कहते हैं जब आप किसी चीज की इच्छा करते है तो आपके चारो ओर एक वाइब्रेशन या तरंग निकलती है जो समान फ्रिक्वेंसी या इच्छित क्रिया या वस्तु से कनेक्ट कर आपकी इच्छा पूर्ति करती है। फिल्म"ओम शांति ओम "में नायक ओम कहता है" जब आप सच्चे दिल से किसी को चाहते हैं तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने की साजिश करता है"। यही बात पाऊलो कोएलो ने अपनी किताब "दि अल्केमिस्ट" मे भी कही है। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान स्वंय के अंदर एक कल्पवृक्ष छुपाये फिर रहा है और उसे मालूम नही। वह मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और गिरिजाघरो मे भटक रहा है।"कस्तुरी कुंडली बसै मृग ढूंढे बन माही!"आप जो चाह लोगे, ठान लोगे वो पूरा होगा। नेपोलियन बोनापार्ट, सिकंदर, महात्मा गांधी आदि जीवट वालो ने जो चाहा,.वो अंतत: पाकर के ही छोड़ा। सबकुछ हमारे अंदर है, खुशी, भय, हास्य, इच्छा, जैसा हम उसका उपयोग करें।एक धार्मिक ग्रंथ मे एक कहानी पढी थी कि एक घने जंगल में एक वृक्ष था जिसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी।एक बार एक थका हारा इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए ...