अंडा तिवारी का फंडा

लोग उसे "अंडा तिवारी" के नाम से पुकारने लगे थे, नाम तो बटुकनाथ तिवारी था पर अंडे ने इस कदर उसके व्यक्तित्व पर रंग जमाया कि सबकुछ अंडामय हो गया। शाकाहारी तिवारी जी के घर मे कोई माछ मांस नही खाता था पर जब तिवारी जी हास्टल मे पढने गये तो कुछ समस्याएं सामने आई। सप्ताह मे एक दिन मांसाहार होता था, अब तिवारी जी उस दिन क्या खाते? तो दोस्तों ने समझाया, अंडा खाया करो, यह मांसाहार नही होता! तिवारी के अंदर से क्युरीसिटी हुई कि वो कैसे? अंदर से तो खाने की इच्छा हो रही थी पर डर था कि घर पर सबको पता चल गया तो बड़े पंडित तिवारी घर मे घुसना मुहाल कर देंगे और दादी तो बरतन, खानपान और बर -विछावन सब अलग कर देगी। इसलिए मन मार के पंडित बने रह गये थे।बिहारी ,बंगाली पंडितो मे माछ मांस खाने का चलन है क्योंकि वो लोग शाक्त परंपरा और तंत्र पूजा से जुड़े होते हैं। बाकी जगह के पंडित शाकाहारी होते हैं पर अंदर से नही! नये लड़के अब होटलों मे जाकर चोरी छिपे खाने लगे हैं। बाहर जहाँ कहीं भी स्कोप मिलता हैं, वो नान वेज खाने से चुकते नहीं। वैसे नान वेज बातें करने की मनाही किसी भी प्रकार के पंडितो मे नही है!तो बटुक नाथ तिवारी को आज कुछ स्कोप दिख रहा था, वो उछल पड़े। दोस्तों ने बताया" गांधीजी भी अंडा को मांसाहार नही मानते थे। अचानक ही उसे गांधीजी बड़े प्यारे लगने लगे। उसने निश्चय किया पूर्ण गांधी वांगमय खरीद कर या लाइब्रेरी जाकर पढ़ डालूंगा।लाजिक दिया कि अंडा फार्म मे उपजाया जाता है तो इसकी खेती हुई न!और खेत मे कहीं, मांस उपजाया जाता है? किसी ने समझाया" इस अंडे से बच्चा थोड़े न पैदा होता है, तो जीव हत्या कैसे हुआ? तो इन तर्कों से प्रभावित बटुक, जो पहले से ही लालायित थे, अंडाहारी बनने को तत्पर हो गये। खाया तो स्वाद भी अच्छा लगा। अब वो कहीं जाते तो बड़े गर्व से बताते की वो "एगटेरियन" हैं। यह एक क्लास है खाना खाने वालों का!इसके व्यंजन भारी भरकम अंग्रेज़ी वाले हैं। कहीं बोलो तो वजन मिलता है कि" आमलेट" या " एग करी"फ्रायड एग, फ्रोजेन एग" खाया है। अपने आप मे एक अलग अहसास होने लगा था" एगटेरियन तिवारी" को!  घर मे तो कुछ दिन तक लोग समझ ही नही पाये कि ई "एगटेरियन" क्या बला है?पर कहा जाता है कि इश्क और मुश्क छुपाये नही छुपता। प्यार के लिए अनारकली दिवाल मे चुनवा दी गई तो तिवारी जी इतना भी न सहते।सबको पता चला तो  हुक्का पानी ले सब इन पर चढ़ लिए। यहाँ गांधीजी भी काम न आये और न अंग्रेजी भड़कदार नाम,उल्टे मलेच्छ का टाइटल अलग से मिला! दादी तो "कुलबोरन" और न जाने क्या क्या उपाधि दे डाली। अंडा तिवारी के जिन्दगी जीने का फंडा भी बड़ा अजीब है। जिन्दगी की गणित मे भले ही उसको हिसाब लगाना आया हो न आया हो पर स्कूल मे तो हमेशा उसे मैथ मे अंडा ही आता था। जिससे भी दोस्ती करता बेपनाह करता, बिना लाग लपेट के। तो हास्टल से लेकर आफिस तक उसे सब बूड़बक ही बनाते रहे। हास्टल मे अंडा को शाकाहारी मानकर स्वाद चखनेवाले बटुकनाथ तिवारी जी को घर मे दादी के हाथो गाय का गोबर गिड़ना पड़ा, जिससे वो मलेच्छ से पुन: पंडित बन सके। दादी भी उसे पंडित बनाते बनाते थक गई क्योंकि जब वो वापस हास्टल जाते, मलेच्छ बन जाते, जीभ और दिमाग साथ दे तब न! हालत यह हो गई कि घर जाना कम कर दिए।मन को समझाया कि ओल्डमैन इतनी जल्दी समझते कहाँ हैं! लेकिन एक दिन अचानक उनका मन भटक गया। पाल्ट्री फार्म गये थे घूमने, अंडे से मूर्गे को निकलते देख लिया, बस वो दिन था और आज का दिन है, रोज पश्चाताप करते हैं कि गांधीजी के चक्कर मे दो सौ सैंतीस  मुर्गा मुर्गी की हत्या कर डाली। मुंह मे दो अंगुली डालकर जबरदस्ती वोमेटिंग करते पर मुर्गा अंदर होता तब न निकलता। अब अंडे का नाम सुनकर भी भड़क जाते हैं। लोगों ने बटुक नाथ तिवारी की जगह अंडा तिवारी कहना शुरू कर दिया है।आफिस मे लंच के समय जिस दिन उनके घर से अच्छा चीज खाने को आता, उनके साथी सिर्फ अंडा की चर्चा कर देते और वो लंच छोड़कर उठ जाते, चालाक दोस्त उनका लंच उड़ा डालते।भले ही तिवारी जी बाह्य रुप मे टीका और लंबी चोटी धारी थे पर वो अंदर से वामपंथी और विद्रोही स्वभाव के थे। बास से बकथोथी करना एवं अपने सहकर्मियो के साथ न्याय अन्याय पर लड़ जाना उनकी फितरत मे था। उनको हमेशा ये गिल्ट फीलिंग आती कि उनके अंदर अजन्मे मुर्गे लड़ रहे हैं और और वह लड़ाई उनके माध्यम से यदा कदा बाहर आती रहती थी। वो विश्वास करने लगे थे कि क्यों मांसाहारी इतना क्रूर होते हैं? घास पात खानेवाला आखिर क्या खाकर जबान हाथ चलाएगा?तिवारी जी सुबह मुंह अंधेरे ही उठ जाते हैं जैसे मुर्गा बांग दे रहा हो!खुब पूजा पाठ करते हैं पर अंडा उनके नाम से ऐसे चिपक गया है कि जैसे वह उनका व्यक्तित्व हो। जैसे अभी आमलेट बनने के लिए वो फूटेंगे और अंदर से बह निकलेंगे। उनका दर्द पीले जर्दी के समान चिपका हुआ है। लोग भले उनका मजाक उड़ाते फिरे पर बटुक नाथ तिवारी अपने बटुक मे हमेशा अंडा उबालते प्रतीत होते हैं।

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