रधानमंत्री ने भी वाराणसी मे समर्थन दिया। पर क्या मुस्लिम समाज इच्छुक है? क्या वह अपने धर्म से उपर देश के संंविधान को मानती है?क्या देश मे अल्पसंख्यक के नाम पर प्राप्त स्पेशल स्टेटस छोड़ने को तैयार है जबकि किसी भी मुस्लिम कंट्री से ज्यादा मुस्लिम यहाँ रहते है!  शाहबानो केस के बहाने एक बार मुस्लिम समाज आंदोलित हो चुका है ,आज शायराबानो के बहाने है, उपर से कोढ मे खाज की देश मे भाजपा सरकार सत्ता रुढ है, जिसपर पहले से ही संघ समर्थक और मुस्लिम विरोधी होने का टैग लगा है। फलत: देश का टेम्परेचर बढना स्वाभाविक है। देश के सबसे बड़े राज्य उतरप्रदेश मे चुनाव होने है तबतो ऐसे मुद्दे सुर्खियों मे आना लाजिमी है।शायराबानो केस ने बैठे बिठाये राज्य मे ध्रुवीकरण का माहौल बनाने का मौका दे दिया है और इसी तपन मे राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है, पर केस का दर्द तो वाजिब है ना?बहुत पहले एक फिल्म बनी थी" निकाह" जिसका नाम "तलाक तलाक तलाक " रखा जाने वाला था,पर निर्देशक बी आर चोपड़ा इसका नाम सकारात्मक रखना चाहते थे और इसीलिए बाद मे निकाह रखा गया।जाहिर है तलाक को समाज मे बुरी नजर से देखा जाता है। हालिया तलाक संबंधी विवाद देहरादून की एक महिला शायरा बानो के द्वारा सुप्रीम कोर्ट मे दाखिल वाद से संबंधित है जिसमें उसने अपने पति द्वारा फोन पर दिये गए ट्रिपल तलाक ।इस तलाक के मुद्दे ने  सियासत में उफान ला दिया है।असल मे सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध मे कुछ टिप्पणी की और कानून मंत्रालय ने मुस्लिम पर्सनल बोर्ड सहित त अन्र लोगों से प्रश्नावली भेज कर रायशुमारी करनी चाही। बस बबाल तो उठना ही था, शाहबानो केस के समय तो कांग्रेसी सरकार थी पर आज केन्द्र मे भाजपा सरकार है जिसपर पहले से ही अल्पसंख्यक विरोधी होने का टैग लगा है, बस क्या था? ठन गई है सेक्यूलर फोर्स व नान सेक्यूलर फोर्स के मध्य! जहां मुस्लिम शरीयत कानून के अनुसार तलाक को जायज ठहरा रहे हैं, वहीं केंद्र कानून मंत्रालय इस पर सवाल खड़े कर रहा है। तलाक मे शरीयत के अनुसार कोई भी मुस्लिम पति अपनी पत्नी से सिर्फ तीन बार तलाक कहकर रिश्ता तोड़ सकता है।परंतु कुछ शर्तो के साथ! तलाक तीन बार कहे जाने हैं और उन तीन तलाको के मध्य दो मासिक धर्म का अंतराल होना चाहिए। इसके पीछे उद्देश्य था, सोचने समझने के वक्त देने का। तलाको की कैटिगरी बनायी गई है जिसमे अच्छा या बुरा है। लगातार एक साथ तलाक की अनुमति नही है शरीयत मे ,पर  यह व्यवहार मे है, जिसे बुरा तलाक कहा जाता है। मुस्लिम समाज सेविका शाइस्ता अंबर का कहना है कि हमारा विरोध ट्रिपल तलाक को लेकर है, हम यह चाहते है कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम ला बोर्ड के उस कानून को अवैध घोषित करे जिसमें कोई एक साथ तीन तलाक बोलकर शादी से पत्नी को बाहर कर देता है।एकसाथ बोले गए तलाक को एक माना जाय। शरीयत फोन, मोबाइल या ईमेल द्वारा दिए गए तलाक को भी मान्यता नही देता। कठोर नियमों के चलते मुस्लिमों मे तलाक की दर कम है।इससे भी दिलचस्प तथ्य यह  है  कि भोपाल में जहां पिछले चार साल में एक भी मुस्लिम पति ने तीन बार तलाक कहकर रिश्ता नहीं तोड़ा, । यह जागरूक और समझदार समाज की निशानी है।वहीं मुस्लिम पत्नियों ने ‘खुला’ कदम उठाकर तलाक की अर्जियां शरिया कोर्ट में दाखिल कीं।इस्लाम में पति पत्नी दोनों को बराबर का हक दिया गया है अगर हम शादी की ही बात करें तो निकाह के समय लड़का लड़की के पास अपने निकाह का प्रस्ताव ले कर जाता है अब ये लड़की पर निर्भर करता है के वो लड़के के प्रस्ताव को स्वीकार करे या न करे यहाँ लड़की का हक ज़्यादा है उस के पास पूरा अधिकार है के वो लड़के के प्रस्ताव को माना भी कर सकती है .।इस प्रकार शादी के बाद लड़के की ज़िम्मेदारी होती है के वो अब शादी को निभाये इस लिए तलाक लड़का दे सकता है । लेकिन मुस्लिम धर्म मे महिलाओं को तलाक लेने के लिए तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं। कुछ दिन पहले काश्मीर मे लगभग 40 महिलाओं ने शरीयत बोर्ड मे तलाक के लिए अप्लाई किया क्योंकि उनके पतियों द्वारा नशे मे धूत्त रहकर शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक उत्पीड़न करते थे। उन्हे तलाक मिला पर लड़के जो एक झटके मे तीन तलाक बोलकर तलाक प्राप्त कर लेते है, वो अधिकार उनके पास नही है। इतना ही नही निकाह मे मेहर भी इतना कम रखा जाता है, जिससे तलाक के बाद उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिल सके।वैसे आम तौर पर देखा गया है मुस्लिम पति अन्य धर्मो की तुलना में बहुत कम तलाक देते है।अगर हम धर्म के आधार पर तलाक की बात करें तो 2011 के सर्वे में पाया गया है के 68% हिन्दू परिवारों का रिश्ता तलाक से टुटा है वही मुसलमानों में ये आंकड़ा केवल 23% ही है इसकी एक वजह शरीयत कानून का मज़बूत होना है क्योकि अल्लाह को सब से ना पसंद काम तलाक है।तलाक सबसे अंतिम विकल्प है। एक सर्वे मे मुस्लिम महिलाओं मे से लगभग 83.6 % ने लगातार तीन तलाक बोले जाने को अवैध माना है साथ ही 90% ने काजियों पर इस संबंध मे अंकुश लगाने की बात कही। शरीयत के अनुसार लगातार तीन तलाक को एकबार बोले जाने पर एक ही माना जाना है । महिलाओं द्वारा इद्दत की अवधि गुजारना अनिवार्य है, यदि महिला पेट से हो तो तलाक मान्य नही होता। इस्लाम तलाक के खिलाफ इस कदर है कि उसने तलाक पश्चात पुनः उसी महिला से शादी करने से पहले हलाला नियम से गुजरना होता है अर्थात पहले वो किसी और से शादी करे, फिर तलाक दे तब फिर निकाह कर सकता है । अपनी पत्नी को किसी और के साथ सोते हुए देखना ,बहुत बड़ा दंड है। जाहिर है यह तलाक को रोकने और उसे सोच समझकर देने के लिए ही लगाया गया है। सबसे बड़ा विवाद फोन पर तलाक, मैसेज पर तलाक, मेल से तलाक और एकबार मे ही तीनो तलाक बोलने से उठा है। 90% महिला इसको गलत मानती है। शरीयत मे इसका जिक्र नही हो सकता है अर्थात ऐसे तलाक शरीयत के विरूद्ध है। दूसरा प्रशन यह उठता है कि बड़े बड़े मुस्लिम देशों ने इस ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया है तो फिर यहाँ भारत मे क्यों लागू है। मूल कारण राजनीति है। यहाँ कानून का शासन है और संविधान सर्वोपरि है फिर भी समान नागरिक संहिता लागू नही है।हालाँकि तलाक को लेकर सुन्नी समुदाय में कई मत हैं। शिया समुदाय में तीन बार क्या, तीन लाख बार भी 'तलाक' बोलने से तलाक नहीं होगा क्योंकि शिया लोगों मे लागू किए जाने वाले मॉडर्न निकाहनामा में पति और पत्नी को बराबरी का हक दिया गया है। यही नहीं महिलाओं को भी तलाक का अधिकार दिया गया है।दो साल तक पति या पत्नी यदि जिंदगी की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं तो उसे तलाक का अधिकार दिया गया है।''शिया समुदाय में तो अगर मियां और बीवी दोनों ही चाहें तो भी तलाक नहीं हो सकता है।'काफी सोच-समझ कर उस पर विचार किया जता है तब कोई फैसला लिया जाता है।इस्लाम में पुरुष और महिला दोनों को बराबरी का हक़ है।वस्तुतः इस्लाम में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का हक दिया गया है।पर काजियों ने और सामंती सोच वालो ने इसका क्रियान्वित नही होने दिया है। मुस्लिम धर्म भी अन्य धर्मो की तरह धर्मगुरुओ के कब्जे मे है और आम जनता सीधा सादा जीवन जीना चाहती है। उनको इन चुनावी चोंचलो से क्या लेना देना। रही बात कामन सिविल कोड की तो ,तो विशेषाधिकार कौन छोड़ना चाहता है? एक बार काश्मीर को जो धारा 370 मिला तो आजतक लड़ाई चल रही है तो मुस्लिम अपना स्पेशल स्टेट्स क्यों छोड़ना चाहेंगे, वो भी भारत जैसे देश मे ,जहाँ वोट की राजनीति उन्हें वीटो पावर दिए हुई है।

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल