लंगोटिया यार

बचपन मे उसका दो लंगोटिया यार था एक हरदेव पासवान और दूसरा मोहम्मद अकरम। अब लंगोट तो वे लोग बांधते नही थे, हां सरकारी कोटे के दुकान पर डोरिया वाला कपड़ा आता था,उस समय उसी का सब अंडरपैंट और आऊटर पैंट दोनो पहना जाता था। कभी कभी उसका पाजामा भी सिल दिया जाता था। नया पैजामा और बूशर्ट तो होली दिवाली मे ही पूरे घर का बनता था, सूलेमान टेलर के यहां। हां तो मै लंगोटिया यार के बारे मे कह रहा था, मतलब स्कूल मे साथे बैठने से लेकर, टिफिन के समय दूकान पर मूढी-घुघनी और कचरी खाने के साथ साथ छुट्टी के समय तक एक साथ रहना,खाना पीना, गप सडाका करना और फिर पैदल बस्ता उठाकर सरपट घर की ओर दौडना, सभै साथे था। घर पहुंचता तो शिकायत पहले ही पहूंची रहती कि फलांना का बेटा जाति धरम सभे भ्रष्ट कर लिया है। एके साथ प्लेट मूढी घुघनी खाते देखा है, पंडित का नाक कटा दिया।  वो क्या करता,एक कान से सुना दूसरे से निकाल देता,। अरे! दोस्त दोस्त होता है उसमे जाति धरम क्या होता है? क्या अंतर है उसमे और मुझमे, नाक कान मूंह हाथ पैर सभे तो एके समान है ,तो फिर काहे का भेद? हां इतना अंतर है कि हमारा पक्का का घर है और उसका झोंपडी या खपरैल।मां कहती" सबकुछ भरठ कर दिया ई छौंड़ा! गंगाजल से छिडकाव कर घर घुसने देती। कहती" आने दो बपहिया को तब तुमको यहां से नाम कटवा कर शहर भेज देते है। शाम होते होते गुस्सा शांत और अगले फिर वही रामकहानी! एक अंतर उसने महसूस किया था कि उसके बाबूजी कभी कभी उसे लूना मोपेड से  स्कूल छोड़ देते है तो हरदेव के बाबूजी को खेत मे मजदूरी से फुर्सत नही मिलती।अकरम के अब्बा को हमेशा सिलाई मशीन या कैंची के साथ ही  उसने देखा था। मास्साहब पढाते और किस्सा भी सुनाते कि कैसै एक लडका ने गाय पर निबंध लिखा कि "गाय हमारी माता है हमको कुछ नही आता है तो टीचर ने नबर नही दिया कि बैल  हमारा बाप है नंबर देना पाप है! अकरम के घर एक गाय थी जिसका दूध या दही वह चुपके से खिलाता था।उसकी अम्मी सेवईयां बडा अच्छा बनाती थी। ईद मे वह और हरदेव उसके घर जरुर जाते लेकिन चोरी छिपे।मां को पता चलता मार पडती, हां बाबूजी इस सब पर ध्यान नही देते थे। हरदेव के घर का पानी भी हमको पीने से मनाही थी। पर बाल मन कहां यह सब मानता है।जब वो लोग कभीउसके घर आते तो मां से छुपाकर रोटी अंचार दनान पर ले जाता और रोटी को मोड़कर सब ऐसे खाते जैसे आज रेस्टोरेंट मे वेजरोल या ब्रेडरोल खाया जाता है, हां छुरी कांटा नही होता था, पर खाने का अपना मजा था। सही ईश्वर कहते है कि हमने तो सिर्फ मनुष्य बनाया था, उसको जाति, संप्रदाय, धर्म, क्षेत्र मे तो तुमने बांटा है। स्कूल मे दस पैसा चुराकर लेमनचूस खरीदने पर पडी मार को वह कैसे भूल सकता है जिसे  चूसे तो तीनो साथ मे ही थे! मिडिल स्कूल से निकलने के बाद वे अलग अलग हाईस्कूलो मे पढने चले गये। बचपन मे जो इंसान के बच्चे थे, न जाने कब  और कैसे वे तीनो लंगोटिया यार, ब्राह्मण, दुसाध और मुसलमान हो गये।

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