पचास दिन की मोहलत..

 नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था " तुम मुझे खून दो, मै तुझे आजादी दूंगा !"फिल्म चक दे इंडिया   मे कोच शाहरुख खान अपनी टीम से कहता है" तुम मुझे अपना सिर्फ सत्तर मिनट दो मै जीत दिलवाउंगा" ! प्रधान मंत्री जी कहते है ! आप हमे पचास दिन दे दो मै तुम्हे नया भारत दूंगा !निर्णय लेने का हक प्रधानमंत्री के पास था , उसने लिया !  अब जनता उन्हे पचास दिन देती है या नही ये जनता पर है ! पर जिसकी फट रही है वो तो चिल्लायेगा ही !फैसले का अच्छा बुरा दोनो इफेक्ट होना ही था !और जनता बियर भी कर रही है !'सही या ग़लत होना इसके लागू होने से कोई ताल्लुक़ नहीं रखता है क्योंकि फैसले के लिए जाने का इरादा ठीक था। ऐतिहासिक था, साहसिक था,मंशा अच्छी थी। लेकिन हमलोग सुत्र बहुत जोडते है  ना ! जैसे सर्दी के मौसम मे जितनी भी मौते होती है वो ठंड से ही होती है, बिमारी से भी मौत हो तो उसे भुखमरी से मौत दिखाते है क्योंकि इससे सनसनी फैलती है, मीडिया की टीआर पी बढती है !लोग लाइनो मे लगे है तो उनके साथ कोई खडा होने कोई नही जा रहा है?कोई उंनको सहारा नही दे रहा  है ,बस आलोचना चालू है !  जैसे पीपली लाइव चल रहा हो ! मौत का तमाशा !एक गांव मे  एक पेड़ की टहनी अचानक टूट कर गिरती है,पेड़ के नीचे सोया हुआ एक बूढ़े व्यक्ति की मौत हो जाती है। लोग इस घटना का विश्लेषण करते हुए बूढ़े व्यक्ति के मौत के लिए पेड़ को दोषी ठहरा देते है। इस पर दूसरा बोलता है की  इसमे पेड़ का क्या दोष! दोषी तो वो है, जिसने इस कमजोर मिटटी में पेड़ लगाया था।अब पेड़ रोपने वाले को  बूढ़े का मौत का जिम्मेदार ठहराया जाता है।पेड़ रोपने वाला भी चतुर था, वो बोला- इसमें मेरा क्या दोष,! इस पेड़ की डाली में बगुलों का झुण्ड आकर बैठ गया, जिसके वजन से डाली टूट गई और बूढ़े के ऊपर गिर गई।इसलिए दोषी बगुले है।दूसरा बोला- इन बेजुबान बगुलों का कोई दोष नहीं!, ये बगुले पहले स्टेट बैंक के पास वाले पेड़ पर बैठते थे। लेकिन आज-कल वहाँ लम्बी-लम्बी लाइन लगी है और बहुत शोर होता है, जिसके कारण बगुले वहाँ से यहाँ शिफ्ट हो गए, दोषी तो स्टेट बैंक है।कुछ बोले" स्टेट बैंक का क्या दोष!,दोषी तो प्रधानमंत्री है, जिसने नोट बंदी लगा दिया और उसी के कारण इस बूढ़े की मौत हो गई।अंत में सभी लोग एक मत से फैसला करते है की स्टेट बैंक से कोसो दूर एक पेड़ की डाली के नीचे सोये हुए बूढ़े की मौत देश के प्रधानमंत्री के कारण हुआ है।  मेरा यह कहना नही है कि सभी मौते ऐसी है ! बस आंकडो की हेरा फेरी है ! जंनता परेशान है पर बगावात पर नही है ,खुश है ! इससे से भी लोगो को परेशानी है कि जनता दंगे क्यो नही कर रही है ? सबसे बडी आपतिजंनक बात मुख्य न्यायाधीश जी के मुख से सुनाई पडी ! क्या उंनको पता नही है कि ऐसा कहकर वो जंनता को प्रेरित कर रहे है? उनकी प्रधानमंत्री से वैमनस्यता जगजाहिर है , और वो कई मौको पर इसे बयान भी कर चुके है ! मुझे तो लगता है प्रधानमंत्री   ने नोटबंदी का निर्णय लेकर बहुत बडा गैम्बल खेला है ! इससे उनका पोलिटिकल कैरियर भी दांव पर लगा है ! यदी उबर गये तो यही विरोधी कहेंगे कि देश मे नव तानाशाही आ गयी है ! और यदि फंस गये तो राजनीतिक जीवन चौपट!  दांव  पर  तो  भारतीय जनता भी लगी है !फिर कोई सरकार कालाधन के विरुद्ध इतना बडा निर्णय लेती है कि नही ? आरबीआई के पूर्व गवर्नर सुब्बाराव के अनुसार नोटबंदी बैंकों की ब्याज दर कम हो सकती है। आरबीआई द्वारा कोई नई राहत दिए बिना भी इस फैसले की वजह से बैंंकों का कॉस्ट ऑफ फंड कम होगा जिससे वो लोन पर ब्याज दर कम कर सकते हैं, और अगर बैंक लोन पर ब्याज की दर कम करेंगे तो अर्थव्यवस्था में ज्यादा निवेश होगा! हालंकि जिस तरह नोट की कमी से बाजार प्रभावित हुआ है उसका सीधा असर विकास दर पर पडेगा ! भारत विश्व की फास्टेस्ट ग्रोविंग एकोनोमी थी जो अब शायद ना रहे !रियल एस्टेट’ में सबसे ज्यादा कालाधन लगा हुआ है, नोटबंदी से इस सेक्टर पर काफी असर पड़ सकता! नोटबंदी के बाद अघोषित आय पर लगाए गए टैक्स और जुर्माने से सरकारी खजाने में बड़ी राशि आ सकती है। सरकार नोटबंदी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.5 प्रतिशत (65 हजार करोड़ रुपये) टैक्स के रूप में पा सकती है। इससे वित्तीय कनसॉलिडेशन बढ़ेगा और सरकार इस पैसे का उपयोग आधारभूत ढांचे को विकसित करने में कर सकती है। परंतु पुर्व आरबी आइ  गवर्नर रघुराम राजन इसके पक्ष मे नही थे कि  20,000 करोड़ नये नोटो की छापने की कीमत कौन देगा?पूरी बैंकिंग व्यवस्था के 138,626 मे 33% ब्रांच सिर्फ़ 60 बड़े शहरों और छोटे शहरों मे है| नार्थ इस्ट इंडिया के 38 ज़िलो मे सिर्फ़10 बैंक ब्रांच है|   भारत में| भी काला धन जमा करके नही रखता उसे सोने, चाँदी,ज़मीन, फ्लैट, हीरा, डॉलर या विदेशो के बैंक मे रखता है|लेकिन पावरलूम और हैंडलूम उद्योग के बारे पता चला है कि लोग बाग टोटल कैश घर  मे ही रखते है ! बैंक जाने से टैक्स देने का डर रहता है !उत्तरप्रदेश के सरायमीर, मुबारकपुर, मऊ, टांडा आदि जगहो पर कमरो मे नोट भरे जाने की चर्चा है !अखबार तो रोजाना नकदी पकडे जाने की खबरो से पटा है !| भारत मे 60 फीसदी लोग किसान है, जिनको इनकम टैक्स नहीं देना होता है| ये लोग रुपयों मे कारोबार करते हैं|   इनको समस्या अवश्य हुई है ! यदि सहकारी बैंको की विश्वसनीयता बनी रहती तो उनसे भी सहयोग लिया जाता, परंतु ऐसा नही हो सका है ! साइड इफेक्ट तो हुआ है ! पचपन लोग नोटबंदी के तनाव के कारणों से मर गए  पर क्या इसकी तुलना उडी के शहीदो से करना जायज है "?सबसे ज्यादा दिक्कत शादी वाले घरो और बिमार लोगो के साथ है ! लेकिन  उन्हे सामाजिक सहयोग मिल रहा है !पता नहीं है कि पचास दिन बाद क्या होगा। आम जनता इसी मे खुश है कि " पुर्र..र.र  भाई नाक वाला " अर्थात  जिसके पास नोट है वो नोट को लेकर चिन्ता करे ! हमारे पास तो है ही नही तो हमको क्या चिंता ? भारत का  76  प्रतिशत  पैसा 10  प्रतिशत  लोगो के   पास है  इसमे से भी 51  प्रतिशत पैसा मात्र एक प्रतिशत लोगो के पास है ! जाहिर है पैसो संकेंद्रण अत्यधिक है  इसी कारण आमजनता अपने दर्द से पीडित होने के बजाय उन धनकुबेरो और ब्लैक मनी होलडरो के दर्द से खुश हो रही है !

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