तबादला उद्योग

सरकारी विभाग मे यूँ तो तबादला एक सामान्य प्रक्रिया है पर यह कई कर्मचारियों के लिए हादसे से कम नही है।नौकरी ज्वाइन करते समय तो सब तैयार रहते हैं कि कहीं भी नौकरी करा लो परंतु जैसे ही स्थायीकरण होता है ,अपने घर के आसपास नौकरी करने की कवायद प्रारंभ हो जाती है, चाहे इसके लिए जो भी करना पडे। तबादले किस तरह किये जातें हैं और क्यों किए जाते हैं,ये किसी से छुपा नहीं है ।कोई कोई सरकार इस तबादला उद्योग से स्वयं को अलग रखते हुए  स्थानांतरण सत्र शून्य कर देती है, परंतु इससे उनके मंत्री और पार्टी लाभान्वित नही हो पाते और यह उनमें असंतोष उत्पन्न करता है।।मजबूरन तबादलो के माध्यम से मालदार पोस्ट और जगह पर अपने नजदीकियो को लाभान्वित कराया जाता है।इस कारण बहुत से अधिकारी / कर्मचारी स्थान विशेषज्ञ या मठाधीश बन गये हैं, इसके लिए शीर्ष नेतृत्व बहुत हद तक जिम्मेदार होता हैं , जो धनपशु, बाहूबली, व् राजनैतिक पहुँच वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के सम्मुख नतमस्तक होता रहता है और उनके लिए स्थानांतरण नीति को ताक पर रखा जाता  है।अपने लोगों के लिए 10 साल, 6 साल या 3 साल का प्रतिबंध कोई मायने नही रहता, कई तो पूरी जिन्दगी एक ही जगह बिता देता है। स्थानीय विधायक/मंत्री के वे इतने हितैषी हो जाते हैं कि उनके सामने उनके सीनियर और अफसर गौण हो जाते हैं।वैसे जनप्रतिनिधियो के लेटर पैड तो धड़ल्ले से प्रयोग मे आते हैं और यहाँ समभाव रहता है, जो पहूंच जाये, पैड सरलता से मिल जाता है, अब आप उसपर जो भी लिख डालिए।वैसे ट्रांसफर पालिसी सभी पर समान रूप से लागू हो और कोई अपवाद न हो तो समस्या खत्म हो सकती है।लेकिन पालिसी जारी होते ही  लोग जोड़ तोड़   करने लगते हैं और गणेश परिक्रमा प्रारंभ हो जाती है। इस प्रक्रिया मे धन का जबर्दस्त उपयोग हरेक विभाग मे आम बात है। अफसरों और विभागीय मंत्री द्वारा इसका misuse होता है।आजकल  एन डी ए (नान डिस्ट्रबेंस एलाऊंस) के रूप मे काफी पैसों का लेन देन होता है। यहाँ तक कि यह सारा खेल का अंत या शुरुआत पार्टी फंड मे सहयोग राशि के रूप मे एक बडे हिस्से के योगदान के साथ होता है। मेरी समझ मे तबादला नीति ही अरबों के transection का उद्योग की जनक है।क्या सरकार इससे लाभान्वित नही है? सभी के संरक्षण मे यह चल रहा है।अब एक ही जगह पर रहते रहते सब मठाधीश हो गए हैं। यदि उनका जबरदस्ती ट्रांसफर किया जाएगा तो  वे पहले अपने धनबल, पहूंच का उपयोग करते हैं और यदि सफल नही हुए तो मारपीट पर ऊतारू हो जायेंगे ये मठाधीश!हाल मे उतरप्रदेश के एक विभाग तथा पिछले दिनो बिहार मे तबादलो के लेकर मारपीट तथा गोलाबारी भी हो चुकी है।नीतिगत विफलता एवं अपारदर्शिता के चलते हजारों याचिकाये प्रतिवर्ष न्यायालय मे दाखिल की जाती है ,हालांकि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले मे बता दिया है कि आप हमेशा एक जगह रहकर नौकरी नही कर सकते।फिर भी पति पत्नी के नौकरी मे रहने पर एक जगह रहने की सुविधा दी गई है, अपवाद स्वरूप। परंतु  जबतक एक सही, पारदर्शी एवं समान रूप से सबपर लागू किए जाने वाले तबादला नीति को बनाया नहीं जाता,तबतक यह उद्योग बदस्तूर जारी रहेगा।

Comments

  1. ये छोटे-छोटे पोस्ट बहुत मायने रखते हैं अविनाश,ज़रूरत है कि इस तरह के लेख निरंतर लिखे जायें,ये लेख अपनी बातें वहां तक पहुंचाने में सफल होते हैं,जहां इसकी दस्तक ज़रूरी है।सालों से पड़ी आदत वर्षों में जायेगी,मगर तब,जब इस तरह की असलियत लोगों तक जानते-समझते भी बार-बार पहुंचे।बिहारी पंडित ठीक लिख रहा है।यह मेरी व्यक्तिगत राय है कि पत्रकारिता की जो छवि बनी बनायी रही है,अब वो टूट रही है और दूर-दराज़ कंप्युटर लिये बैठा एक संवेदनशील व्यक्ति शायद साइबर स्पेस पर ज़्यादा सही पत्रकारिता कर रहा है,क्योंकि वो झूठ के साथ होकर झूठ को सच नहीं बनाता,वो अपने देखे सच के साथ पूरी तरह खड़ा है,ठीक है कि उसका सच कभी कभी पूरा सच नहीं होता,मगर एक पहलू ही सही,सच तो है। पूरा सच की ख़ातिर बिहारी पंडित के लिए तमाम शुभकामनाएँ !

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  2. हौसला आफजाई के लिए धन्यवाद उपेन्द्र ! लिखते रहने का प्रयास जारी है।

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