मल्टीवर्स- सृष्टि में कई ब्रह्मांड हैं


                        इंग्लैंड की एक कथा है जिसमें काफी दिनों पहले  इंग्लैंड में खेत में काम कर रहे किसानों ने खेत में घूमते दो बच्चों को देखा ,जिनके त्वचा का रंग हरा था। किसानों को देखकर बच्चे भागने लगे। किसानों ने  उन्हें पकड़कर उनका पता और परिचय पूछा तो बच्चों ने बताया कि वे भाई बहन हैं और दूसरी दुनिया के हैं। वे  गलती से यहां फंस गए हैं और उन्होंने वापस लौटने के अनेकों प्रयास किए परंतु वे वापस जाने में असफल रहे तो थक कर खेतों में बैठ गए। उन्होंने बताया कि एक दिन वे दोनों एक मैदान में भेड़ चरा रहे थे कि अचानक पास की एक गुफा से मधुर गीत की ध्वनि सुनाई दी। उस ध्वनि का पीछा करते करते उस गुफा में चले गए और यहां पहुंच गए । बाद में अथक प्रयास के बावजूद उन्हें उस गुफा का सिरा नहीं मिला। वे दोनों उसी गांव में रहने लगे और धीरे- धीरे उनका रंग भी इंसानों जैसा हो गया।  कुछ सालों बाद वह लड़का बीमार हो गया और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई और उस लड़की का विवाह इंग्लैंड के ही एक सम्राट से हो गया। ये कहानी मल्टीवर्स या अनेक ब्रह्मांड या अनेक दुनिया की अवधारणा की ओर इशारा करती है।

                

         हाल में कोरियाई सीरीज " द किंग"-ए इटरनल मोनार्क" को देखते हुए पैरेलल युनिवर्स और मल्टीवर्स को समझने का मौक़ा मिलता है। हमारे ब्रह्मांड के समान और भी ब्रह्मांड हैं या होंगे इस सिद्धांत पर वैज्ञानिकों में विचार चल ही रहा है। मल्टिवर्स सिद्धांत यह मानता है कि जिस तरह हमारी दुनिया है वैसी ही अनेक दुनिया इस सृष्टि में है अर्थात सभी दुनिया में हमारे जैसे कैरेक्टर मौजूद हैं और हमारी जैसी ही क्रियाविधि समानांतर चल रही है। "द किंग " में कुछ लोगों के पास वह चाबी है, जिससे वह एक दुनिया से दूसरी दुनिया में आ जा सकते हैं। वस्तुत यह सिद्धांत टाइम ट्रैवल के अतिरिक्त है,जिसमें आप सिर्फ एक ही दुनिया के विभिन्न कालों में आ जा सकते हैं। जब वह चाबी आधी होती है तो टाइम ट्रैवल हो पाता है और जब वह चाबी(बांसुरी) पूरी हो जाती है तो वह उसी काल में विभिन्न दुनिया में आ जा सकता है।

               वस्तुत: मल्टीवर्स एक वैज्ञानिक अवधारणा तो है, लेकिन हमारे वैज्ञानिक इसकी पुष्टि नहीं करते। संभव है कि हमारे ब्रह्माण्ड से भी आगे अरबों  प्रकाशवर्ष की दूर तक अनेक हमारी तरह  ब्रह्माण्ड फैला हुआ हो,जिसमें गैलेक्सी, तारे ग्रह और सभी कुछ मौजूद हो और पृथ्वी जैसे ग्रह भी मौजूद हों। वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार हम कभी भी प्रकाश की गति से  यात्रा नहीं कर सकते लेकिन कई वैज्ञानिकों ने अपने शोधों में ब्रह्माण्ड में कहीं भी तुरंत पहुंचने के लिए वॉर्महोल की उपस्थिति बताई है। सांइटिफिक फिल्मों और कथाओं में टाइम ट्रैवल आम बात है,जो प्रकाश की गति से तेज चलकर जाया जाता है। ब्रह्माण्ड में सबकुछ सार्वभौमिक नियमों से बंधा है जिसे गुरुत्व, परमाणु में इलेक्ट्रॉन प्रोटोन न्यूट्रॉन आदि का भार एक दूसरे से बंधने का नाभकीय बल आदि सब एक ही तरह के नियमों में बंधा है। संभव है कि  दूसरे ब्रह्मांड में कुछ अलग तरह के सार्वभौमिक  नियम हों ,जैसे इलेक्ट्रॉन ही न्यूट्रॉन प्रोटोन की तरह भारी हो, और इस तरह के अलग अलग नियम वाले कई ब्रह्माण्ड भी तो हो सकते हैं। यह मल्टीवर्स की वैज्ञानिक अवधारणा है। इस विशाल ब्रह्माण्ड में  अनेकों ग्रहों पर जीवन सम्भव हो सकता है और जिस प्रकार मनुष्य का स्वरूप प्रथ्वी की भौगोलिक स्थितियों और जींस के कारण ऐसा है ,उसी प्रकार उन ग्रहों पर जीवन का स्वरूप उन ग्रहों की भौगोलिक स्थितियों और जींस पर निर्भर करता है।  क्या किसी ग्रह पर बिल्कुल हमारे ग्रह जैसा वातावरण सम्भव नहीं ? क्या किसी ग्रह पर बिल्कुल मनुष्य की तरह सभ्यता का वजूद सम्भव नहीं?

             पहले माना जाता था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटती है लेकिन कोपरनिकस ने सबसे पहले यह बताया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तथा पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में नहीं है, बल्कि सूर्य है। ब्रूनो ने बताया कि हमारा सूर्य एक तारा है और ब्रह्मांड में अनगिनत तारे हैं।  आकाश अनंत है, तथा हमारे सौरमंडल की तरह अनेक और भी सौरमंडल इस ब्रह्मांड में है। 18 वी सदी आते-आते दूसरे सौरमंडलों के होने की ब्रूनों की कल्पना को सामान्य रूप से अपना लिया गया। सूर्य भी हमारी आकाशगंगा के अरबों तारों में से एक है और यह वहां भी केंद्र में नहीं है। जाहिर है इसके बाद  ब्रह्मांड के अनंत विस्तार और अन्य ब्रह्मांड होने की ओर सोचा जाने लगा। हमारा सौरमंडल हमारी आकाश गंगा मिल्की वे का एक छोटा सा भाग है , हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे लोकल ग्रुप ऑफ गैलक्सी का एक छोटा सा भाग है और लोकल ग्रुप ऑफ गैलक्सी, वर्गो सुपर क्लस्टर का एक छोटा सा भाग है और वर्गो सुपर क्लस्टर , लैनिके सुपर क्लस्टर का एक छोटा सा भाग है , और लैनिके सुपर क्लस्टर दृश्य ब्रह्माण्ड का एक अंश मात्र भाग है और दृश्य ब्रह्माण्ड पूरे ब्रह्माण्ड का केवल वो भाग है जहां से प्रकाश की किरणें हमारे ग्रह तक आ सकती है इससे हम ब्रह्माण्ड की विशालता का अनुभव कर सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे ब्रह्माण्ड की तरह अरबों ब्रह्माण्डो का अस्तित्व सम्भव है और यहीं से जन्म हुआ मल्टिवर्स या समानांतर ब्रह्माण्ड सिद्धांत का।

        

        मल्टीवर्स- की अवधारणा को भारतीय प्राचीन ग्रंथों से इस तरह समझा जा सकता है कि प्राचीन ग्रंथ  योगवशिष्ठ में वर्णित एक कहानी  के अनुसार किसी समय आर्यावर्त क्षेत्र में पद्य नाम का राजा राज्य करता था जिसकी एक पतिव्रता पत्नी लीला थी।  लीला ने मां सरस्वती की उपासना की कि  यदि उसके पति की मृत्यु उससे पहले हो जाए तो उनकी आत्मा महल में ही निवास करें। जब राजा का देहांत हुआ तो लीला ने उनका शरीर महल में ही सुरक्षित रखा। मां सरस्वती ने कहा कि भले ही उनका शरीर यहां है परंतु वे दूसरे सृष्टि में हैं और उनसे मिलने के लिए तुम्हें उसी सृष्टि वाले शरीर में जाना होगा। लीला ने अपना मन एकाग्र कर उस सृष्टि में प्रवेश किया। लीला को आश्चर्य हुआ कि उस सृष्टि में महाराज पद्य अभी मात्र 16 वर्ष के नवयुवक थे और एक विस्तृत क्षेत्र में राज्य कर रहे हैं।उसकी जिज्ञासा पर मां ने समझाया कि  जिस प्रकार केले के तने के अंदर एक के बाद एक परतें निकलती जाती हैं, वैसे ही सृष्टियों का एक क्रम है। वै उसे दूसरी सृष्टि में ले गयी जहां उनके पति एक ब्राह्मण थे और वो उनकी पत्नी थी।वहां भी उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी और वो कुटिया में रखे शव पर विलाप कर रहीं थी। लीला को उस सृष्टि की सारी स्मृतियां भी याद आ गई कि उस सृष्टि में उनका नाम अरुंधती था। ये बहु-ब्रह्मांड की अवधारणा ही तो थी। यही तो इस सीरीज के माध्यम से दिखाया गया है। हाल में आई फिल्म डा. स्ट्रैंथ में भी हीरो दूसरे ब्रह्मांड से आता है। एलियन का कांसेप्ट भी कहीं यही तो नहीं  है। क्या पता वो दूसरे ग्रह से नहीं बल्कि दूसरे ब्रह्मांड से आये हैं। भारतीय पौराणिक ग्रंथों में की लोकों की अवधारणा रही है स्वर्ग लोक, मृत्यु लोक, देव लोक, पाताल लोक, नाग लोक इत्यादि। 

                           मल्टीवर्स, जिसे एक सर्वव्यापी या मेटा-ब्रह्मांड के रूप में भी जाना जाता है, कई ब्रह्मांडों का एक काल्पनिक समूह है। साथ में, इन ब्रह्मांडों में वह सब कुछ शामिल है ,जो मौजूद है। अंतरिक्ष, समय, पदार्थ, ऊर्जा और भौतिक कानूनों और स्थिरांक की संपूर्णता जो उनका वर्णन करती है। मल्टीवर्स के भीतर विभिन्न ब्रह्मांडों को “समानांतर ब्रह्मांड”, “अन्य ब्रह्मांड” या “वैकल्पिक ब्रह्मांड” कहा जाता है। वस्तुत मल्टिवर्स अवधारणा कल्पना मात्र नहीं है ,बल्कि मल्टिवर्स का सिद्धांत अनेक क्वांटम प्रयोगों और मैथमेटिकल कैलकुलेशन का परिणाम है।  सभी वैज्ञानिक स्पेस और टाइम के आकार के बारे में एकमत नहीं हैं परंतु ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि स्पेस-टाइम का आकार फ्लैट है और जो अनंत तक फैला हुआ है,तो इस कारण अनेक ब्रह्माण्ड होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि कभी न कभी प्रत्येक कॉन्फ़िगरेशन खुद को रिपीट करेगा। अगर ऐसा है तो हमारी आकाशगंगा, हमारे सौर मण्डल , हमारे ग्रह यहां तक की हमारे प्रतिरूप भी रिपीट होते होगें और हमारा पूरा ब्रह्माण्ड भी रिपीट होगा और हमारे ब्रह्माण्ड जैसे अनेकों ब्रह्माण्डो का वजूद सम्भव हो सकता है जिनमें हमारे प्रतिरूप अपने अलग -अलग निर्णयों के कारण अलग- अलग तरह की लाइफ जी रहे होंगे। अलेक्ज़ेंडर विलनेकिन द्वारा प्रस्तावित आदिम महास्फिति से पता चलता है कि अन्तरिक्ष असंतुलित अर्थव्यवस्था की भांति अराजकता की स्थिति में तीव्र गति से विस्तृत हो रही है, और बुलबुलों की उत्पत्ति हो रही है। यह विस्तार ही बुलबुलों को जन्म दे रहा है, जोकि नए ब्रह्मांडों की उत्पत्ति का कारण है। ब्रह्मांड के विस्तार ने ब्रह्मांड को एक बुलबुला बना दिया और इस बुलबुले से नये ब्रह्मांडों की उत्पत्ति हुई, जिनमें न कोई आपसी जुड़ाव था और न ही उनके भौतिकी के नियम-कानून एक हैं। आसान शब्दों में कहें तो प्रत्येक बिग बैंग से एक फैलते बुलबुले का जन्म हुआ होगा और हमारा ब्रह्मांड उनमें से एक विस्फोट की उपज है।

 स्ट्रिंग थ्योरी  के अनुसार चार आयामों के  अतिरिक्त अन्य आयामों का अस्तित्व भी सम्भव है। इन आयामों में हमारे ब्रह्माण्ड की तरह अनेकों ब्रह्माण्डो के अस्तित्व  की संभावना है,परंतु हम इन्हें नहीं देख सकते क्योंकि ये दूसरे आयामों में स्थित हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन समानांतर ब्रह्माण्डो में हमारे जीवन की हर संभव घटना घटित हो रही होगी। क्वांटम यांत्रिकी निश्चित परिणामों के बजाय संभावनाओं के संदर्भ में दुनिया का वर्णन करता है। यदि आप एक चौराहे पर पहुँचते हैं ,जहाँ आप दाएँ या बाएँ जा सकते हैं, तो वर्तमान ब्रह्मांड दो डाटर्स युनिवर्स  को जन्म देता है, जिनमें एक ब्रह्माण्ड में आप दाएं जाते हैं और दूसरे ब्रह्माण्ड में बाएं। इस प्रकार आपके प्रत्येक निर्णय के साथ एक नए ब्रह्माण्ड का जन्म होता जाता है। एम आइ टी  के सिद्धांत-प्रस्तावक मैक्स टेगमार्क कहते हैं कि "मुझे वास्तव में विश्वास है कि कोई अन्य ब्रह्मांड का अस्तित्व है, जो हमारे अस्तित्व से स्वतन्त्र है और उसका अस्तित्व हमेशा रहेगा ,चाहे हम मनुष्यों का अस्तित्व रहे या न रहे।"

                   जब हम  किसी काम को प्रारंभ करते हैं तो कभी – कभी हमें महसूस होता है कि यह काम हम पहले भी कर चूके हैं जबकि वास्तव में हम वह काम पहली बार ही कर रहे होते हैं।  कभी कभी हम किसी नये जगह जाते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि हम यहां पहले भी वहां आ चुके हैं, जबकि वास्तव में हम उस स्थान पर पहली बार ही आए होते हैं। इन पूर्वाभास के पीछे का रहस्य क्या है? कुछ लोगों की मानें तो ये रहस्य समानांतर ब्रह्माण्ड से जुड़ा हुआ है।  ऐसे ब्रह्माण्ड, जिसमें सबकुछ हमारे ब्रह्माण्ड की तरह ही है।  उस समानांतर ब्रह्माण्ड में हम उस काम को पहले ही कर चुके होते हैं, जिसे यहां हम करना प्रारंभ करते हैं। समानांतर ब्रह्माण्ड की कुछ स्मृतियां कभी-कभी हमारे मस्तिष्क में आ जाती हैं,  जिससे हमें लगता है कि वह कार्य हम पहले ही कर चुके हैं या उस जगह हम पहले ही जा चुके हैं। यह भी माना जाता है कि  सपनों का कारण भी समानांतर ब्रह्माण्ड में घट रही घटनाएं होती हैं। लगभग हर व्यक्ति को सपने आते हैं, जिनमें कुछ डरावने तो कुछ अच्छे सपने होते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि जो घटनाऐं हम अपने सपनों में देखते हैं, वे घटनाएं किसी न किसी समानांतर ब्रह्माण्ड में मौजूद हमारे प्रतिरूप के साथ घट रही होती हैं। इन बातों के कोई प्रत्यक्ष प्रमाण तो नहीं हैं परंतु समानांतर ब्रह्माण्ड के द्वारा इसकी अनुकूल व्याख्या होती है, जिस कारण लोग इसमें विश्वास करते हैं।

              सर्वप्रथम अमेरिकी दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने वर्ष 1895 मे बहु-ब्रह्मांड (Multi universe) के लिए मल्टीवर्स शब्द का उपयोग किया। समानांतर ब्रह्मांड (Parallel universe) की अवधारणा का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1954 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोध छात्र हुग एवेरेट ने दिया था। एवेरेट की इस अवधारणा का वर्षों तक मजाक उड़ाया जाता रहा। समानांतर ब्रह्मांड सिद्धांत के अनुसार किसी भी क्रिया के सभी संभव परिणामों के अनुसार ब्रह्मांड का उतने ही भागों में विभाजन हो जाता है। प्रत्येक ब्रह्मांड मूल ब्रह्मांड का ही प्रतिरूप होता है, लेकिन किसी भी क्रिया का परिणाम हरेक ब्रह्मांड में अलग-अलग होता है। जब आप कोई लाटरी निकालते हैं और यदि हम अपने इस ब्रह्मांड में हार जाएंगे तो किसी अन्य ब्रह्मांड में हम जीत भी जाएंगे। इसी प्रकार से किसी अन्य ब्रह्मांड में महात्मा गांधी और अल्बर्ट आइन्स्टाइन जीवित होंगे। संभव है वहां हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु बम की त्रासदी नहीं झेलनी पड़ी होगी। दरअसल इस परिकल्पना के अनुसार किसी क्रिया के परिणाम केवल दो ब्रह्मांडीय भागों में ही नहीं विभाजित होते हैं, बल्कि अनंत ब्रह्मांडों में विभाजित होते हैं। वर्तमान में समानांतर ब्रह्मांड की अवधारणा के पक्ष में ब्रायन ग्रीन, मिचिओं काकू, स्टीफेन हाकिंग सदृश भौतिक विज्ञानी खड़े हैं। तो अब आप यह मान कर चलिए के आपके हमशक्ल इस सृष्टि में अनेकों हैं जो एक ही समय पर हरेक ब्रह्मांड में अलग अलग जिंदगी या समान जिंदगी जी रहे हैं। संभव है कि उस भारत में  राजतंत्र है और आप राजा के सेवक।

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल