पट्टीदारी का डाह

" का हो लाल भैया ! काहे सबेरे सबेरे मुंह लटकाये आ रहे हो? कोनो से झगड़ा मारपीट हो गया, कि भौजी से कहा सुनी हो गया! अरे! नही रे बटेसर! उ जो बगल वाली पोखरी मे मछली पालन होता है न! उसमें हरेक साल बरसात के महीने मे मछली मारा जाता है और बंटबारे मे हमेशा से प्रमुख जी का सबसे बडा हिस्सा जाता रहा है, कबहूं कोनों विवाद न हुआ। परंतु इ जो नयका नयका प्रधान सब हुए है न, वो सब अब कह रहे हैं कि जुग बदल गया है, अब प्रमुखी का उतना महत ना रहा, अब परधान सबसे ज्यादा महत वाला पोस्ट हो गया है इसलिए वो प्रमुख वाला हिस्सा और काम उसे चाहिए। अब बताओ इ नया नया लौंडा लोग, भले ही प्रधान हो जाय, कल तक साथे साथे चौक चौराहा घुमा फिरा करता था, सब सुकरम आ कुकरम साथे किया और आज बडका हाकिम हो गया है।उनको पावर चाहिए, बडका हिस्सा चाहिए, कुच्छो ना लेने देंगे, चाहे कुछ हो जाय । एतना ही नही गांव मे पंचायत शिक्षक, रोजगार सेवक,सफाई कर्मी ,सभे के नियुक्ति, और दंड देने का अधिकार भी चाहिए महाराज को! इ मुंह और मसूर की दाल !जानते हो" नया मुल्ला प्याऊज प्याऊज ज्यादा चिल्लाता है।बटेश्वरनाथ कान्वेंट प्रोडक्ट है और शहर मे स्कूली शिक्षक है। उसे जल्द ही सारा माजरा समझ मे आ गया।बोले" लाल भैया, समय को परखिए, सब समय एक समान नही होता। आदमी को समय के साथ स्वयं को बदलना चाहिए। शासन की नजर मे ग्राम पंचायत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण  है तो प्रधान तो पावरफूल हो ही गया न! अब जगदीश भले ही आपका लंगोटिया यार हो पर अब वह प्रधान निर्वाचित हो गया तो अब उसे वह सम्मान और आदर मिलना चाहिए। कहते हैँ ' घर का जोगी जोगडा आन गांव का सिद्ध"।बदले माहौल मे प्रमुख का महत्व उतना नहीं बचा जितना प्रधान का है तो मछली का सबसे बडा हिस्सा प्रधान को मिलना चाहिए। अरे! बटेसर तुम तो उनकी तरफदारी करने लगे, कुछ घूस वूस दिया है का ,ऊ लोग।चार अक्षर अंग्रेजी का पढ लिए तो हमको चराने निकले हो! मै सब जानता हूँ प्रमुख से सटने का क्या मतलब है! अरे ऊ रोज रोज हमारे सर पर नही न चढे रहेगा, साल मे एक बार हिस्सा लेने के बाद ऊ डिस्टर्ब नही न करता है।पर ई साला तो रोजाना गांवों मे ही रहेगा, अऊर टोका टाकी करता रहेगा।सर पर बैठ के नाच करेगा। ना! एकदम नही !भले ही हमको ज्यादा हिस्सा देना पडे ,प्रमुख जी ही सही हैं।प्रधानवा को तो हम पैदल ही बना कर छोडेंगे, जेतना ई कमजोर रहेगा, हमरा महत्व बना रहेगा। ई पावर पोलटिक्स है बबूआ! तुम नही समझोगे।मछली का बंटवारा तो सिम्बोलिक है, बात वर्चस्व स्थापित करने की है।यह डिसाइड करेगा कि असल मे राज कौन करेगा? तुमतो शहर ही जाओ और स्कूल मे पढाओ। बटेश्वरनाथ हंसते हुए वहाँ से निकल लिए।वह समझ गये कि यह सौतिया डाह या पट्टीदारी वाला केस है । किसी बाहरी के द्वारा शोषण किए जाने से वह पीडा नही होती जो किसी अपने  द्वारा किये जाने होती है।अपने को बढता देखने मे कष्ट  या आंतरिक पीडा होती है।

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