बैंक कर्मियों की शामत आ गई है..

नववर्ष बैंक कर्मियों पर भारी पड़ने वाला है। अभी तो उन्हें लंबी कतारों, जनता की झिक झिक,सगे संबंधियों का अनुरोध, नेताओं एवं अधिकारियों का दबाव, माफियाओं की धमकी और व्यापारियों का प्रलोभन के दौर से गुजरना पड़ रहा है। भले उन्होंने इन सबके चलते वैध अवैध तरीके से कालाधन सफेद करने मे हेल्प किया पर अब जांच एजेंसियों के पूछताछ और टार्चर से गुजरना बाकी है। जगह जगह पकड़े जा रहे नये करेंसी नोट, उनके लिए गढ्ढा खोद रहे हैं।प्रधानमंत्री जी कहते हैं हमने आगे ही नही पीछे भी कैमरे लगा रखे हैं। पी एम ओ ने पांच सौ से अधिक बैंको का स्टिंग आपरेशन कराया है। सभी बैंक खातो मे " संदिग्ध ट्रांजेक्शन" वाले खातों का विश्लेषण किया जा रहा है ,उसी आधार पर आयकर विभाग और विजिलेंस विभाग छापेमारी कर रहा है। भले ही बैंकिंग सेक्टर को काफी लाभ होगा पर कर्मियों की जान सांसत मे फंसी है। नोटबंदी को एक महीना से उपर हो गया लेकिन बैंकों और एटीएम के सामने क़तारें बदस्तूर जारी हैं और जहाँ लाइन न दिखे, समझ लीजिए कि वहाँ नक़दी नहीं है! प्रधानमंत्रीजी ने कहा" हमे पचास दिन दो मै तुम्हें आर्थिक आजादी दूंगा। लेकिन हालात इस ओर इशारा नही करते की सबकुछ इतनी जल्दी सामान्य हो जाएगा।उपलब्धि के नाम पर कालाधन तो हासिल होने से रहा । हां !आतंकवाद की फंडिग पर असर जरूर पड़ा है और कैशलेस या लेस कैश इकानामी की ओर आगे बढने के संकेत अवश्य दिख रहा है।प्रधानमंत्री ने आठ नवम्बर के भाषण मे  चार बातें कहीं थीं- भ्रष्टाचार, काला धन , फ़र्ज़ी करेंसी और  आतंकवाद ।कैश के अत्यधिक सर्कुलेशन का सीधा संबंध भ्रष्टाचार से है' और ऐसे भ्रष्टाचार से कमाई गई नक़दी से महंगाई बढ़ती है, मकान, ज़मीन, उच्च शिक्षा की क़ीमतों में कृत्रिम बढ़ोत्तरी होती है।ख़ुद सरकार का अनुमान है कि क़रीब-क़रीब सारी रद्द की गई करेंसी बैंकों में वापस जमा हो जाएगी।दूसरी बात कि विकास दर पर इसका विपरीत असर पड़ेगा।भारतीय रिज़र्व बैंक ने मान लिया है कि विकास दर 7.6% से घटकर 7.1% ही रह सकती है।तीसरी बात यह कि एटीएम और बैंकों से पैसा पाने की लाइनें शायद अभी कुछ ज़्यादा दिनों तक देखने को मिले।हालांकि कल वित सचिव कह रहे थे कि 30 दिसम्बर तक 50 प्रतिशत रुपया सर्कुलेशन मे आ जाएगा।लेकिन सरकार की हाइपोथीसिस है कि ज़्यादा करेंसी से भ्रष्टाचार और महँगाई बढ़ती है, इसलिए वह 'लेस-कैश' या कैशलेस इकॉनॉमी की तरफ़ बढ़ना चाहती है, यानी बाज़ार में नक़दी जानबूझकर कम ही डाली जायेगी ।पुरानी करेंसी के बराबर नयी करेंसी नहीं ही आयेगी, ताकि लोग डिजिटल लेनदेन के लिए मजबूर हों।सरकारी कर्मचारियों को निर्देशित किया गया है कि अगले महीने का वेतन आहरण तभी होगा जब वो इस आशय का प्रमाण पत्र देंगे कि उन्होंने आन लाइन ट्रांजेक्शन या डिजिटल पेमेंट किया है।अभी 19 तारीख को शिक्षक पात्रता परीक्षा होने वाली है जिसमें शर्त है कि कर्मचारियों और अधिकारियों को दिया जानेवाला मानदेय आर टी जी एस या डिजिटल पेमेंट करना है।हम भी अख़बारों में तस्वीर देख रहे हैं कि किसी सब्ज़ीवाले ने या मछली बेचनेवाली ने पेटीएम, एम पैसा, स्टेट बैंक बडी से लेनदेन शुरू कर दिया है तो डिजिटल लेनदेन बेशक बढ़ा है लेकिन आठ नवंबर के बाद से डेबिट-क्रेडिट कार्ड से होनेवाले लेनदेन की संख्या बढ़ कर दोगुनी हो गई, लेकिन प्रति डेबिट कार्ड ख़र्च औसतन घट गया है। क्रेडिट कार्ड के मामले में यह गिरावट 25-30% तक है,क्योंकि लोग आटा-दाल-दवा जैसे ज़रूरी ख़र्चों के लिए कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन शौक़िया ख़र्चे फ़िलहाल रोक रहे है। आवश्यक खर्चों पर ही व्यय किया जा रहा है, फालतू खर्चों से बचा जा रहा है।लोगों के पास अंधाधुंध खरचने के लिए पैसे ही नही हैं।जो करेंसी निकाल रहा है, वह ख़र्च नहीं कर रहा है, इस डर से कि फिर से लाइन में लगना पड़ेगा।मोबाइल फ़ोन तक की ख़रीद में इस महीने भारी गिरावट देखी गई है!लोग सोच समझ कर खर्च कर रहे हैं और अपव्यय से बच रहे हैं।यह 'कम ख़र्ची' का सिन्ड्रोम अभी कुछ दिन रहेगा।यह बात देखने वाली है कि सरकार कैसे जनता को उनके अपने पैसे ही बैंकों से निकालने से रोक पाती है।बैंक कर्मियो को अभी बहुत झेलना है कि खाता धारक जब विड्रावल लेकर बैंक मे आते रहेंगे और कैसे वो उनको मना करते रहेंगे? जिस दिन आम जनता उद्देलित हो गई तो पहला टारगेट वो ही बनेंगे।बंगाल मे कल एक बैंक के बाहर लोगों ने तोड़फोड़ शुरु कर दिया। देश मे कई जगहों पर अब असंतोष के लक्षण दिखने लगे हैं। जनता के धैर्य की भी एक सीमा होती है। अब ज्यादा बरदाश्त नही कर पायेंगे। अभी तक तो वो " अपने कष्ट या दुख से दुखी नही थे बल्कि दूसरो  अर्थात बड़े लोगों के दुख से खुश थे"! पर जब यह असह्य हो जाएगा तो विस्फोट हो जाएगा और पहला शिकार बैंक कर्मी ही बनेंगे या बन रहे हैं।लोगों मे संदेश ये जा रहा है कि सरकार ने उनके लिए नये नोट तो पर्याप्त रुपये जारी किए थे परंतु बैंक वालों ने धांधली कर उसे बड़े व्यापारियों, हवाला कारोबारियों, अफसरों, नेताओं को दे दिया।भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है, जो नक़दी पर ही चलता है जिसमें करोड़ों मज़दूर हैं, रेहड़ी-पटरीवाले, छोटे दुकानदार और कारख़ानेदार, किसान और छोटी-मोटी सेवाएँ देनेवाले तमाम लोग हैं,उनकी कमाई पर असर हुआ है।बाजार मे आयी मंदी का असर  लोगों की नौकरी पर पड़ा है। कई लोग तो नोट बदलवाने मे लगे रहे और अनेकों को नौकरी छोड़नी पड़ी है।अब उनको बैंकिंग से जोड़ने की बात हो रही है।सभी सरकारी विभागों को इन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के खाते खुलवाने हेतु निर्देशित किया गया है। इससे बैंककर्मियों पर काम के दबाव के रुप मे बढेगा, जितने ज्यादा खाते होंगे बर्डेन उतना ही बड़ा होगा।देश में लगभग 43% खाते 'डारमेंट' हैं यानी इस्तेमाल में नहीं हैं तो इतने सारे लोगों को बैंकिंग से जोड़ना, उन्हें बैंकिंग लेनदेन और डिजिटल इकॉनॉमी का अभ्यस्त बनाना एक बड़ा लंबा काम है तबतक अर्थव्यवस्था पर दबाव बना रहेगा।असल मे काले धन का एक छोटा हिस्सा ही नोटों में रहता है,बाक़ी सारा काला धन तो ज़मीन-जायदाद, सोने-चाँदी, हीरे-मोती के रुप मे रहता है।कालाधन वाले नोट सफेद बनकर बैंको मे लौटा है।इनकम टैक्स विभाग ने एक बड़ा डेटा एनालिटिक्स साफ़्टवेयर तैयार किया है, जो बैंकों में जमा की गयी हर संदिग्ध रक़म को पकड़ेगा, नोटबंदी के बाद काले को सफ़ेद करने के लिए कैसा भ्रष्ट जुगाड़ तंत्र तैयार हुआ, कैसे कुछ बैंकों में कुछ 'ख़ास' लोगों को नोट बदले गए, कैसे कुछ लोगों तक लाखों-करोड़ों के दो हज़ार के नए नोट पहुँचे। नोटबंदी ने एक नए बैंकिंग भ्रष्टाचार को जन्म दिया और नए नोटों का काला धन रातोंरात पैदा कर दिया।दूसरे यह भी चीज़ों का अति सरलीकरण भी है कि 'कैशलेस लेनदेन' के बाद न टैक्स चोरी हो सकती है, न घूसख़ोरी।स्वीडन जैसे देश में तो सिर्फ़ दो प्रतिशत ही नक़द लेनदेन होता है, लेकिन टैक्स चोरों को पकड़ने के लिए वहाँ भी सरकार जूझती ही रहती है।बड़ी-बड़ी घूस तो आजकल कंपनियाँ बना कर ही ली जा रही है, बाक़ायदा चेक से।अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कहा कि नोटबंदी ने करीब एक बिलियन से भी ज्यादा लोगों के विश्वास को बर्बाद कर रख दिया है। प्रधानमंत्री के इस फैसले से देश की 85 फीसदी मुद्रा बेकार हो गयी।हालांकि, 2001 के बाद से ग्रामीण इलाकों में बैकों की शाखाएं करीब दोगुनी हो गई हैं, उसके बावजूद भारत के करीब 60 करोड़ गांव और शहर में रह रहे लोग अब भी बैकों से नहीं जुड़े हैं।इन लोगों को अपना जीवन जीने के लिए नोटों की करेंसी ही एक मात्र जरिया है। इन सबको बैंकों से जोड़ना है और सारे लेनदेन बैंकों के माध्यम से किए जाने हेतु प्रोत्साहित करना है।बैंको की संख्या बढानी होगी और कर्मचारियों की संख्या भी। प्राइवेट बैंक तो वैसे भी जहाँ प्रोफिटेबल क्षेत्र होगा ,वहीं अपनी शाखा खोलेगा, ऐसे मे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पर जिम्मेदारी बढ गई है।एक्सिस बैंक को अपनी खोई साख वापस लाने मे समय लगेगा। अभी और बैंक कर्मियों की गिरफ्तारी होनी तय है क्योंकि बिना उनके सहयोग से इतनी बड़ी मात्रा मे नये नोटों का इन पकड़े जानेवालों के पास पाया जाना संभव नही है। सी बी आई की रडार पर आर बी आई के भी अधिकारी हैं।

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