बेईमानी के लिए बस मौके का इंतजार है

एक प्रचलित कहावत है। " फिसल पड़े तो हर हर गंगा"! कहीं कोई जुगाड़ नही है तो कहेंगे ,हम तो कोई प्रयास ही नही किए!जाहिर है इस देश में ईमानदार वही है जिसके टेबल पर पैसा नहीं है अर्थात जहाँ किसी फाइल पर पैसे का स्कोप नही है। जिसके लटकाने से कोई फाइल पर वजन रखने वाला चिरौरी करने नही आएगा तो क्या मतलब! काम हुआ तो अच्छा ,न हुआ तो भी अच्छा! यहाँ जिनके टेबल पर पैसे का कोई स्कोप नही है वो सही टाइम पर ऑफिस छोड़ देते हैं, और जहाँ कुछ स्कोप है तो देर रात फाइल निपटाये जाते हैं और दिखाने के लिए कि हम तो जनहित मे हमेशा तत्पर हैं और देर रात तक या हमेशा उपलब्ध हैं। इतना ही नही कोई विभाग या महकमा तभी तक भ्रष्ट या कामचोर दिखाई देता है जबतक अपने घर का कोई सगा उसमें  भर्ती नही हो जाता। भर्ती होते सारी अच्छाईयां और वहाँ की परेशानियां जगजाहिर करने लगते है। जैसे इस डिपार्टमेंट से ज्यादा काम या समाज सेवा कहीं और होतीं ही नही है।जाहिर है इस देश में पुलिस भ्रष्ट तभी तक लगती है जब तक उनका बेटा दारोगा में भर्ती नही हुअा हो और इस देश मे सरकारी स्कूल का शिक्षक तभी तक कामचोर लगते हैं जब तक उनकी बेटी या बेटा शिक्षक नही बने होते है।भ्रष्टाचार हमारे रग रग मे फैल गई है। तो फिर आज हम सिर्फ बैंक कर्मियों को क्यों गाली दे रहे हैं। उन्हें भी मौका मिला है तो भला क्यों छोडें। जहाँ कुएं मे ही भांग पड़ी है तो सब मतवाले हो ही जायेंगे। जिसको जब और जहाँ मौका मिलता है ,हाथ साफ करने से थोड़े न छोड़ता है। मौका नही है तो आप सबसे बडे संत हैं, महात्मा हैं। इस बहती गंगा मे डुबकी लगाना सब चाहता है बस एक मौके की दरकार है। जो स्टूडेंट कालेज के दिनों मे क्रांतिकारी विचारों वाला और देश से भ्रष्टाचार मुक्त करने वाला विचार रखता है, नौकरी और मौका पाते ही अपने विचारों को पोटली मे बांधकर सींक से लटका देता है और शामिल हो जाता है इस रेलमपेल मे।वास्तव मे इसकी शुरुआती शिक्षा परिवार से प्रारंभ होती है। हम बेटा बेटी मे भेदभाव करते हैं। अपने भाई भतीजे मे भेदभाव करते है।औरतें जब कुछ बच्चों को दूध देती है, तो अपने बेटे की गिलास में थोड़ी ही सही, पर मलाई अधिक डालती है।ज्वाइन्ट फैमिली मे अपने बच्चों को ज्यादा घी चपोड़ के रोटियां देती है।क्या यह भ्रष्ट आचरण नही है? अपने और आपको जो लाभ पहुंचाने की स्थिति मे हो, उसके पक्ष मे कार्य करना ही तो भ्रष्टाचार है।कोई भी व्यक्ति अपने सगे भाई को भी पुश्तैनी जमीन एक गज टुकड़ा भी अधिक देने को राजी नही होता।इसके लाठी, गड़ांसा, भाला, गोली बंदूक चल जाये पर पट्टी दारी मे मोंछ टाइट रहना चाहिए!अपने कितनी बड़ी सैलरी हो पर नज़र पिताजी के पेंशन और मां के पेटी बक्से पर गड़ी रहती है कि कहीं बेटी को कुछ दे तो नहीं रहे?जब भी विवाहिता बहन मायके आती है तो उसी पर नजर रहती है कि अम्मा से कुछ झटक ना ले। और अम्मा भी चोरी छिपे कुछ न कुछ दे ही देती है।हम सभी चाहते हैं कि चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह फिर से इस देश मे पैदा हों और देश मे क्रांति आये। आमूल चूल परिवर्तन हो क्योंकि हमें हमेशा सिस्टम से शिकायत बनी रहती है पर वो पैदा हों  दूसरे के घर मे।अपना बेटा तो राजा बेटा ही हो, जो कमाए और सरकारी नौकरी करे क्योंकि सरकारी नौकरी मे उपरी कमाई है। कोई अपने बच्चों को यह शिक्षा नही देता कि अच्छे इंसान बनो, बस सरकारी नौकरी पाओ, तभी ही जीवन सफल है। बिहार और पूर्वी ऊतरप्रदेश मे सामंती मानसिकता, पावर और  धनार्जन की ख्वाहिश मे बच्चों की जवानी इलाहाबाद के तंग हास्टलों, किराये के मकानों और दिल्ली के स्लम सदृश कालोनियों के बंद कमरों मे बर्बाद हो रही है। कितने सफल हो पाते है? बाकी तो भ्रष्टाचार करने की ख्वाहिश को अपने सीने दफन किए सिसकते रहते हैं। भ्रष्टाचार सिर्फ यह नही है कि आपने धनराशि या उपहार लेकर किसी का अनुचित कार्य कर दिया या उसे लाभ पहुंचा दिया। बल्कि  अपने कर्तव्यों से विमुखता और अधिकारों का दुरुपयोग भी भ्रष्टाचार है। यदि आप समय से कार्यस्थल पर नही पहुंते या अपनी निर्धारित ड्यूटी नही करते, अनाधिकार हस्तक्षेप करते हैं, गलत सलाह देते हैं यह भी भ्रष्टाचार ही है।हम पढाई के समय आवारागर्दी करते है, कालेज मे बंक मारकर फिल्में देखते है या गर्ल्स हास्टल के चक्कर लगाते हैं, ये भी भ्रष्टाचार ही है।विश्व के भ्रष्टाचारी देशों मे हमारा नाम उपर है। यह हमें अंग्रेजों से विरासत मे मिली है।क्या नेता, मंत्री, सांसद, विधायक, पार्षद, अधिकारी, कर्मचारी सब जिसके पास पावर है, वो उसका मिसयुज करता है अवैध धनार्जन के लिए। कभी कभी तो लगता है कि क्या वाकई  हम आजाद होने लायक  थे?उस समय लोगों ने कहा था कि हमें सिर्फ राजनीतिक आजादी मिली है, आर्थिक और सांस्कृतिक आजादी मिलने मे समय लगेगा। आजादी के सतर सालो बाद भी हम इससे जुझ रहे हैं।वोट की राजनीति ने हमें भ्रष्ट बना दिया है। धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र वाद, प्रलोभन इत्यादि के माध्यम से चुने गये हमारे जनप्रतिनिधि भला क्या खाकर देश और समाज का विकास करेंगे।अंग्रेज़ो के जमाने के बने पुल, इमारत, आज भी वहीं खड़े हैं पर आजादी बाद के न जाने कितने पुल और इमारत जमींदोज हो चुके है, भ्रष्टाचार रुपी घुन ने उन्हें अंदर से खोखला कर ढहा दिया है।अब देखिए न! जहाँ नोटबंदी हुई, हमने एक बार भी न सोचा देश हित मे, देने लगे अपने जन धन खाते उन काले धन के व्यापारियों को उनका कालाधन सफेद करने के लिए, वो भी मात्र चंद रुपयों के लोभ मे। बैंक कर्मियों की तो पौ बारह हो गई और उन्होंने इसमें छक कर गंगा स्नान किया है और अब जब पकड़े जा रहे हैं तो बाप बाप चिल्ला रहे हैं। वैसे शिक्षाप्रद किताबें तो खूब लिखी गयी पर कितनी किताबों को जीवन में आत्मसात किया है हमने? शराब को नापाक और हराम कहकर अफीम और गाँजा पीने वालों  का बोलबाला  है। अजीब बिडंबना है हमारे देश मे ! एक तरफ हमारा आबकारी विभाग शराब की बिक्री को प्रोत्साहित करता है तो दूसरी ओर मद्य निषेध विभाग , शराब पीने से लोगों को रोकता है। हमारा देश व समाज ऐसा है कि हम अपनी बहनों को सात तालों में छुपाकर रखते हैं और दूसरों की बेटी बहनों को घूरते है, छीटाकशी करते हैं। कहाँ तक कोई सरकार इसे रोक पायेगी? हमें अपने आपको स्वयं सुधारना होगा, तभी कुछ हो पाएगा!नोटबंदी और कालेधन के विरुद्ध छापेमारी मात्र से कुछ हासिल नही होने वाला। इसके विरुद्ध सामाजिक , राजनीतिक और सांस्कृतिक सर्जरी की आवश्यकता है।

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