भीम गीत और संस्कृतीकरण

संस्कृतीकरण भारत में देखा जाने वाला विशेष तरह का सामाजिक परिवर्तन है। इसका मतलब है वह प्रक्रिया जिसमें जातिव्यवस्था में निचले पायदान पर स्थित जातियाँ ऊँचा उठने का प्रयास करती हैं। ऐसा करने के लिए वे उच्च या प्रभावी जातियों के रीति-रिवाज़ या प्रचलनों को अपनाती हैं।संस्कृतीकरण का एक स्पष्ट उदाहरण कथित "निम्न जातियों" के लोगों द्वारा द्विज जातियों के अनुकरण में शुद्ध शाकाहार को अपनाना है, जो कि परम्परागत रूप से अशाकाहारी भोजन के विरोधी नहीं होते।एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार, संस्कृतीकरण केवल नयी प्रथाओं और आदतों का अंगीकार करना ही नहीं है, बल्कि संस्कृत वाङ्मय में विद्यमान नये विचारों और मूल्यों के साथ साक्षात्कार करना भी इसमें आ जाता है। जाति मे सामाजिक स्थिति यों तो सभी की जन्म से निर्धारित होती है जो स्थायी होती है परंतु प्रतिष्ठात्मक उपागम के आधार पर कई निम्न जाति के लोग अपनी स्थिति को उपर उठाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करते हैं ताकि वे उच्च जाति के लोगों के समकक्ष आ सकें। इस प्रकार अपनी स्थिति को उपर उठाने की कोशिश अक्सर निम्न स्तरीय जाति के लोगों में पायी जाती है। उन्होंने यह पाया कि निम्न जाति के लोग अक्सर ऊँची जाति के लोगों के व्यवहार से तथा प्रचलित सांस्कृतिक नियमों के अनुसरण को अपनाकर अपनी स्थिति को उपर उठाना चाहते हैं। जिन जातियों में पहले उपनयन संस्कार का प्रचलन नहीं था वे इस संस्कार के द्वारा अपनी स्थिति को ऊँचा उठाना चाहते हैं। निम्न जाति के लोगों ने यह भी पाया कि उँची जाति के लोग कई धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ निराभिष भोजन भी नहीं करते। निम्न जाति के लोगों ने अपने आप को उँची जाति के करीब लाने के लिए निरामिष भोजन को लाकर धार्मिक अनुष्ठानों को भी मानना शुरू कर दिया और इस प्रकार के कल्पित रूप से कर्मकांडों में बदलाव लाकर अपने आप को उँची जाति के समीप लाने का प्रयास शुरू किया देश में दलित गीतों की एक नई परंपरा शुरु हो गई है. ये दलित गीत दलितों के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं.बाबासाहब भीमराव अंबेडकर जयंती के दिन लोक गायक सांबा जी भगत को बड़े ही अलमस्त आवाज और सुर मे भीम गीत गाते सुना ,अच्छा लगा और गायकी की एक अलग विधा से वाकिफ भी हुआ।भारत मे सनातनी परंपरा प्रत्येक वस्तु मे ईश्वर का वास मानती है और महापुरुष को देवता। हम उनकी प्रतिमा बनाकर पूजा करना प्रारंभ कर देते हैं।गांधी जी के साथ भी यही हुआ है।हम उनकी पूजा करते हैं परंतु उनके विचारों से उतनी ही दूर हैं।यहाँ गौरतलब है कि ब्राह्मण वाद का विरोध धर्म व समाज पर वर्चस्व को लेकर ही होता है तो क्या इन प्रतिमा पूजन, देवत्व आरोपण,भक्ति संगीत ने एक दूसरे प्रकार के ब्राह्मण वर्ग को जन्म नही दे दिया है?क्या बाबा साहब इसी वर्चस्व और ब्राह्मण वादी व्यवस्था के विरूद्ध खडे नहीं हुए थे? तुम्हारे देवता से पृथक हमारे देवता का विचार स्थापित हुआ , परंतु देवी-देवता ही है ना ,जो मंदिरो मे है, कब्जे मे है तो रेडिकल विचारों, व्यवस्था विरोध,स्थापित सता को दी गई चुनौती का क्या हुआ? क्या बाबा साहब ने इसकी कल्पना की थी? उन्होंने ने तो इसी के लिए हिन्दू धर्म का परित्याग कर दिया था!वैसे कई भीम गीत काफी क्रांतिकारी हैं तथा समाज के निचले तबको को अपनी आवाज देते हैं।इस लोक गायकी की विधा को प्रोत्साहन एवं प्रश्रय की आवश्यकता है परंतु भारत मे पूजने की परंपरा बाबा साहब के आदर्शों एवं विचारों को उसके निहितार्थ से भटका न दे!यह एक नई संस्कृति की शुरूआत है. एक नए कल्चर को बढ़ाने की कोशिश है जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी संस्कृति हो वह सांस्कृतिक प्रतीकों पर आधारित होती है. दलितों ने भी अपने प्रति को अपने महापुरुषों को इन गीतों में आधार बनाया है. समाजशास्त्री अंतोनियो ग्राम्सी ने कहा था कि किसी भी विचारधारा का संस्थानिक एवं कल्चरल आधार होता है, यह कल्चरल आइडियोलॉजी ही किसी बड़ी राजनैतिक शक्ति के आधारों में होती है. इसमें राजनीतिक प्रचार भाषण लोक साहित्य एवं प्रसिद्ध गीत सभी आते हैं. प्रसिद्ध गीत एवं मिथक भी एक प्रकार की बौद्धिक शक्ति होते हैं. वर्ग अपने कल्चरल प्रतीकों के माध्यम से ही अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है, जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में दलितों की सबसे बड़ी जनसंख्या है. यहां लगभग 28 फीसदी दलित हैं. पंजाब में सबसे ज्यादा गीत जाट जाति के विषय में हैं. दलितों के गानों को जाटों का काउंटर कल्चर ही माना जाता है. ऐसे बहुत से गाने हैं जिनमें जाटों की वीरता का और उनके उच्च सामाजिक स्तर का बखान होता है.

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल