बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है..

" जैसी करनी वैसी भरनी" फिल्म और "अवतार" फिल्में हमें याद हैं। ये समाज को आईना दिखाती है कि किस तरह आज हमारे मां बाप अकेलेपन के अंधेरो मे खो रहे है और उनके दर्द का अहसास हमें तब होता है जब हम स्वयं उस अवस्था मे पहुंते हैं। जीवन के इस चक्र मे सभी का रोल बदलता रहता है! " सास भी कभी बहू थी!" पर हमें सास के दर्द और परेशानी का अहसास तब तक नही होती जबतक वो स्वयं सास नही बन जाती और तब उसे लगता है कि उसने भी अपनी सास के साथ अच्छा नही किया था। पर तब क्या "गुजरा हुआ जमाना आता नही दुबारा"! बेटा बहु को भी तब कष्टों का अहसास होता है जब वो खुद मां बाप के रोल मे वृद्ध हो जाता है। तब पछताये का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत!" आश्चर्य तो तब होता है जब वो अपने बच्चों के सामने अपने मा बाप के साथ दुर्व्यवहार करता है और इस कांफिडेंस के साथ कि उसका बच्चा उसके साथ वैसा ही नही करेगा!"आदमी इतना व्यक्तिवादी और स्वकेंद्रित हो गया है कि उसे अपने परिवार मतलब पति,पत्नी और अपने बच्चों को छोडकर कुछ भी नही दिखता। बेचारा मां बाप अपने पोते पोतियों को देखने तक के लिए तरस जाता है। शहरों के बगीचों मे इन अकेले वृद्धो को आंखो मे सूनापन लिए देखा जा सकता है।ऐसी ही एक घटना किसी सोशल मीडिया ग्रुप मे पढ रहा था कि एक लड़के से एक बुजुर्ग दम्पति ने कहा "बेटा हमें आता नही! क्या हमारा एक फेसबुक एकाउंट बना दोगे? क्यों नही! वो बोला" क्यों नही! किस नाम से बनाना है?वृद्ध ने कहा- "किसी लड़की के नाम से बना दो और कोई अच्छी सी फोटो लगा देना! वो चिहुंका" भला क्यों?"फेक अकाउंट क्यों ??"वृद्ध ने कहा- "बताता हूं! पहले बना तो दो! उसने अकाउंट
बना दिया!फिर वृद्ध ने कहा- "बेटा कुछ अच्छे लोगो को ऐड कर दो।"लड़के ने कुछ अच्छे लोगो को रिक्वेस्ट सेंड कर दी।फिर उसने अपने बेटे का नाम सर्च करवा के रिक्वेस्ट सेंड करवा दी।जब काम पूरा हो गया तो लड़के ने कहा"अंकल जी अब तो आप बता दीजिये आपने ये फेक अकाउंट क्यों बनवाया?"वृद्ध की आँखे नम हो गयी, उनकी पत्नी की आँखों से तो आँसू बहने लगे।उन्होंने कहा- "मेरा इकलौता बेटा शादी के बाद वो हमसे अलग रहने लगा है। सालो बीत गए अब वो हमारे पास नहीं आता।जब हम उसके पास जाते थे तो वो नाराज हो जाता था मेरी बहू हमें पसंद नही करती है। हमारा रहना उसे बंधन लगता है। कहती है बच्चे हमारे रहने से बिगड़ जायेंगे। हम गवांर और देहाती लोग हैं, उसके घर मे धब्बा लगते हैं। आप अपने घर में रहिये, हमें चैन से यहाँ रहने दीजिये।बार बार अपमानित होने पर वहाँ जाना छोड़ दिया है। पर पोता पोती को देखने का काफी मन करता है, अब तो वो बड़े भी हो गये होंगे।  उस दिन पड़ोसी ने कहा कि फेसबुक में लोग अपने फैमिली फोटो और फंक्शन की इमेज डालते है,तो सोचा फेसबुक में ही अपने बेटे से जुड़कर उसके हाल चाल के बारे में जान लेंगे और अपने पोता पोती को भी देख लेंगे, मन को शांति मिल जाएगी।भले ही वो हमारा हाल चाल न जानना चाहता हो पर हम तो मां बाप हैं न! बच्चों का हाल चाल जानने को दिल तड़प जाता है। अपने नाम से अकाउंट बनाते तो वो हमे फ्रेंड लिस्ट मे एड नही करता इसलिए हमने ये फेक अकाउंट बनवाया।"दंपत्ति के नम आँखों को देखकर उसका दिल भर आया और सोचने लगा कि माँ बाप का दिल कितना बड़ा होता है जो औलाद के कृतघ्न होने के बाद भी उसे प्यार करते हैं और औलाद कितनी जल्दी माँ-बाप के प्यार और त्याग को भूल जाती है।" बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है"! अपने न्युक्लीयर फैमिली के सेहत के लिए अम्मा बापू को इस कदर हानिकारक मानते हैं कि अपने परिवार मे भी नो इंट्री! पत्नी का सिरदर्द बढ जाएगा और बच्चो का रहन सहन! अल्टीमेटली बेटा तो बीमार पड़ेगा ही क्योंकि "कनफुकवा गुरू" के इच्छा के बिना परिवार मे पत्ता भी जो नही हिलता है ,तो " सास सुर इज इंजुरियस टू फैमिली हेल्थ!"बचपन की घटना याद आती है कि जब उस समय बंबई कहे जानेवाले शहर से राजनारायण काका ,काकी के साथ गांव आये हैं। लेकिन उनकी गाड़ी रोड पर ही खड़ी रही, वो अकेले अपनी मां से मिलने गये टोले मे!हम बच्चों की टोली दौड़ते हुए कार को देखने रोड पल चली गई थी। काकी  थी तो मधुबनी की पर हमेशा से बंबईया बनी रही, गाड़ी से उतरी तक नही। दाई दौड़ी अपनी बहू से मिलने चली आई। काका बारह साल पर गांव आये थे, दाई अकेली रहती है यहाँ,अहसान इतना कर देते हैं कि हरेक दो तीन महीने पर कुछ मनीआर्डर भेज देते हैं। दाई इसी मे खुश है कि राजनारायण काका इतने बड़े शहर मे बड़े से मकान मे रहते हैं, कार से चलते हैं। पर इनके अकेलेपन को बेटे बहू की दरकार नही है क्योंकि वो गांव मे रहती है जहाँ पूरा टोला ही एक परिवार के समान है। अब वो बात नही रही।अब अकेलापन अखरता है। मेरे विभाग मे कई सीनियर रिटायरमेंट के बाद अमेरिका अपने बच्चों के पास जाते रहते हैं। यहाँ वो अकेले हैं, बच्चे वहां सेटल हो गये हैं। वो नही आ पाते, ये ही चले जाते हैं। हम तो कहते " बड़े ऐश हैं सर आपके! फारेन टुर कर रहे हैं, हंसते वो भी ,पर खोखली हंसी! अकेलेपन और अपने जमीन से बिछड़ने का दर्द उनकी बातों मे झलक जाता है।क्या करते! पहले बच्चे जब कुछ नही करते, गांवों मे खेती बारी करते थे ,तो इसका कष्ट होता कि क्यों नही बाहर कमाने जाते हो! और अब जब बाहर कमाने चले जाते हैं तो बोलते हैं क्यों बाहर जाकर वहीं के होकर रह जाते हो!सोशल मीडिया इन सबको आपस मे मिलाता है। संचार क्रांति ने हमे " गलोबल विलेज" का ग्रामीण बना दिया है पर इससे ग्रामीण संस्कृति कोसों दूर है।

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