क्या परफार्मेंस आधारित वेतनवृद्धि से भ्रष्टाचार बढेगा?

ज्यादातर कर्मठ और ईमानदार सरकारी नौकरों को इसका  मलाल रहा है कि उन्हें उनकी मेहनत और ईमानदारी का फल निजी कंपनियों की भांति नही मिलता क्योंकि यहाँ " सभे धान साढे बाइस पसेरी" अर्थात सबको एक ही लाठी से हांका जाता है। यहाँ इनको और " बने रहो पगला काम करेगा अगला" नीति पर चलने वाले और मुर्ख लोगों को भी एक तराजू पर तौला जाता हैं क्योंकि यहाँ पर प्रमोशन, इंक्रीमेंट या बोनस योग्यता के आधार पर नही बल्कि समयावधि के अनुसार सीनियरिटी के आधार पर दी जाती है।इसी को ध्यान मे रखते हुए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों मे एक महत्वपूर्ण सिफारिश है परफार्मेंस के आधार पर प्रमोशन, एसी पी और इंक्रीमेंट का मिलना। प्रमोशन और एसीपी तो पहले भी इस पर सीमित तौर पर आधारित था लेकिन सामान्य तौर पर प्रतिकूल प्रविष्टि न हो तो प्रमोशन और ए सी पी मिल जाता था। प्रमोशन भी कई तरहों से होता था परंतु ए सी पी के लिए सिर्फ संतोषजनक सेवाओं का होना ही आवश्यक था!यदि नियत समय पर प्रमोशन या ए सी पी नही मिल पाती है तो इंक्रीमेंट रुक जाएगी, यह सबसे बड़ी समस्या है। इसका मतलब है कि प्रतिवर्ष मिलने वाली वार्षिक परफार्मेंस रिपोर्ट का महत्व बढ गया है। वैसे हमारा बड़ा ही कड़वा अनुभव रहा है इंट्री के मामलों मे। ज्यादातर अधिकारी जिनके पास इंट्री स्वीकृति का अधिकार है उसका प्रयोग अस्त्र के तौर पर करते हैं। आपपर अपनी सारी खीझ  इसी के द्वारा निकालते हैं। जो हमेशा आगे पीछे करता रहे, तेल लगाता रहे उसको बिना कुछ कहे उत्कृष्ट मिल जाता रहा और हम सब जो अपनी दृष्टि मे जी जानसे कार्यो मे जुटे रहे पर जी हजूरी नही सीख पाये हमेशा उतम या अतिउतम ही पाते रहे। वो भी तब पता चलता था जब इंट्री आगे चली जाती थी। एक अधिकारी ने तो हमेशा इंट्री बिगाड़ने की धमकी दी। जहाँ कुछ अप्रिय सत्य बोला कि धमकी चालू। कुछ तो इसमे भी उत्कृष्ट देने के लिए रिश्वत की मांग करते हैं। घटिया लोग घटिया सोच! ओस चाटने प्यास बुझता है? फिर भी इस हथियार का उपयोग करने से बाज नही आते। वस्तुतः इसमे पारदर्शिता या गणितीय फार्मूला का अभाव रखा गया है। इसे फुल प्रुव बनाने की आवश्यकता होगी। जहाँ अधिकारी या कर्मचारी के पास विवेकाधीन अधिकार होगा वो उसका दुरुपयोग अवश्य करेगा और वहाँ भ्रष्टाचार भी होगा। इसे सांइटिफिक बनाया जाय। क्वेश्चनायर बनाकर कई बिन्दुओं पर प्वाइंट देने की व्यवस्था हो तथा प्वाइंट के आधार पर ग्रेडिंग दी जाय। तीन सदस्यीय कमिटी इसको फाइनलाइज करे तब व्यक्ति विशेष की निरंकुशता कमजोर होगी। वैसे यह सिस्टम अच्छा है कि परफार्मेंस के आधार पर प्रोन्नति या एसी पी मिले। इससे वर्क करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा। अभी सभी धान साढे बाइस पसेरी है अर्थात अच्छा काम करनेवाला या बुरा कर्मचारी सभी को नियत समय पर इंक्रीमेंट और एसी पी मिल ही जाती है। जो अकर्मण्य है उसे भी इस व्यवस्था मे पुरस्कार मिल जाता है, जो अच्छी बात नही है।निजी कंपनियों मे योग्यता की पूछ है और यहाँ योग्य व्यक्ति " आउट आफ टर्न "प्रमोशन और इंक्रीमेंट पाता है क्योंकि वहाँ कंपनी को रिजल्ट चाहिए और जो अच्छा रिजल्ट देगा वो उसका राजा बेटा! पर सरकारी नौकरी मे सबलोग सारी मेहनत घुसने के लिए करते हैं, एकबार घुस गये तो कुर्सी पक्की! अब तो सरकार क्या, सरकार का बाप भी नही हिला सकता! हाईकोर्ट है न! लड़ के कुर्सी बचाये रखेंगे। काम कुछ करो या न करो बस अपने अधिकारी को पटाये रखो, वही अच्छा है! अधिकारी भी उन्हीं से ज्यादा काम करने को कहते हैं जो अच्छा और ज्यादा काम करता है पर इंट्री देते वक्त उसे अच्छी इंट्री मिलती है जो उसके आगे जी हजुरी और लल्लो चप्पो करता रहता है।कहते हैं" गिरते हैं सहसवार ही मैदान मे, वो भला खाक गिरेंगे जिसने कभी घुड़सवारी न की हो!"तो शिकायत उसी की होगी जो कुछ काम करेगा!  हमेशा " उत्कृष्ट" लेने वालों ने या तो कभी कोई काम ही नही किया होगा तो भला खाक मुसलमान होंगे या हमेशा साहब के तलवे चाटते रहे होगें।यही कार्य संस्कृति  अब और बढेगी या सरकार कोई पारदर्शी नियम बनायेगी जिसमें विवेकाधीन अधिकार नही हो ।

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