चे ग्वेरा--- साम्राज्यवादी शोषण के विरुद्ध पोस्टर ब्याय

अर्नेस्तो चे ग्वेरा…. स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों मे नवयुवको के टीशर्ट पर छपा वो युवक, जिसने अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती दी थी और लैटिन अमेरिकी देशों मे विश्व क्रांति का बीज बोया था, मार्क्सवादी क्रांतिकारियों का मसीहा है और पोस्टर ब्याय है। उनके हाथ में बड़ा सा सिगार, बिखरे हुए बाल, सिर पर टोपी, फौजी वर्दी सबको लुभाती है। जिस तरह से उन्होंने अपनी जिंदगी जी और जैसे वो  मरे, उसने उन्हें पूरी दुनिया में ‘सत्ताविरोधी संघर्ष’ का प्रतीक बना दिया है। वास्तव मे एक क्रांतिकारी के रूप में ,जो स्थान भगत सिंह का भारतीय उपमहाद्वीप में है ,वही स्थान चे ग्वेरा का लैटिन अमेरिकी देशों में है। उनके द्वारा लिखा गया "गुरिल्ला युद्ध शैली के तरीके " पुस्तक आज भी माओवादी क्रांतिकारियों के लिए बाइबिल है। महान दार्शनिक और अस्तित्ववाद के दर्शन के प्रणेता ज्यां-पॉल सार्त्र ने ‘चे’ गेवारा को ‘अपने समय का सबसे पूर्ण पुरुष’ जैसी उपाधि दी थी। इसके पीछे गेवारा की भाईचारे की भावना और सर्वहारा के लिए क्रांतिकारी लड़ाई का वह आह्वान था ,जो उन्होंने लैटिन अमेरिका के लिए किया था। ये डॉक्टर, लेखक, कवि, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ भी थे। अपनी यायावरी के दौरान चे द्वारा देखे गये गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण उनकी समझ मे था... एकाधिकार पूंजीवाद, नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था - विश्व क्रांति।

      अर्जेंटीना मे जन्मे अर्नेस्टो ग्वेरा की जिंदगी को पांच भागों मे बांट कर समझा जा सकता है। पहला बचपन से लेकर डाक्टरी की पढाई, दूसरा एक यायावर के रुप मे लैटिन अमेरिकी देशों का मोटरसाइकिल से भ्रमण, तीसरा फिदेल कास्त्रो से मिलकर क्युबा मे क्रांति और सरकार मे शामिल होना, चौथा सबकुछ त्यागकर कांगो मे असफल गुरिल्ला युद्ध करना तथा पांचवा बोलिबिया मे गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से क्रांति का प्रयास और इसमे मारा जाना। पहले भाग मे ग्वेरा एक सामान्य युवक की भांति अपनी जिंदगी बसर करते हैं, जिनका मां बाप है, भाई बहन है, स्कूल और कालेज के दिन हैं, प्रेम है, प्यार है दोस्ती है। वास्तविक ग्वेरा का जन्म यायावर के रुप मे होता है जब वो भ्रमण के दौरान गरीबी, शोषण, साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को देखते हुए मार्क्सवादी विचारों की ओर झुकते हैं और इस शोषण के विरुद्ध हथियार उठाने को सोचते हैं। इसके बाद फिदेल कास्त्रो से मुलाकात के बाद उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की जानकारी और प्रशिक्षण लिया। तीसरे चरण मे अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध बिगुल बजाकर क्युबा मे सफल क्रांति कराया। चे ने रुस के साथ मिलकर अमेरिका को चुनौती पेश की , हालांकि बाद मे उसका झुकाव चीन की तरफ हो गया था। क्युबा के उद्योग मंत्री के रुप मे वे भारत भी आये थे और नेहरू जी के साथ मिलकर क्युबाई चीनी बेचने और समाजवाद के प्रसार की मुहिम शुरू की थी। लेकिन चे सुविधाभोगी नही थे। वे सत्ता मे नही रह सकते थे। कांगो मे साम्राज्यवादी सरकार के विरुद्ध क्रांति करने के उद्देश्य से वे सबकुछ छोड़ छाड़कर कांगो चले आये तथा स्थानीय क्रांतिकारियों के साथ मिलकर गुरिल्ला युद्ध शुरू किया। लेकिन स्थानीय मार्क्सवादियों  की आपसी फूट से यह क्रांति असफल हो गई और ग्वेरा वापस आ गये। क्युबा मे फिदेल ने उन्हें पुरानी पोजीशन देने की पेशकश की परंतु वे नही माने। वे सभी लैटिन अमेरिकी देशों मे क्रांति लाना चाहते थे। अगला देश बोलिबिया था ,जहाँ उन्होंने क्युबाई और स्थानीय क्रांतिकारियों के साथ गुरिल्ला युद्ध चलाया परंतु अमेरिकी और बोलिबियाई साम्राज्यवादियों ने एक मुठभेड़ मे उन्हें पकड़ लिया और मार दिया।  लेकिन चे अमर हैं, अपने विचारों और क्रांतिकारी शैली के लिए।

       उनका जन्म तो अर्जेटीना मे हुआ था परंतु कभी किसी एक देश के वे होकर नही रहे। नागरिकता क्युबा और मैक्सिको मिली थी। लेकिन उनके क्रांतिकारी विचार सार्वदेशिक बने। क्युबा मे जन्म न लेकर भी वो क्युबा मे पूजे जाते हैं। फिदेल कास्त्रो से उनका सामंजस्य और कंधे से कंधा मिलाकर चलने की नीति ने न केवल क्युबा बल्कि पूरे लैटिन अमेरिका को एक नयी दिशा दी। चे भले कांगो मे रहे या बोलिबिया मे, फिदेल ने हमेशा उन्हें सपोर्ट किया। लगभग तीस सालों बाद चे और उनके क्रांतिकारी साथियों का अवशेष बोलिबिया से क्युबा लाया गया, जहाँ उसे राष्ट्रीय स्मारक के रुप मे स्थापित किया गया। पारिवारिक जीवन भले ही चे का बहुत सफल नही रहा परंतु अपने परिवार के प्रति संदेश हमेशा भेजते रहे। डायरी लिखने की आदत ने उनकी जीवन के हरेक पलों से लोगों को रूबरू कराया है। चे ग्वेरा पर हिंदी मे लेखक वी के सिंह ने उनकी आत्मकथात्मक शैली मे किताब लिखी है, जो चे के जीवन को विस्तार पूर्वक व्याख्यायित करती है। महात्मा गांधी की साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध लड़ी गई अहिंसात्मक लड़ाई के विपरीत चे ग्वेरा बहुत हदतक माओवादी शैली से लड़ाई  डायरेक्ट एक्शन मे विश्वास रखते हैं। गुरिल्ला शैली से इतर उनके विचार, आदर्श और नीतियां आज भी प्रासंगिक है।

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