बकायेदार की पीड़ा.

"का कहे साहब! हालत ऐसी हो गई है की धोबी का गदहा, न घर का न घाट का!"घर मे एक पैसा नही बचा है ।कोर्ट कचहरी मे पैसा फूंक दिया।कहीं शरम से जाते नही। आफिस आ नही सकता क्योंकि यहाँ से डिफाल्टर घोषित हूं। तहसील वाले हमेशा पीछे पड़े रहते हैं कि पैसा जमा कराओ, भागते फिरते रहते हैं। मार्केट मे इमेज इतनी खराब हो गई है कि कोई उधार भी नही देता। उपर से आप लोग हमेशा  नोटिस भेजते रहते हैं ,कभी टीवी पर न्युज चलवाते हैं तो कभी पेपर मे नाम उछालते है। हमलोग जिले के सबसे बड़े बकायेदारो मे शामिल हैं पर हमारी हालत हम ही जानते है!" एक राइस मिलर जब कल यह बताने लगा तो उसके चेहरे पर झलक रही पीड़ा से स्पष्ट था कि वो झूठ नही बोल रहा है। " हमने कहा " आप लोगों ने करोेड़ो रूपये के  सरकारी चावल का गबन कर लिया! आपकी देने की मंशा नही है ,नही तो वह धन कहीं न कहीं आपलोग रखे हुए ही तो है? क्यो नही जमा कर देते!" वह बोला" साहब असल मे परिस्थितियों के मारे हैं हम। कुछ तो सरकार की कमी ,कुछ हमारी कमी। सही बात तो यह है कि लक्ष्मी के हाथ पांव होते हैं! यदि उसको कहीं हाथ पांव बांधकर बैठा दिया तो आपके पास रहेगा, वरना वह अपना रास्ता खोज लेती है! जिन लोगों ने मन बना लिया कि सरकारी पैसा नही जमा करना है उन्होंने वो रुपया जमीन मे या किसी और बिजनेस मे लगा दिया, तो उसके पास बचा है, वो दे सकते हैं पर उनकी मंशा खराब है। हमलोग देना चाहते थे पर विभाग ने मौका नही दिया!" मै बोला" गलत बोल रहे हैं आप ! चावल जमा कराने के कई मौके दिए गए, फिर बाद मे रुपये भी जमा करा सकते थे!"साहब कौन सा मौका दिया, आनन फानन मे आर सी जारी कर दी, एफ आइ आर कर दिया,! अरे! केस लड़ने, पैरवी करने, गिरफ्तारी से बचने मे सारा पैसा लग गया, दूसरी तरफ मिल बद होने से आमदनी बंद! तो रखा हुआ पैसा ही तो खर्च होगा न! अगर काम करने का मौका दिया होता तो अधिकांश धनराशि जमा हो जाती। देखिएगा। जितनी आर सी आप लोगों ने जारी किया है न! सब वापस हो जाएगी। किसी के पास कुछ होगा तब न वसुलिएगा! निलाम भी क्या करवाइएगा, कुछ हो तो तब ना! " मैने कहा" मिल जब्त होगी, मिल की जमीन जब्त होगी ,कुछ तो मिलेगा!" वो हंसने लगा, बोला " साहेब सबके उपर लाखों का बैंक लोन है, और मिल और जमीन पर पहले बैंक अपना वसूली करेगा , तब आपके विभाग का! आप कितना भी हाथ पांव मार लें ,कुछ होने वाला नही है!"आपकी लगभग सभी आर सी वापस होनेवाली है क्योंकि किसी के पास निलामी लायक जमीन ही नही है। इससे तो अच्छा था कि शर्तों के साथ इन्हें काम करने दिया जाता और उसकी कमाई के बिल को जब्त किया जाता! पर सरकारी प्रक्रिया है जिसमें भावना या तर्क का स्थान नही होता सिर्फ तथ्य और नियम होता है। हम सिर्फ लकीर के फकीर बने उस पर चल रहे होते हैं।यहाँ सब अपनी कलम बचाते हैं और नौकरी करते है। आऊट आफ टर्न जाकर काम करना रिस्की होता है।

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