कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन.।

बिहारी काका परसों काफी सेंटिया गये थे!" गुजरा हुआ जमाना आता नही दुबारा"!आज अचानक वो अपने " लड़िकारी" के दिनों को याद करने लगे थे। बताने लगे कि बचपन मे जब भी वो  लेट से क्रिकेट खेलकर आते थे तो उन्हे  पता होता था कि आज  मां काफी गुस्साई हुई होगी। घर जाते ही हो सकता है पिटाई भी हो जाए " दिन भर आवारा लड़कों की तरह घूमते रहते हो, पढाई लिखाई नही करते हो। आने दो बपहिया को तो बताऊंगा! डाल दें इन लोगों को हास्टल मे, ये लोग गांव मे रहकर नही पढने वाले! उसके भैया कहते" जाओ ,देखकर आओ कि कोई काकी, चाची, दाई आस पड़ोस से घूमने तो नही आई है? यदि कोई घर मे बाहर से आया होता तो आसानी हो जाती क्योंकि बाहरी लोगों के सामने डांट-मार नही पड़ती थी।घर मे सबसे छोटा होने के कारण वह " कोरपोछुआ" बेटा थे, उसे डांट- मार कम मिलती थी। " भंसा घर"(किचन) से जाकर कुछ खाने का सामान निकाल कर भैया को बाहर दे आता,जो घर के बाहर ही रहते ,जबतक उसकी मां का गुस्सा शांत नही हो जाता। मां गांव की बहू थी इसलिए दरवाजे पर नही आती थी। उसकी सीमा घर के गेट तक ही थी, जिसका लाभ वे हमेशा उठाते थे, जहाँ मार पड़ने की संभावना होती, धीरे से घर से बाहर निकल जाते, मां तो पीछे से आ भी नहीं सकती थी न! उन दिनो आम का अचार और " तिलवा" खूब चुरा चुराकर खाया करता था।नवकी काकी मां से आकर कहती" कहाँ रखे हैं अचार! बऊआ तो रोजे ले जाकर खाते रहते हैं। खेत मे जब मजदूर काम करते थे उसका " पनपिआई"(नाश्ता) लेकर खेत-बाद मे जाना होता था! पनपिआई का स्वाद अद्भुत और गजब का होता था। मोटी मोटी रोटियां, प्याज-नमक-तेल- अचार का राई और कभी कभी थोड़ी सब्जी! लेकिन उसको खाने का मजा ही कुछ और था!वह अपने लिए भी पनपिआई रख लेतेऔर खेत मे जाकर " हरवाह" के साथ आरी-डरेर पर बैठकर खाते।इसमें अप्रतिम आनंद आता। आज भी उसके बारे मे सोचकर ही मुंह मे पानी आ जाता है।आम के दिनो मे जब अंधड़ बयार चलता तो झोरा- बोरा लेकर" गुधनी"(आम का बगीचा) की ओर रात विरात भागते, अंधेरे मे भी अपनी गाछी के नीचे पानी, डबरा, खत्ता, कीचड़ मे आम और " टिकोला"(आम का बच्चा) हंसोरते। जाते वक्त तो उस सुनसान अंधेरी रातों मे तो गाछी मे चले जाते थे पर आते वक्त उसे बहुत डर लगता था। जाने वक्त का जोश समाप्त हो जाने पर" जय हनुमान ज्ञान गुणसागर" और जय महरानी जी, जय बरहम बाबा के जाप करते घर लौटते। रास्ते भर इधर उधर नजर नही घुमाते कि कहीं कोई डायन, चुड़ैल, भूत- पिशाच या ब्रह्म पिशाच न दिखाई पड़ जाये।वापस घर पहुंच कर जान मे जान आती थी।एक बार गेंहू के खेत मे पानी पटवाने "सरेह"(दूर का खेत) मे गया था। लौटते वक्त शाम हो गई तो डर से अकेले इसलिए नही वापस आ रहा था कि रास्ते मे पड़ने वाले एक सीम्मर गाछ पर भूत होने के किस्से सुनने को मिलता था। जब दो- तीन लोग वापस आने लगे तो साथ हो लिया। शाम का धुंधलका हो चला था। सीम्मर गाछ से थोड़ी दूर पहले वे लोग थे तो दूर से कोई आता दिखा। थोड़ी देर मे वह साया दो हो गया तो सबके कान खड़े हो गये। जो सबसे बुजुर्ग था की हिम्मत भी जबाब देने लगी जब वहाँ तीन साया दिखने लगा। सबलोग आगे बढ रहे थे पर उनके पैर साथ नही दे रहा थे। सभी डरने लगे थे। जब सायों की संख्या चार हो गई ,तब तो सभी पीछे चिल्लाते हुए भागना शुरु कर दिए। खेतों मे पानी पटा होने के कारण कीचड था। कहाँ चप्पल गया, कहाँ बाल्टी, कहाँ कुदाल, पता नही?  पंपिंग सेट का इंजन इतना तेज बज रहा था कि उसके पिस खड़े लोगों को उनकी आवाज सुनाई नही पड़ रही थी। जब वे गिरते पड़ते वहाँ पहुंचे तो वो लोग भी कहने लगे! अरे! अच्छा किए नही गये! यह ब्रह्म पिशाच के निकलने का समय है। थोड़ी देर बाद वहाँ  बैठे ही थे तो उन्हें दिखाई पड़ा कि आगे जिसका पंपिंग सेट और भी चल रहा था, उसकी मां, दोनों बहन और भाई, उसके लिए रात का खाना लेकर जा रहे हैं। असल मे जो दिखाई पड़े थे वो ये ही लोग थे। शाम के धुंधलके मे एक सीध मे आरी पर चलते होने के कारण पहला वाला ही शुरू मे दिखाई दिया और जैसे जैसे वो लोग टेढे मेढे आरी पर चलते आये, अगल बगल दिखने लगे थे। ये तो अच्छा हुआ कि भ्रम उसी समय खत्म हो गया, वरना जिंदगी भर ये सोचते रहते कि हमने भूत- पिशाच देखा था। आम के दिनों मे गाछी पर से गिरे" गछपकुआ आम" खाने मे काफी अच्छा लगता था। एक आम जहाँ टप्प से गिरता ,सभी बच्चे एक साथ उसे लूटने दौड़ जाते। आम को चोभ्भा मारकर खाने से स्वाद बढ़ जाता था। आम की" आंठी"(गुठली) चाटकर किसी पेड़ के खोखर मे रखते और जोर से बोलते" हे कोयली माता आम गिराओ"! कभी कभी सच मे कोयली माता बच्चों की सुन भी लेती थी। जामुन खाकर रंग मे रंगे जीभ को एक दूसरे को दिखाते तो कभी आइने मे देखकर खुद ही खुश होते।सच मे " बचपन के दिन कभी भुला न देना"! उस समय सभी प्योर होते हैं, आज तो सभी रंगे सियार हैं। बिहारी काका ने तो मुझे भी सेंटी कर दिया। कहीं दूर एफ एम रेडियो  पर गीत गुंज रहा था " कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन"!प्यारे प्यारे दिन  वो मेरे प्यारे पल क्षिण"!

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