नंगा नहायेगा क्या निचोड़ेगा क्या

जब आप कहते हैं कि हमें कैशलेस या लेश कैश सोसायटी बनानी है तो हमें हंसी आती कि कैश है किसके पास जो आप उसे लेस करना चाहते हैं।दो तिहाई कैस तो तिजोरियों, लाकरों, बेड के नीचे, बक्सों मे और कमरों के फाल्स सीलिंग मे दबा पड़ा है तो मार्केट मे कैश है कहाँ? एक भाई साहब तो शौचालय के दीवार मे तहखाना बनाकर कैश रखे थे, उन्हें शर्म भी नही आयी कि इक तरफ रोजाना लक्ष्मी जी की पूजा करते हो कि हमारे पास और आये और दूसरी तरफ सबसे गंदे और अशुद्ध जगह पर उसे छिपाते हो। तो मैं यह कह रहा था कि देश की नब्बे प्रतिशत जनता के पास मात्र दस प्रतिशत रुपया है। " नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या!" सरकार ने " जैम" योजना अर्थात जन धन, आधार और मोबाइल ,वस्तुत भारत को कैशलेश सोसायटी बनाने के लिए ही चलाया है और !हाल मे हजार और पांच सौ के नोटो को बंद करना भी उसी का हिस्सा प्रतीत होता है। छोटे कारोबारियों, मजदूरों और आम लोगों से भी मोबाइल बैंकिंग अपनाने का आह्वान किया गया है। सरकार इसे और सरल बनाने के लिए बैंकों के साथ मिलकर काम कर रही है।पर आप इसे क्रियान्वित कैसे करेंगे? क्या कोई रोडमैप बना है या फिर नोटबंदी की तरह जनता को रोड पर और लाइन मे लगा देंगे? देश की जनसंख्या सवा अरब का आंकड़ा पार कर चुकी है जिसमे ट्राई के अनुसार में देश में 70 करोड़ के करीब लोगों के पास मोबाइल कनेक्‍शन है और स्मार्टफोन रखने वालों की संख्या मात्र 20 करोड़ के आसपास है,ऐसे में वो लोग कैसे कैशलैस सिस्टम में अपने आपको एडजस्ट कर पाएंगे और उनका क्या जिनके पास मोबाइल भी नही है? देश में साक्षरता दर 75.06 है, यानि एक चौथाई आबादी आज भी अनपढ़ है।इसके अलावा पढ़े लिखी आबादी में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो टेक्नोलॉजी से कोसों दूर हैं। सिस्टम की एक बड़ी समस्या ये भी है कि इसमें हमेशा ताकतवर बैकों और वित्तीय संस्‍थानों की मनमानी का डर बना रहेगा। आनलाइन ट्रांजेक्‍शन के नाम पर बैंक तमाम टैक्स और भारी भरकम चार्जेज अपने ग्राहकों से वसूलते हैं। क्रेडिट कार्ड में तो समय से बिल न भरने के नाम पर लंबी चौड़ी पेनल्टी लगाई जाती रही हैं।एनसीआरबी के आंकडों के अनुसार पिछले दस सालों में साइबर क्राइम में 14 गुणा बढोत्तरी हुई है जिसका शिकार पढ़े लिखे और अनपढ़ दोनों लोग हुए हैं। ऐसे में इस खतरे के बीच लोगों को अपना ऑनलाइन खाता बचाए रखना खासा चुनौतीपूर्ण होगा। कैशलैस सोसायटी का सबसे बड़ा नुकसान छोटे और मझोले उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा जिनकी पूरी अर्थव्यवस्‍था नकद आधारित लेनदेन पर टिकी है। नोटबंदी के फैसले के दस दिन के अंदर ही दिल्‍ली एनसीआर के शहरों में पांच हजार से ज्यादा उद्योगों में फिलहाल अस्‍थायी तौर पर उत्पादन बंद करना पड़ा है। यह अलग बात है कि कैश की कमी के चलते लोगों के अनावश्यक खर्चे कम हो गये और लोग बाग किफायती हो गये पर इसका दुष्प्रभाव मार्केट और अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।अगर आपके पास स्मार्टफोन नहीं है तो कोई बात नहीं आपको अपने साधारण फीचर फोन से ही *99# डायल करना होगा इसके बाद ग्राहक को बताए गए इंस्‍ट्रक्‍शन को फॉलो करना होगा और चंद सेकेंड में लेनदेन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।इस सिस्टम से उन छोटे दुकानदारों को फायदा पहुंचेगा जिनके पास स्वाइप मशीन की सुविधा नहीं है।लेकिन इसके लिए भी तो पढा लिखा होना जरूरी है, यहाँ तो लोग बाग सिर्फ साक्षर हैं।" लिख लोढा पढ पत्थर !"यहाँ दिन दहाड़े अभी भी सोना चांदी और रुपया दुगूना करनेवाले लोगों को उल्लू बनाकर चले जाते हैं तो ये मल्टीनेशनल इनका क्या हाल करेंगे ,सोचने वाली बात है। अभी भी चिट फंड वाले, बीमा कंपनी, शेयर मार्केट वाले और गांव गांव कलेक्शन करने वाले एजेंट इनके जिंदगी भर की कमाई को चूना लगा देते हैं तो क्रेडिट कार्ड, स्वाइप कार्ड, आनलाइन पेमेंट करनेवाली कंपनियां इनका क्या हश्र करेगी ,भगवान जाने! अभी एक मोबाइल कंपनी का कारनामा मेरे मित्र को झेलना पड़ा जिसने डाटा के नाम पर चूना लगाया और आठ हजार का बिल भेज दिया। ये जो मुफ्त का प्रलोभन देते हैं ,असल मे ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह अफीम की तरह नशे की आदत लगाते हैं और बाद मे गुलाम बना लेते हैं। कैशलेश का कांसेप्ट पूर्ण रुपेण डाटा बेस्ड है ,जिसमे सारा गोलमाल है। आप पूरी तरह से मोबाइल और इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनी के हाथों बंधक बने जा रहे हैं। ये अलग बात है कि वो कहते हैं" कर लो दुनिया मुठ्ठी मे"! पर असल मे आप उनके मुठ्ठी मे बंधने जा रहे होते हैं।जितना ये "जी" बढता जायेगा उसकी स्पीड और डाटा खपत बढ़ती जाएगी ,साथ मे आपके पाकेट पर बोझ भी बढता जायेगा।तो ऐसी स्थिति मे " कैशलेश इंडिया" अभी दूर की कौड़ी ही नही है बल्कि" मार्डन उपनिवेश" बनने की दिशा मे भी एक कदम होगा।

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल