अनारकली --मिथक या हकीकत

अभी कुछ दिन पहले जी फाइव की बेव सीरिज "ताज- डिवाइडेड बाई ब्लड" देख रहा था। कहानी मुगल बादशाह अकबर और उसके तीनों बेटों की है। जाहिर जब अकबर के बड़े बेटे सलीम का जिक्र आएगा तो अनारकली की भी चर्चा अवश्य होगी। लेकिन आम प्रचलित कथाओं के विपरीत इसमें अनारकली को अकबर की बीबी और बेटे दानियाल की मां के रूप मे दिखाया गया है। सलीम और अनारकली की प्रेम दास्तान में सलीम को यह नहीं मालूम है कि अनारकली उसकी सौतेली मां है और जब यह उसे मालूम होता है तो वह उससे रिश्ता खत्म करने जाता है, उसी समय साजिश का शिकार होकर अकबर द्वारा पकड़ लिया जाता है। अकबर द्वारा चुपके से देश निकाला देने के बाद अनारकली अपने बेटे दानियाल के हाथों मारी जाती है। हालांकि लोगों की नजर में यही है कि अनारकली को दीवार में चुनवा दिया गया था। मुद्दा यह है कि क्या यह इतिहास के साथ छेड़छाड़ है या, वास्तविक इतिहास को सामने लाया गया है। अनारकली कौन थी, वह थी भी या नहीं? अकबर और सलीम से उसका क्या रिश्ता था? यह बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन अनारकली की ऐतिहासिकता को लेकर यह तथ्य ध्यातव्य है कि समकालीन किसी भी इतिहासकार या लेखक ने उसका जिक्र नहीं किया है। यदि वह अकबर  की परम प्रिय बेगम और दानियाल की मां थी तो भला आइने अकबरी या अकबरनामा में उल्लेख क्यों नहीं है? संभव है कि अकबर ने  इसे अपनी जिंदगी का काला अध्याय मानकर उसका उल्लेख न होने दिया । लेकिन किताब जहांगीरनामा या तुज्के जहांगीरी में उसका नाम क्यों नहीं है? जबकि एक ओर यह कहा जाता है कि जहांगीर ने अनारकली की कब्र बनाई और उसपर अपना संदेश भी लिखवाया तो अपनी जीवनी में उल्लेख क्यों नहीं किया? ना तो अबुल फजल,ना बदायुनी किसी ने नहीं लिखा, ना ही अन्य किसी समकालीन इतिहासकार ने! अनारकली की खूबसूरती, उनके नृत्‍य , ऐतिहासिकता और उसके अंत को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों की अलग-अलग राय है। दिलचस्‍प है कि अनारकली की जिंदगी एक ऐसे राज की तरह है, जिसकी सटीक पुष्‍ट‍ि कभी नहीं हो सकी। तो क्या अनारकली एक काल्पनिक किरदार है जो सिर्फ दंत गाथाओं, किंवदंतियों और जन श्रुतियों में ही विद्यमान रहा। यदि ऐसा है तो भला  पाकिस्‍तान के पंजाब प्रांत में ताजमहल की तरह दिखने वाला अनारकली का मकबरा किसका है?


           असल में अनारकली के बारे में सबसे पहला ऐतिहासिक उल्लेख  विलियम फिंच  नामक अंग्रेज व्यापारी और यात्री ने लिखा था, जो कि सलीम अर्थात जहांगीर की बादशाहत सम्भालने के 3 वर्ष बाद भारत आया था। वह 1608 से 1611 तक लाहौर में रहे थे, यानी अनारकली की मौत के 9 साल बाद फिंच लाहौर में थे। ऐसे में उन्‍होंने जो बातें सुनी, समझी और जानकारी इकट्ठा की वो ज्‍यादा सटीक हो सकती है। फिंच की यात्रा वृत्तांत रेवरेंड सैमुअल परचेस ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अभिलेखागार मे  पायी  थी और अपने " पिलग्रिम्स " में एक अध्याय के रूप में इसका एक संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित किया। फिंच के अनुसार – अकबर की बहुत सी पत्नियों  में से एक   पोमग्रेनेट कर्नेल (अनारकली) के शहजादा सलीम के साथ सम्बंध थे, जिसकी भनक लगते ही अकबर ने उन्हे जिन्दा दीवार में चुनवा दिया। वहीं पर सलीम ने उसकी याद में  अनारकली का मकबरा बनवाया। फिंच बताते हैं कि अनारकली से ही अकबर को बेटा दानियाल मिर्जा हुआ था। युरोपीयन पादरी एडवर्ड टेरी , जो विलियम फिंच के कुछ साल बाद भारत  आए थे, ने लिखा था कि अकबर ने सम्राट की सबसे प्यारी पत्नी अनारकली के साथ अपने रिश्ते के लिए जहांगीर को राजगद्दी से वंचित करने की धमकी दी थी, लेकिन अपनी मृत्यु-शय्या पर उन्होंने इस धमकी को निरस्त कर दिया। लिसा बलवैनलिलर के अनुसार, अधिकांश किंवदंतियों में अकबर के हरम की दासी अनारकली को जीवनसाथी, उपपत्नी या नौकर के रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेखक मुनिलाल के अनुसार, अनारकली सलीम की मां मरियम-उज् -जमानी के घर में नौकरानी थी। हारून खालिद के अनुसार  बादशाह की रखैल को अपने विद्रोही बेटे से प्यार होना असम्भव दिखता है। जहांगीर के पोते दारा शिकोह ने अपनी पुस्तक "सकीनात अल-औलिया" में लाहौर में संत मियां मीर के निवास वाले एक अनार के बाग का उल्लेख  किया है, जिसमें  एक मकबरा भी था। "लाहौर पास्ट एंड प्रेजेंट" के लेखक मोहम्मद बाकिर के अनुसार, अनारकली मूल रूप से सिर्फ उसी बगीचे का नाम था, जिसमें जहांगीर की पत्नी साहिब-ए-जमाल का मकबरा था। इतिहासकार  अनिरुद्ध राय के अनुसार मकबरे पर अंकित सन् 1599 और सलीम नाम महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि यह मकबरा उनके बादशाह बनने के बाद बनवाया गया होता तो उनका उपनाम जहाँगीर लिखा गया होता । अकबर ने सन् 1598 में लाहौर छोड़ दिया था, इसलिए यह संभव नहीं है कि अकबर ने सन् 1599 में कब्र बनाने का आदेश दिया । जहांगीर की पत्नी साहिब-ए जमाल की मृत्यु सन् 1599 में हुई थी, इसलिए उसकी कब्र हो सकती है। खालिद के अनुसार बाद के फिक्शन लेखकों द्वारा यह प्रेम कहानी  विकसित की गई और साहिब ए जमाल के मकबरे को लोगों ने अनारकली  के मकबरे के रूप में डाल दिया। लास्ट स्प्रिंग: द लाइव्स एंड टाइम्स ऑफ द ग्रेट मुगल्स के लेखक  अब्राहम एराली ने भी ऐसा ही  लिखा है । लेकिन प्रिंस दानियाल की मां की मृत्यु 1596 में हुई थी, जो मकबरे पर अंकित तारीखों से मेल नहीं खाती। कुछ इतिहासकार यह कहते हैं कि अकबर की मृत्यु के बाद, सलीम ने अनारकली को खोज कर शादी कर ली और उसे नूरजहाँ का नाम दिया। अकबरनामा में दानियाल की माँ का नाम नहीं बताया गया है ,लेकिन वर्ष 1596 में दानियाल की मां की मृत्यु का उल्लेख है। बीसवी सदी के एक इतिहासकार प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी ने अपनी पु‌स्तक ‘दास्तान मुगल महिलाओं की’ में उल्लेख किया है कि सलीम और अनारकली का रिश्ता बहुत पाक था, जिसे खुद शहज़ादे सलीम ने गंदा किया था। जहां तक अकबरनआमआ में  अनारकली के उल्लेख न होने का प्रश्न है तो स्पष्ट है कि खुद अकबर बादशाह की सरपरस्ती में लिखे जाने वाले इतिहास में ऐसे वर्जित संबंध का जिक्र हो भी नहीं सकता था। जहांगीर की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ या ‘जहांगीरनामा’ में भी अनारकली की कोई चर्चा नहीं है। इसके पीछे संभवतः जहांगीर की बेहद महत्वाकांक्षी और दबंग बेगम नूरजहां का डर या लिहाज़ रहा होगा।         

                  तहकीकात-ई-चिश्तिया के लेखक नूर अहमद चिश्ती के अनुसार अनारकली अकबर की प्रिय दासी (कनीज)  थी, जिससे अकबर की अन्य दो बीवियां ईष्या करती थी।अकबर जब दक्कन की लड़ाई में गए थे, तब अनारकली बीमार  होकर मर गयी। अकबर जब वापस लौटा तो उसने अनारकली की याद में एक मकबरा बनाने का आदेश दिया। कन्हैया लाल भी अपनी किताब 'तारीख-ए-लाहौर' में लिखते हैं कि अनारकली की मौत बीमारी से ही हुई थी, जिसके बाद अकबर ने उसकी कब्र पर मकबरा बनवाया। लेकिन ऐसा था तो मकबरा पर सलीम द्वारा अंकित शेर कैसे आया कि  “यदि मैं सिर्फ एक बार अपने प्यार को देख सकूं, तो मैं कयामत तक अल्लाह का आभारी रहूँगा”। 18वी शताब्दी के ही एक अन्य इतिहासकार अब्दुल्ला चुग़ताई ने मकबरे के सन्दर्भ में बिलकुल अलग मत दिया हैं कि ये मकबरा जहांगीर की पत्नी साहब ए जमाल की याद में अनार के उद्यान के बीच में बनावाया गया था, जो कि जहांगीर की प्रिय पत्नी थी। समय के साथ उसका वास्तविक नाम लुप्त हो गया और आस-पास अनार के बगीचे होने के कारण उसका नाम अनारकली पड़ गया। अनारकली की कब्र पर दो तारीखें दर्ज़ हैं – 1008 हिजरी (1599 ई.) जब अनारकली की मृत्यु हुई और 1025 हिजरी (1615 ई.) जब इस मकबरे का निर्माण पूरा हुआ। महाराजा रणजीत सिंह के बेटे शहजादा खड़क सिंह ने अनारकली के मकबरे को अपना  निवास स्थान बना लिया।महाराजा के फ्रैंच जनरल जीन बेप्टीसेट वेन्चुरा ने इसे महल के रूप में परिवर्तित कर अनारकली हाऊस का नाम दिया। ब्रिटिशों ने इसे खरीद कर बाद में  गवर्नर जनरल पंजाब लारैंस हैनरी का निवास बनाया। सन् 1871 के बाद से अब तक यह मक़बरा पंजाब सरकार के अभिलेखागार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। मक़बरे के पास ही लाहौर का बेहद प्रसिद्ध तीन सौ साल से ज्यादा पुराना अनारकली बाज़ार स्थित है। यदि अनारकली का अस्तित्व सच है तो सलीम से उसकी मुहब्बत मिथक कैसे हो सकती है ? अनारकली और सलीम की प्रेम कहानी जायज़ थी या नाजायज, इस पर बहस की गुंजाईश है। 


            अनारकली का असली नाम नादिरा बेगम था। हालांकि कुछ लोग शर्फुन्निसा भी कहते हैं। वह ईरान से व्‍यापारियों के कारवां के साथ लाहौर आई थी। नादिरा बेगम इतनी खूबसूरत और कुशल नृत्यांगना थी कि अकबर ने उसे मुगल दरबार में नाचने के लिए आमंत्रित किया। बादशाह अकबर ने ही नादिरा को अनारकली नाम देकर अपनी सबसे खास कनीज की पदवी दी। इतना तो स्पष्ट है कि अनारकली कोई काल्‍पनिक नाम और किरदार नहीं थी। परंतु मुगल इतिहास में से अनारकली का उल्लेख न होना, बताता है कि बादशाह अकबर उसे सबसे छुपाना चाहते थे। उसने मुगलिया सल्‍तनत के बाप-बेटे को एक-दूसरे के ख‍िलाफ खड़ा कर दिया था। कहानी को बाद मे रोमांटिक बना दिया  गया । सर्वप्रथम लखनऊ के लेखक, नाटककार और इतिहासकार अब्दुल हलीम शरर ने अपनी एक कहानी ‘अनारकली’ में इस कथा का उल्लेख किया था। हांलाकि शरर ने खुद कहानी की भूमिका में इसे काल्पनिक और फतांसी बताया था। सलीम शरर के बाद सन् 1922 में नाटककार इम्तियाज अली ताज ने अनारकली पर एक मशहूर नाटक लिखा। इस नाटक में अनारकली को निम्न स्तर की एक कनीज़ के रूप में चित्रित किया गया है, जिसे शहज़ादे सलीम से प्रेम करने के जुर्म में अकबर ने दीवार में चिनवा दिया था। इसी नाटक के आधार पर ‘अनारकली’ और ‘मुगले आजम’ जैसी कालजयी फ़िल्में बनीं ।    ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत अनारकली को अकबर के दरबार की एक सुन्दर नर्तकी, कनीज़ या गुलाम के रूप में उल्लेखित किया गया, जिससे शहज़ादा सलीम प्रेम कर बैठा था। अकबर  कभी न चाहता  कि एक कनीज (दासी) हिंदुस्तान की मल्लिका बने। उसने सलीम को तख़्त से बेदखल करने की धमकी दी, लेकिन असफल होने पर गुपचुप तरीके से अनारकली को अपने महल की दो दीवारों के बीच चिनवा दिया। हालांकि यह भी कहा जाता है कि उस दीवार में पीछे के चोर रास्ते से निकालकर उसे अनजान जगह भिजवा दिया। हालांकि इस तथ्य की पुष्टि करने के कोई प्रमाण नहीं है। दानियाल द्वारा अनारकली के मारे जाने के भी कोई प्रमाण या उल्लेख कहीं नहीं है। लेकिन दीवार में अनारकली का चुनवाया जाना प्रेम कहानी को ट्रैजिक बनाने में ज्यादा सहायक साबित हो रहा था। स्पष्ट है कि  तथ्यों और घटना की परिस्थितियों में परिवर्तन का उद्धेश्य साहित्यकारों द्वारा एक वास्तविक पारिवारिक त्रासदी को लैला-मज़नू और ,शीरी-फ़रहाद के तर्ज़ पर एक रोमांटिक त्रासदी में बदलना रहा होगा और वे इसमें सफल भी रहे। सलीम -अनारकली की प्रेम दास्तान हिट हो गई।


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