सरकारी नौकरी मे वर्ग संघर्ष

 आपने कभी अमीरो एवम सम्पन्नो को आपस मे लडते-झगडते देखा है?? उनका हित हमेशा से सधता आया है! वे चुपके से अपना काम under the table काम कराते रहते है और जाहिराना तौर पर आम जनता की भलाई का दिखावा करते है! ये गंवई भाषा मे "भाग्य के सांढ " होते है!अभावग्रस्त एवम गरीब लोगो मे हमेशा कुछ पाने की जद्दोजहद,संघर्ष तथा लडाई होती रहती है! सम्पन्न लोग हमेशा इनको  आपस मे उलझाये रखकर अपना उल्लू सीधा करते है! क्या कभी आजतक इन दोनो वर्गो का मेल (सम्विलियन) हो पाया है? ये इनके लिए लौलीपाप तथा फंतासी ही बना रहेगा! इनका वर्ग संघर्ष जारी है और रहेगा! विभागीय सशक्त और सम्पन्न लोगो का काम केवल निम्न तबको का शोषण करना है! ये ऐसा माहौल पैदा कर देते है कि दबे कुचले लोग मुख्यालय की गणेश परिक्रमा से लेकर  सचिवालय का चक्कर प्रारम्भ कर देते है!अधिकारियो  और  समर्थ  लोगो ने  अपना नया-नया झोला सिलवाया  लिया है जो वो हरेक बरसात सीजन अर्थात ट्रांसफर सीजन मे सिलवाते है क्योंकि इस समय बाहर पानी और अंदर धन बरसता है!  बरसात का सीजन  आ गया है,ना जाने कितना बरस जाये? इसका इस्टीमेट लगाना जरा मुश्किल है ।ये तो डिमांड और सप्लाई का खेल है।मेढक भी टर्रा रहे है ,जैसे  अच्छी अच्छी पोस्टिग की बोली लगा रहे हो !महंगाई के दिनो मे बढते डिमांड और भाडे़ को देख गरीब  और विभागीय दलित लोग सोच रहे है कि शायद इस बार भी हम उसी रेगिस्तान मे रह जाये?  शायद इस बार भी सीप रूपी मूंह पानी की बूंदो के लिए तरस जाये।दूसरी ओर विभागीय चतुर व अमीर लोगो की तो चांदी है! वे आपस मे समझौता कर लेते है और मलाईदार जगहो का आपसी बंटवारा कर लेते है! कई लोगो के लिये तो सरकारी नीति-वीति गयी ठेंगे से! वो तो पुरी जिंदगी एक ही जगह बिताने की ठान चुके है,चाहे इसके लिये जो भी कीमत चुकानी पडे!गरीब और विभागीय दबे कुचले लोगो के के लिये यही समय आस बंधाता है कि शायद इस साल किस्मत खुल जाये और मनमाफिक पोस्टिंग हो जाये!  यह समय उनके लिये वर्ष भर जीने की आस देता है  और उनके परिवारवालो को भरोसा कि  " मेरा पिया घर आया हो राम जी"तो !प्लीज उनका आस मत तोडिये? कभी उनके लिये भी अच्छे दिन आने दीजिये?  सब दिन आपके ही अच्छे नही रहेंगे! अरे! मठाधीशो ! जब पता है कि 10  साल ही आप अपने मंडल मे रह पायेंगे तो जवानी क्यो ना बाहर बिता लेते हो ताकि अंत समय अपने घर मे बिता सको!  लेकिन मानेंगे थोडे ही ना!प्रयास जरूर करेंगे,चाहे पांचवी मंजिल तक जाना पडे! अब एक आईएस साहब और उनकी बीबी बच्चो का हश्र देखकर भी भाई लोगो को डर नही लगता! धुंआधार धमगज्जर मचाये जा रहे है।"अति सर्वत्र वर्जयते" ! इसे यहां वर्ग संघर्ष के नजरिये से  देखे तो मलाईदार तबका हमेशा साहब की नाक का बाल बना होता है!नये साहब के आते ही उनके आगे पीछे करना,उनके लिये सरोसमान जुटाना प्रारम्भ कर देते है , जाहिर है वो सक्षम है और एकतरह से सता  पर कब्जाये रखने की उनकी साजिश होती है!निम्न तबको को तो वो साहब के पास फटकने तक नही देते! वे आर्थिक रुप से इतने समर्थ भी नही है कि उनसे टकरा सके! वो बेचारे इंतजार करते रह्ते है कि साहब की दृष्टि उनपर पड़ जाये! यंहा तक कि  साहब का दरबान और अर्दली भी उनको हड़का डालते है!  बेचारा मिठाई का डिब्बा लिए गेट के बाहर अपनी बारी आने का इंतजार करता रहता है और साहब हैं कि बाथरूम से निकलते ही नही !यह वर्ग हमेशा से दो स्तरो पर लडता रहता है!एकतरफ कमजोर लोगो की आपसी लडाई   होती है तो दुसरी तरफ दबे छुपे  छद्म साहब और असली साहब के शोषण के खिलाफ प्रतिकार तो करना चाह्ते है पर कर भी नही पाते!क्योंकि साहब की नजर मे कौन चढना चाहेगा? पानी मे रहकर मगर से बैर! फील्ड मे अभी जमींदारो का खौफ व दहशत बरकरार है! यंहा मार्क्स बाबा और लेनिन की नही चलती! या तो माओ चलेंगे या गांधी बाबा चलेंगे। यूं कहिये कि गांधी बाबा का ही राज है। शोषण मे समाजवाद अवश्य चलता है!  सभी को समान रुप से शोषित किया जाता है या कहे कि खुद का शोषण करवाने के लिये सभी तत्पर रहते है! आपसी लडाई का लाभ हमेशा शोषक सम्वर्ग लेता रहा है और फुट डालो और राज्य करो नीति तो  पहले से ही चली आ रही है! परंतु सरकारी  सेवा के वर्ग संघर्ष मे सामंतवादी व्यवस्था से भिन्न यह एक चेन या सर्किल है जिसमे सब अपने उपर वालो से शोषित होता है! मलाईदार पोस्टिंग तो एक इसका  जरिया मात्र है,यहआपसी संघर्ष का एक नमुना भर है,जिसमे सबके आपसी हित कहीं न कहीं महत्वपुर्ण भुमिका निभाते है!  इनका वर्ग  संघर्ष जारी है और इसका अंत निकट भविष्य मे दिख नही रहा है ! ये सब मिलकर आम जनता का शोषण करते है परंतु आपस मे भी शोषित और पीड़ित का खेल खेलते रहते हैं।

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