गोडसे वाद और गांधीजी

आज महात्मा गांधी जी का जन्मदिन है ! गांधी जी प्रासंगिक रहे है और रहेंगे! अहिंसा का कोई विकल्प नही है ! परंतु सब उनसे सहमत नही है !जब नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी तो भागा नही बल्कि आत्मसमर्पण किया क्योंकि  उसने गांधी को नही बल्कि उनके विचारो को मारने का प्रयास किया था, उनके विचारों को चुनौती दी थी । हो सकता है यदि गांधीजी की हत्या नही हुई होती तो शायद वो इतने अनुकरणीय न होते, क्योंकि मरने के बाद सिर्फ अच्छाईयां ही रह जाती है।अगर वो जिन्दा रहे होते तो उनके मानवीय कमियो का उजागर जीते जी हो जाता और तब इंसान का महात्मा या भगवान मे परिवर्तन मुश्किल होता है।गोडसे का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी |  जैसे आज हिन्दू वादी कहते हैं कि इसी तरह हिन्दुओं मे परिवार नियोजन और मुसलमानों मे जनसंख्या वृद्धि होती रही तो मुस्लिम एक दिन यहाँ भी बहुसंख्यक हो जायेंगे।गोडसे के अपने तर्क थे जिसको वह जस्टिफाईड करने के लिये न्यायालयो मे लडता रहा! भगत सिंह ने असेम्बली मे बम फेंक कर सरेंडर किया था ताकि वो पुरी दुनिया को न्यायालय मे दिये अपने वक्तव्यो के माध्यम से  अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध   अपने आंदोलन के उद्देश्य के बारे मे बता सकें। फिलास्फी औफ बम" समझा सके। उसी प्रकार गोडसे न्यायालय का उपयोग करना चाहते थे पर न्यायालय ने उसके बयानों को बाहर निकलने पर रोक लगा दी! गोडसे के अनुसार गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने  मार दिया था और महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे | उन्हे यह भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे ।वो खून का बदला खून की नीति का समर्थक था। गोडसे भी राष्ट्र भक्त थे पर उनका राष्ट्र गांधीजी के राष्ट्र से अलग था ,अपने राष्ट्र वाद को आगे बढाने के लिए उन्होंने पिस्तौल का सहारा लिया। वे कहते हैं कि गांधीजी की नीतियां हिन्दुओं के हित मे नही, देश हित मे नही है। अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने मे सहयोग देने से गांधी जी ने  साफ़ मना कर दिया |बाद मे उधम सिंह ने स्वयं जाकर लंदन मे बदला ले लिया, पर समझने की बात है कि गांधीजी इस हिंसा प्रतिहिंसा के सर्वथा विरूद्ध थे।उन्होने अपने तरीके से इसका प्रतिकार किया था।गोडसे मानते थे कि महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे! हालांकि गांधी जी का इसके पीछे उद्देश्य यह था कि उन्हें डर था कि बहुसंख्यक हिंदु मुसलमानो को उनका अधिकार नही देगी!वो किसी भी तरह मुसलमानो को अलग देश बनाने से रोकना चाहते थे!भारत विभाजन के विरोध मे वह अनशन पर बैठ गये थे। गांधी जी की नजर मे हिन्दू मुस्लिम भाई भाई है तो बटवारा क्यों? जबकि गोडसे इससे सहमत नही प्रतीत होते है ।गोडसे के अनुसार  कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में गांधी जी  अपने प्रिय पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने  निर्वाचित अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |  वैसे गांधीजी का जवाहरलाल के प्रति प्रेम और अनुराग जगजाहिर है! वो ये चाहते थे कि सुभाष जैसे उग्र युवा के हाथो  मे देश का भविष्य ना हो!  नेहरू जी उनके पद चिन्हो पर चलने का संकल्प ले चुके थे, परंतु एक दूसरी धारा गांधीजी के इन विचारों से असहमत थी।जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी ,गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया कि वे अंग्रेज़ी सरकार से उन्हे छोड़ देने को कहे क्योंकि किसी भी दशा मे वो हिंसा को बर्दास्त नही  करते थे!  ये उनका मार्ग नही था!इससे उनके प्रति काफी असंतोष भी उत्पन्न हुआ था।गोडसे मानते थे कि गांधी जी  ने कहा था कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए | उधर  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशस्त्र बलों के सहयोग से हैदराबाद  और जूनागढ को भारत में मिलाने का कार्य किया |गोडसे का मानना था कि  गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता!अत: उन्होंने उनकी हत्या कर दी। गांधी जी भारत के एकीकरण के पक्ष मे थे परंतु ताकत के बल पर उसे भारत मे मिलाने के पक्ष मे वो शायद नही होते! हालाँकि कि जिन्ना के हाथों मे वीटो थमाकर गांधीजी ने अच्छा नही किया था। अंत समय तक वो जिन्ना की बातो को इसलिए मानते रहे कि उन्हे लग रहा था शायद बटवारा न हो।इसीलिए महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध भी  किया, लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया !वो  मुसलमानो को अपने ज्यादा नजदीक दिखाने की कोशिश  करा रहे थे जिससे वो असुरक्षित महसूस ना करे!परंतु इससे मुस्लिम तुष्टीकरण की शुरुआत भी मानी जाती है। गोडसे इससे काफी विचलित थे कि गांधीजी एकतरफ मुस्लिमों के पक्ष मे सबकुछ किए जा रहे हैं।हालाँकि कहा जाता है कि किसी को आहत करना है तो उसके विचारों पर प्रहार करो, उस पर नही ,परंतु यहाँ तो गोडसे गांधी के विचारों से आहत होकर गांधीजी को ही मार डाला।गांधीजी के विचारों को अंग्रेजी साम्राज्य नही मार सकी तो भला गोडसे क्या मार पाते पर उनकी चिंता भी तात्कालिक रुप से जायज प्रतीत होती है। गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-सत्याग्रह जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में सिद्ध हस्त थे। जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने  इसे स्वीकार कर लिया।इतना ही नही जब सरदार पटेल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित करवाया तब भी गांधी जी ने इसको  निरस्त करवा दिया और आमरण अनशन की धमकी देकर सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला ! इन सब घटनाओं से हिन्दू जन मानस को ठेस पहूंचता था। वस्तुतः हिन्दू मुस्लिम मे उस समय तक मन मुटाव इस कदर बढ चुका था कि उनके पक्ष मे लिया जानेवाला एक कदम दूसरे को आहत करता था।आजादी के बाद भारत को  समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये पाक को देने थे जिसमे से भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था जिससे क्षुब्ध होकर शेष 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया गया, जिसका  गांधीजी  ने विरोध किया और आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया, दबाव मे 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी , परंतु गोडसे ने तय कर लिया था कि अब गांधीजी का जीवित रहना हिन्दुओं के लिए सही नही है।यदि सोचे तो गोडसे की भांति अनेकों रहे होंगे जो इन सब कारणों से गांधी जी को मार देना चाह रहे होंगे। एक फिल्म आई थी" हे राम",जो गांधीजी के हत्या से संबंधित थी,जिसमे नायक भी इन्हीं सब कारणो से गांधीजी की हत्या करने का प्रयास करता है पर उससे पहले गोडसे सफल हो गये। उस हाड़ मांस के पुतले मे गोलियाँ खाने का कहाँ दम था।यद्यपि गोडसे ने   भी स्वीकार किया कि  गांधी जी बहुत बड़े देशभक्त थे जिन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की | वो  उनका बहुत आदर करता थे लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के तथा एक संप्रदाय के साथ पक्षपात करनेदेने के पक्ष मे नही था।गोडसे ने कहा था कि गांधी जी की हत्या करने  के अलावा कोई विकल्प नही था।गोडसे को भटका हुआ इंसान कहा जाता है पर उसकी अपनी सोच थी। भले वह एक धर्मनिरपेक्ष भारत के हित मे नही था पर उसकी सोच देशहित मे थी परंतु हत्या करना गलत था क्योंकि एक तो गांधीजी ने जो कुछ भी किया भारतवर्ष के लिए किया, सर्वधर्म सद्भाव के लिए किया, ऐसे ही नही सारी दुनिया उन्हे शांति दूत या मसीहा कहता है। उनके सिद्धांत पर चलके आगे कई राष्ट्रों को आजादी मिली।गांधीवादी दर्शन और थ्योरी पल लगातार शोध हो रहा है कि क्या चमत्कार था उनमे, जो वह साम्राज्य जिसमें कभी सूरज अस्त नही होता था, उस अधनंगे फकीर से मात खा गया और घुटने टेक दिया। हालांकि सभी पक्ष इससे सहमत नही है कि मात्र गांधीजी की बदौलत देश आजाद हुआ, और वो गलत भी नही हैं। परंतु जीत का श्रेय तो हमेशा कप्तान को ही मिलता है।सभी विचारधारा के मानने वालों के अपने मसीहा होते है और उसके पीछे दृढ़ तर्क भी होता है।उतरी भारत मे राम को नायक और रावण को खलनायक माना जाता है लेकिन कंबन रामायण मे रावण नायक बन है। दुर्योधन को भी सही मानने वालो के पास तर्कों और तथ्यो की भरमार है।गोडसे कुछ लोगो के लिए पूज्य हो सकते हैं पर भारतीय जनमानस मे गांधीजी हमेशा " महात्मा" रहेंगे, भले ही उनपर आक्षेपो का "अग्निबाण " चलता रहे। यह बुद्ध महावीर की धरती है, जिसने सबको शांति अहिंसा का पाठ पढाया है ,गांधीजी उसको आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति थे,उन्होंने मरते हुए भी अपने हत्यारे को माफ कर दिया था।यह अलग बात है कि देश का सेंटीमेंट और कानून उसे माफ नही कर पाया। वर्तमान मे गोडसे वाद का पुनर्उत्थान हो रहा है जो गांधीवाद को चेलेंज के रुप मे देख रहा है।

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