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आत्महत्या से चर्चा मे वन रैंक वन पेंशन ..

पुर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या ने वन रैंक वन पेंशन को फिर से सुर्खियो मे ला दिया है। वन रैंक-वन पेंशन का अर्थ है कि अलग-अलग समय पर रिटायर हुए एक ही रैंक के दो सैनिकों की पेंशन की राशि में ‍बड़ा अंतर न रहे,अर्थात एक ही रैंक से रिटायर होने वाले अफसरों को एक जैसी ही पेंशन मिले। यानि 1970 में रिटायर हुए ब्रिगेडियर को  आज रिटायर हुए ब्रिगेडियर के बराबर ही पेंशन दी जाए।इसमे प्रति वर्ष संशोधन और पुंनरीक्षण किया जाना होता है !  साथ ही यह  सिर्फ सेना को ही दिये जाने की बात थी क्योंकि  सैन्य सेवाएं  सिविल सेवाओं से कठिन होती है । ज्यादातर सैनिक 35 से 40 साल के बीच रिटायर हो जाते हैं। ब्रिगेडियर रैंक से नीचे के अफसर 58 साल की उम्र में रिटायर होते हैं, जबकि आम सिविल सेवाओं रिटायरमेंट की उम्र 60 साल है । रिटायर्ड सैनिकों के लिए दोबारा नौकरी पाने के अवसर सीमित  होते है ।.वास्तव मे यह ओआरओपी योजना साल 1970 के दशक से लम्बित चल रही थी । पिछली किसी सरकार ने इस मुद्दे के हल के लिए कुछ खास नहीं किया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने इस योजना को लागू किया। इस पर सालाना 7,500 करोड़ रुपये खर्च होने थे जिसमे से 5500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जारी कर दी गयी  है ।ओआरओपी के तहत बकाया एरियर और पेंशन में संशोधन का भुगतान पेंशन संवितरण अधि‍कारियों द्वारा चार किस्तों में किया जाना था  और फैमिली पेंशनर्स और वीरता पुरस्कार पाने वालों को एक ही किश्त में एरियर का भुगतान किया जाना था परंतु माना  जा रहा है कि यह पूर्णरुपेण लागू नही हो पाया है। अभी भी लगभग डेढ लाख सैनिकों को अभी पहली किस्त भी नही मिल पाई है। इस ओ आर ओ पी से रक्षा बजट 2015-16 में 54,000 करोड़ से 2016-17 में 65,000 करोड़ तक बढने की संभावना है, जिससे लगभग 20 फीसदी की रक्षा पेंशन परिव्यय बढ़ रही है । हर पांच साल में पेंशन की समीक्षा होनी है परंतु संगठनो का कहना है कि इसकी समीक्षा प्रत्येक साल की जाय। उनका मानना है कि यदि समीक्षा और पैरिटी प्रत्येक साल नही होगी तो ये वन रैंक वन पेंशन हो ही नही सकतीं बल्कि यह वन रैंक फाइव पेंशन हो जाएगी। एक सैन्य अफसर का कहना है कि सरकार द्वारा भले ही सैद्धांतिक रुप से ओ आर ओपी लागू करने की बात कही गई पर यह मात्र पेंशन इन्हांसमेंट है। भले ही इस सरकार ने दशकों से लंबित मांग पर सहानुभूति पुर्वक विचार करते हुए इसे लागू करने का प्रयास किया पर पूर्णत लागू नही किया। इसने लागू करने का वादा किया था इसलिए इससे अपेक्षा ज्यादा है।।  स्वैच्छ‍िक रिटायरमेंट यानी वीआरएस लेने वाले सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन का ऐलान बाद में किया जाना है।. एक सदस्यीय न्यायिक कमेटी भी बनाई गई है। सैनिकों का कहना है कि यदि अंतिम निर्णय फिर सरकार को ही लेना है तो इस समिति की क्या जरूरत है। यह सिर्फ टाल मटोल है। वैसे ओआरओपी (वन रैंक वन पेंशन) के मुद्दे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ट्वीट कर आरोप लगाया है कि पीएम मोदी ने देश और सेना से ओआरओपी के मुद्दे पर झूठ कहा है कि ओआरओपी लागू कर दिया गया है ! परंतु.वन रैंक, वन पेंशन के तहत नई पेंशन राशि क्या होगी, कितने की किश्त मिलेगी, इसके लिए पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है  ? साथ ही जिनके खाते में पैसा आया है, उन्हें भी कोई पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है कि कितना मिलना चाहिए और कितना दिया जा रहा है ?  बड़ी संख्या मे सैनिकों  को पेंशन ऑर्डर नहीं मिला है । वस्तुतः एक सरकारी प्रक्रिया या लालफीताशाही कही जा सकती है जिसमे सरकार द्वारा लागू की गई कोई योजना को धरातल पर लाने मे व्यवहारिक कठिनाइया होती है। यदि जो राशि सैनिकों के लिए निर्गत की गई है या जिस फार्मूला पर पेंशन का निर्धारण किया जाना है वो निचले स्तर के अधिकारी कर्मचारी होते है जैसा कि रामकिशन के मामले मे भिवानी के बैंक ने किया, पर इससे सरकार को दोषमुक्त नही किया जा सकता।कहा जाता है कि लगभग पचास फीसदी सैनिको को वन रैंक, वन पेंशन की राशि नहीं मिली है.! प्रतिशत में भले अंतर हो मगर बातों से लगा कि आधे से भी ज्यादा रिटायर सैनिकों को वन रैंक, वन पेंशन की किश्त नहीं मिल रही है।रही बात रामकिशन ग्रेवाल के आत्महत्या की बात तो  कई प्रश्न अनुत्तरित है जैसे रामकिशन को पेंशन कैलकुलेशन की गड़बड़ी से पांच हजार रुपये कम मिल रहे थे, तो क्या मात्र पांच हजार के लिए उसने आत्महत्या कर ली? जब 31अक्टूबर को पत्र लिखा तो बिना जबाब का इंतजार किए उसने आत्महत्या कर ली? सल्फास खाने के बाद उसने फोन किया? जब वह अपने बेटे से बात कर रहा था तो फोन करने के लिए कौन पीछे से बोल रहा था? उसने 6 साल टेरिटोरियल आर्मी मे सेवा की और शेष नौकरी आर्मी संस्थानों की सुरक्षा सेवा मे तो क्या वह वन पेंशन वन रैंक का हकदार था? कई लोग तो उसके आत्महत्या करने पड़ सवाल उठा रहे है कि सच्चा सैनिक आत्महत्या नही करता, बल्कि लड़ता है। उसके शहीद घोषित करने की मांग पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि शहीद तो वो होता है जो सीमा पर लड़ते हुए जान देता है, धरना देते हुए नही? सोशल मीडिया पर वायरल रामकिशन के पत्र के मुताबिक, उनकी तीन डिमांड थीं,जिसमे से. 6 ठें वेतन आयोग का फायदा जवान को मिल गया था । ओआरओपी को लेकर सरकार में एक पेंशन प्रसार एजेंसी  है। उसके तहत सरकार बैंक को पैसे देती है,साथ में पेंशन फिक्स करने का टाइम टेबल भी बैंक को करना होता है। बैंक की गलती से एक-दो हजार रुपये पेंशन उन्‍हें हर माह कम मिल रही थी । यदि उसे कम पेंशन मिल रही थी तो उसे वेलफेयर सेल में शिकायत करनी चाहिए थी। लेकिन शायद रामकिशन ने सेल में कोई संपर्क नहीं किया । वैसे  सातवें वेतन आयोग में अभी किसी को पेंशन की राशि नहीं दी गई है, क्‍योंकि एक-दो दिन पहले तो मंत्री ने आदेश दिया है, लेकिन प्रोसेस पूरा होने में वक्‍त लगता है। प्रश्न तो सरकार से भी है कि वाकई क्या देश मे वन रैंक वन पेंशन लागू है? यदि लागू है तो पूर्व सैनिक ने आत्महत्या क्यों की?  यह यक्ष प्रश्न है ! सरकार कहती है 90% लागू है शेष के लिए प्रयास जारी है तो क्या 10% के लिए लोग धरना पर बैठे है या आत्महत्या कर रहे है? सरकार के मंत्री उसे कांग्रेसी साबित करने पर लगे हैं तो क्या कांग्रेसी होने से उसके द्वारा उठाये गए प्रश्न बेमानी हो जाते है?  मौत के बाद सिसोदिया, राहुल  ,केजरीवाल का राजनीति करना शर्मनाक है तो दिल्ली पुलिस का रवैया और सिचुएशन से हैंडिल करने का तरीका गैर जिम्मेदाराना। रामकिशन के परिवार वालों को गिरफ्तार करना कही से उचित नही कहा जा सकता।सरकार को इस पर जबाब देना होगा क्योंकि एक तरफ वह स्वयं को सैनिकों के मान सम्मान के लिए लड़ने वाली कहती है तथा दूसरी ओर चेहरा कुछ और प्रोजेक्ट हो रहा है। हालांकि सरकार कभी भी शतप्रतिशत मांगे स्वीकार करने की स्थिति मे नही होती। अभी सेना की मांग पूरी नही हुई कि केंद्रीय सशस्त्र सुरक्षा बलों ने धरना शुरू टर दिया कि जब हम सारा काम सेना की भांति करते हैं तो वन रैंक वन पेंशन हमे क्यों नहीं? लगता है मामला यहीं रुकेगा नहीं!

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