मार्केट मे नया है..

बूमरैंग को जब हम फेंकते है तो घूम फिरकर वापस आ जाती है ,पर इससे यह पता नही चलता कि दुनिया गोल है ।प्रयोग के तौर पर सोशल मीडिया पर आप कोई मैसेज डाल दो,इस टैग के साथ कि मार्केट मे नया है ,जल्दी फारवर्ड करो" ।अगले दस पंद्रह दिनो मे पुन: वह घुम फिरकर आपके पास आ जाएगी कि " मार्केट मे नया है ,जल्दी फारवर्ड करें"।असल हम कुछ पढते है या जानते है या सोचते है तो हमे लगता है कि यह मौलिक है और और पहली बार हमही को पता चल रहा है परंतु वो पहले से ही विद्यमान रहता है।हम मौलिक या अपनी खोज समझ कर जल्दी से मार्केट मे फेंकते है पर वो बूमरैंग या echo effect की तरह वापस आ जाता है।आध्यात्म भी यही कहता है कि हम जो करते है ,कहते है घुम फिरकर हमारे पास वापस आता है क्योकि दुनिया मे कोई भी चीज ना तो बनती है और ना खत्म होती है, सिर्फ अपना स्वरुप बदलती है।प्रत्येक अणु या उर्जा अक्षुण्ण है, जो हम तरंगे छोड चुके है वो हमेशा विद्यमान रहती है। यदि कोई मशीन हो जोइन्हे पकड सके तो आदिकाल मे क्या हुआ था, पता चल जाये
हम सोचते है कि हमने ये तीर मारा, वो तीर मारा, फलानां ढेंकाना, सब व्यर्थ! मूर्ख है हम जो ऐसा सोचते है।सब कुछ प्रारब्ध है, नियति है यदि हमारे सोचे कुछ हो जाता है तो मात्र संयोग! अगले पल क्या होने वाला है ,कोई नही जानता! हम सिर्फ तुक्का मारते है कि लग गया तो लोहा लाट, नही तो फट्टा! कहते साइंस तर्क आधारित व कार्य कारण सिद्धांत पर आधारित है तो कोई डाक्टर किसी आपरेशन के बाद क्यो बोलता है" हमने तो अपना काम कर दिया बाकी ईश्वर की मर्जी! अदृश्य परम शक्ति से सभी वाकिफ है और वह उर्जा है जो अपना रूप परिवर्तित करता रहता है, कभी खत्म नही होता, सभी को शक्ति प्रदान करता है और चीजे गतिशील होती है।जिस दिन वह उर्जा समाफ्त, सबकुछ समाप्त! यह सृष्टि इसी तरह चलती आई है और चलती रहेगी।हमे सबकुछ जानने का या पहली बार जानने का अहंकार नही होना चाहिए।हम इस विशाल सृष्टि के अरबो मंदाकिनी के एक मंदाकिनी के अरबो तारो मे से एक सूर्य के अनेक ग्रहो मे से एक ग्रह पृथ्वी ,जिसका दो तिहाई भाग जलमग्न है ,के एक तिहाई भाग को भी सही से नही जानता , वो भला क्या जानकार बनेगा? आइंस्टीन के बारे मे भी कहा जाता है कि वे अपने दिमाग का मात्र 15 प्रतिशत उपयोग कर पाये तो भला और कोई क्या जान सकता है?अबूझ और अगम्य है ये दुनिया, फिर तो सबकुछ छद्म और असत्य ही मानना होगा क्योकि हम जिसे सत्य समझ रहे है ,उससे परे भी तो दुनिया या सत्य हो सकती है।जितनी दुनिया.हम जानते है, उसी मे बाते घुमती फिरती रहती है।इसी लिए हमलोग कहते है  history repeat itself अर्थात इतिहास अपने आप को दुहराता है, इसीलिए घटनाओ की पुनरावृति होती रहती है परंतु बदले स्वरुप मे यथि पात्र बदल जाते है , दर्शक बदल जाते है और कभी कभी रंगमंच भी बदल जाता है परंतु घटनाक्रम नही बदलता।इसीप्रकार ग्रुप बदल जाते है परंतु वही मैसेज बार बार आपके सामने आता है, थोडा नमक मिर्च लगाकर। उसका बदलता स्वरूप प्रकट करता है कि वह अपने सफर मे किन किन लोगो के पास से गुजरा है।सभी उस पर अपनी छाप या गंध छोड देते है।आखिर मे उन्हे आना है ,जरा देर लगेगी, भले ही यह लिखकर आये कि " जल्दी से चैंप डालो ,मार्केट मे नया है"!!

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