कश्मीरी अवाम का दर्द

"जबरा मारे रोवन न दे" किससे कहें, कैसे कहें अपनी दास्तान ! सलीम ने जब अपनी भीगीं पलको को पोछते हुए जब ये बातें कही तो चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था! साहब  ! इस जन्नत की किसकी नजर लग गई , बद् दुआ लग गई " । धीरे धीरे सब कुछ खत्म हो रहा है। जो शिकारे कभी खाली नही रहते थे , अब यहां फांके पड़े रहते हैं। वो कहते है किराये पर दोगे तो जबरदस्ती दस हजार हरेक महीना जमा करना होगा वरना वो जो रहने आयेगा, उसे मार देंगे।कोई टूरिस्ट.अब यहां नही रहने आना चाहता। कौन मरना चाहेगा। कई सालो बाद तो जन्नत मे बहार आयी थी, फिर पहले जैसा होने लगा है।।  आप कहते हो, कश्मीरी लुटेरे है, चोर है, । नही साहब ! हमारी मजबूरी को समझो!जो आता है उससे हमे मजबूरन दुगूना तिगूना पैसा लेना पढता है,नही तो उन दहशतगर्दो को कहां से पैसा देंगे?  सुना है कश्मीरी बच्चो का अपहरण कर सीमा पार ले जाते है, अल्लाह  जाने क्या गुनाह किया है, हमने । हमको मारने के लिए हमारे बच्चो को ही हथियार थमा देते है।सबको क्या जाने दिमाग  मे भर दे रहे हैं कि जेहाद है, मरोगे तो जन्नत मिलेगा! कमीने है साले! कीड़े पड़ेंगे! क्या बताऊं साहब! अभी कुछ दिन पहले की बात है ।हमारे पडोस मे अताउल्ला के घर मे रात मे चार बंदे घुस गये। अब एक सप्ताह से बिन ब्याहे घर जमाई बने बैठे  रहे। खाना पीना के साथ इज्जत भी ले लिया। ऐसे मे कौन उसके घर बेटो को ब्याहने आएगा? हमारा दर्द कौन सरकार देख रही है ,कहने को कश्मीरी सरकार है बस! मैने कहा"आप लोग मिलकर इस जुल्म का विरोध क्यो नही करते? सभी विदेशी सरपरस्ती मे यहां दहशत फैलाने आते है, आप सबकी रोजी रोटी ही टूरिस्ट हैं ,यदि वे आना बंद कर दिए तो भूखों मर जायेंगे । साहब! यही तो रोना है, पंडित भाईयो को पहले यहां से भगाया, अब जो भी विरोध करते है,, मार डालते है। कहते है फौज का सपोर्ट मत करो! सबको मालूम है कि धरना, प्रदर्शन, पाकिस्तानी झंडे फहराना, फौज पर पत्थरबाजी ,सब किसकी शह पर हो रहा है। फौज न हो तो, पुलिस तो दिन मे ही लुटवा डालेगी! साले! हरामखोर! , सभी मक्कार भरे पड़े है।आप भी आये होंगे तो चेकिंग के नाम पर हरेक पुलिस चेक पोस्ट पर पैसा लिए बिना आने नही दिया होगा। मैं जानता हूं आप नही बोलोगे ! मैने कहा कितनी बदनामी होती है भारत की ,जबरदस्ती कब्जा किए हुआ है कश्मीर पर! क्या आपको भी लगता है कि हमे भारत से अलग होना चाहिए ?बड़ी तल्खी मे वह बोला "कहां साहब! आप कैसी बाते करते हो? अरे सही मायने मे देखो तो, जम्मू कश्मीर के तीन भाग हैं जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। जम्मू और लद्दाख मे तो अमन चैन है। बचा कश्मीर तो उसके भी मात्र 7-8 जिल्लो मे दहशतगर्दी जोर पर है ,तो बोलो पूरे राज्य के मात्र बीस फीसदी क्षेत्र पर ही तो  इसका असर है, वो तो चुंकि श्रीनगर राजधानी है जहांपर मीडिया कवरेज ज्यादा है और पाकिस्तान मे बैठा कुत्ता भौंकता ज्यादा है ,इसलिए आप लोग अधिक सुनते हो।शिकारे मे चलते चलते हम लोग काफी आगे निकल आये थे, सलीम ने कहा "अब आगे जाना खतरे खाली नही"।हमने कहा "लौटो। रास्ते मे सलीम दर्द भरे कश्मीरी गीत गुनगुनाने लगा था और मै आम कश्मीरी के दर्द को महसूस कर रहा था,कि वो पीड़ित है और हम राजनीति राजनीति खेल रहे हैं। फौजऔर दहशतगर्दो के बीच मे वो पिस रहा है। बंद, धरना, प्रदर्शन, कर्फ्यु, पत्थरबाजी, गोला बारी, पैलेट गन के बीच  मे उसके पापी पेट का सवाल गुम होकर रह गया है।एक तरफ उसे दहशतगर्द होने, उसका साथ देने, देशद्रोही होने , पाकिस्तान परस्त होने का आरोपी बनाया जाता है तो दूसरी ओर आतंकवादियो की गोलियां उसे भी बख्श नही रही है,उसके बहु-बेटियो की इज्जत खतरे मे है, तो आम जिंदगी हराम हो गई है। सलीम अपने दस साल के बेटे को खो चुका है, जिसे स्कूल  जाते वक्त  उसकी आंखो के सामने आतंकवादी उठाकर ले गए । बीबी फहीदा तबसे पागल हो गई है। सात साल बीत गए ,अभी रातो मे अचानक हड़बड़ाकर दरवाजे की तरफ भागती है कि कामिल दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। "क्या कहूं साहब मुझे भी कभी कभी लगता है कि अचानक वो पीछे से आकर मेरे कंधे पर झूल जायेगा और कहेगा" अब्बा मै आ गया' । पर मुझे भी मालूम है कि अब वो नही आएगा। सुना है किसी मिशन पर जेहादी बनाकर भेज दिया था, शहीद हो गया! पडो़स के अख्तर की खाला बता रही थी कि पठानकोट मे मिला था एकदिन। बोल रहा था जन्नत नसीब होगा और अब्बा अम्मी को कमांडर साहब पांच लाख रूपया भिजवायेंगे।दहशतगर्दो को इंसान और उसके प्यार की कीमत क्या मालूम? क्या फहीदा के जज्बात और प्यार की कीमत दे पाएगा वो? जो बेगुनाहो को मरने मारने के लिए अल्लाह ताला के पाक रसूल को बदनाम कर रहा है।खुदा खैर करे! कामिल को जन्नत नसीब करे! फहीदा को बताने और उसकी आस तोड़ने का साहस नही मुझमे! मै एक बदनसीब को बाप बोलते सुन रहा था!।मुझे लगा कि यह सिर्फ सलीम की कहानी नही बल्कि  दहशत मे जीते आम कश्मीरी की कहानी है।

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