खुट्टा तो यहीं गड़ेगा..।

"हम सुन्नरी, पिया सुन्नरी, गामक लोग बनरा बनरी"! मतलब दुनिया मे सब गलत ,हम जो कहे ,वो ही सही! एक जिद होती है लिखे पढे लोगो मे, तर्क हो कुतर्क हो, अपनी बात सही  ठहराने की। भैया ये भी एक तरह कि सामंतवाद है! अभी श्रद्धेय मार्कंडेय काटजू साहब ने जाट लोगों का मजाक उड़ाते हुए कहा था" पंचो की राय सर माथे! पर नाली तो यहीं से बहेगी!" वैसे "डी एन ए" तो सबका गड़बड़ है! सब बिके है और और अपने हिडेन एजेंडा के तहत बकियाते हैं। हम मैंगो पीपल, बस अपने चूसे जाने फिर गूठली की भांति फिंक जाने की जलालत सहते है, फिर भी मुस्कियाते रहते है जैसे  एयर इंडिया का वो साहबान करता रहता है।तो खूट्टा गाड़ने या अपनी बात मनवाने के लिए, तो लाल चोगा धारियों को परहेज करना चाहिए क्योंकि वो तो सामंतवाद का विरोध करते है, दुनिया भर मे समानता लाने का बीड़ा उठाये हैं भले कोई बंदूक के बल पर तो कोई कलम के बल पर परिवर्तन की बात करता रहता है !पर ये जो  हरेक बात पर" लेके रहेंगे लेके रहेंगे ,"चिल्लाते रहते हैं,  ये क्या लेंगे?  जैसे दुनिया मे आजतक उन्हें कुछ भी लडाई के बिना मिला ही नही। वैसे ये बात अलग है कि लड़ने वाले हमेशा लड़ते ही रहे ,असली मलाई तो बंदर खा गया या खा रहा है। एक भी हंसुआ हथौड़ा वाले नेतवन को इसे हाथ मे उठाये ,देखा नही है। तो बात यहाँ हो रही थी, अभिव्यक्ति की आजादी और आपातकाल की। जबसे से भगवा वालो की सरकार आई है बाकी पार्टियों का" भगवा "खुल गया है, नंगे होकर नाच रहे है, रुदाली को किराये पर लाकर विधवा विलाप प्रारंभ हो गया है।मानो तो यह जनमत का अपमान है और न भी मानोगे तो मेरा क्या उखाड़ लोगे? " दिल  पे मत लो यार!  और ले भी लोगे तो कौन सा तीर मार लोगे! तो मै कह रहा था,या तो जनता मूर्ख है या नासमझ है जिसने इस सोकाल्ड गलत सरकार को चुना या इनका विधवा विलाप भविष्य मे पत्ता कटने के डर से उपजा है।एक दौर था जब असहिष्णुता की चर्चा थी तब कोई देश छोड़कर भाग रहा था तो देश मे रहने मे डर लग रहा था, गया कोई नही! पुरस्कारों के लौटाने का सिलसिला इसकदर चला कि हमे पता लगने लगा कि अमुक को अमुक पुरस्कार मिला भी था! कभी एक दिन के लिए "ब्लैक आउट" करने वाले चैनल को एक दिन बोलती बंद करने की नोटिस मिली तो प्राइम टाइम "मूक सिनेमा काल मे चला गया और एंकर मदारी बन गए। सरकार से न डरने की पुकार है, फिर भी उन्हीं के दया की दरकार है। कहते हैं बागो मे बहार है? बहार ही बहार है बस अदद टी आर पी की  दरकार है। कहते है" यदि सरकार आपकी आलोचना करने लगे तो समझो यह तुम्हारे लिए पुरस्कार है तो फिर क्यो ये चीख पुकार है? खुश होकर सब समाचार चलाओ, इक अदद नोटिस की दरकार है। इक नई विधा और नये कोर्स की शुरुआत है ,एन एस डी मे अब पढने वाले पत्रकार हैं।"सवाल पर सवाल है"! पर सवाल क्या है पता नही? कब मना किया पता नही ?सवाल की मंशा क्या है? यह तो बताओगे भाई?  कहते है लोकतंत्र है," बनाना रिपब्लिक"! मैंगो पीपल रहते हैं यहाँ!तो आम और केला काफी प्रसिद्ध है। केला सिम्बोलिक है!" आब की खैयबा केर्रा"! मतलब आप क्या कर लेंगे, 2019 से पहले! चिल्लाओ, सर फोड़ो! होगा वही न ,जो मैंगो पीपल चाहेगा। आप सोकाल्ड बुद्दिजीवी  लोग और माहौल बनाने वाले कितना लोग हो? मास जो चाहेगा ,वो ही होगा! तबतक तुमलोग झाल बजाओ! " चलत मुसाफिर मोह लिया रे, पिंजरे वाली मुनिया"! उड़ी उड़ी बैठी पनवरिया दुकनिया....!" इस गाना मे चाय वाले दुकान का जिकर तो नही था न! होना भी नही चाहिए वरना, इस गाने का भी ट्राल शुरु हो जाता ,जैसे " बागो मे बहार है"!  चायवाला के नाम पर एक पाकिस्तानी  कई दिनों तक ट्विटर और फेसबुक  पर ट्रेंड करता रहा है ,अब जाके एक तरकारी वाली ने उसे पछाड़ दिया। सबसे बड़ा तो वो हिलेरी - ट्रंप को प्राइम टाइम मे बुलाकर मूक अभिनय करा लेते तो अमेरिकीयो को इनकी बकैती से एक दिन फुर्सत मिलती। वैसे एक दिन एनडीटीवी के एक दिन प्रसारण न होने से देश मे जल संकट और वायु प्रदूषण बढने वाला है। बुद्धि जीवियों और वाममार्गियो को जुलाब होने से जल की खपत बढ जाएगी और गैस निस्कासन से वायु प्रदुषण बढ जाएगा। माइंड तो आजे से बोगला गया है क्योंकि डिसाइड ही नही कर पाये कि क्या चलायें? रिपीट टेलीकास्ट करना पड़ा।बौका लोग को बैठा के कजाकिस्तान की बोली मे सरकार को क्या गाली दिलवाये हैं ,यह तो जांच के बाद पता चलेगा,इनका फ्रस्टेशन अपने हाइट पर है !गुप्तरोगी सूत्र कहते हैं कि इसके सूत्र गोधरा से जुड़े हैं और प्राक् मीडिया काल मे भी यह भगवा वेशियो का विरोध करता था और आज भी कर रही है।वैसे इस पर शोध प्रपत् जल्द ही जारी होगा और डाक्टरेट की उपाधि की जगह उसे "बागो मे बहार है" सम्मान दिया जाएगा।

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