कल जबसे दाना मांझी को अपने कंधे पर अपनी पत्नी की लाश लादकर पैदल चलते दिखाया गया है तबसे मानवीय संवेदनाओं के पतन तथा सरकारी तंत्र के ध्वस्त हो जाने का क्लिप, वीडियो, परिचर्चा, लेख लगातार मीडिया मे छाया हुआ है! प्रश्न यह है कि दाना मांझी क्या पहला शख्स है जिसके साथ ऐसा हुआ? क्या सरकारी तंत्र की विफलता का तांडव इससे पूर्व चर्चा मे नही रहा है? क्या इससे पूर्व मानवीय संवेदनाओं पर प्रश्नचिन्ह नही उठाया गया है? क्या करेगा शासन प्रशासन ,उस जिम्मेदार पटल सहायक, कंपाउंडर का निलंबन और अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के विरुद्ध, चार्जशीट? दो - चार दिन मीडिया मे बहस ,हो -हल्ला, सतारुढ दल को गाली, लोकल विधायक मंत्री को कला झंडा और घेराव, और कुछ दिन बाद सब शांत! इससे क्या होगा? क्या फिर से ऐसी घटना नही घटेगी?क्या हम सिर्फ तात्कालिक रियेक्शनरी बन गये हैं, घटना के तह तक जाने और उसका समूल निराकरण मे विश्वास नही करते?क्या कोई यह जानने की कोशिश कर रहा है कि दाना मांझी की गुहार किसी सरकारी कर्मचारी, अधिकारी ने क्यों नही सुनी?क्या किसी ने जानने की कोशिश की कि उस एम्बुलेंस की आखिरी सर्विसिंग कब हुई थी? उस ऐम्ब...