सुल्ताना डाकू

चंबल के बीहड़ो मे डाकूओं का प्रसिद्ध ठिकाना है, जहाँ एक से एक कुख्यात और दुर्दांत डाकू रहते थे । परंतु  बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में नजीबाबाद-कोटद्वार क्षेत्र में इसी प्रकार सुल्ताना डाकू का खौफ था। चंबल के डाकू बागी थे तो सुल्ताना देसी राबिनहुड, जिसने अंग्रेजी सरकार को अपने तेज तर्रार कारनामों से पानी पिला दिया था। उतराखंड के कोटद्वार से लेकर उतरप्रदेश के बिजनौर तक उसका राज चलता था। सुल्ताना डाकू के संबंध मे लिखित अभिलेख कम उपलब्ध है। उतरप्रदेश सरकार के गृह विभाग के गोपनीय अभिलेखों मे उसका उल्लेख एक दुर्दांत डाकू के रुप मे है। प्रख्यात शिकारी जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘माय इंडिया’ के अध्याय ‘सुल्ताना: इंडियाज़ रॉबिन हुड’ लिखा है। लेखक नवाराम शर्मा ने " गरीबों का प्यारा" नाम से सुल्ताना डाकू पर किताब लिखा।सुल्ताना के बारे मे ज्यादातर किंवदंतियां, गांवों मे प्रचलित कहानियां हैं और बड़े बुजुर्गों की यादों मे अंकित घटनाएं हैं। कहा जाता है कि वह इतना साहसी था कि डाका डालने  से पहले अपने आने की सूचना दे देता था, उसके बाद लूटने आता था।  सुल्ताना ने कभी किसी ग़रीब आदमी से एक कौड़ी भी नहीं लूटी। सभी गरीबों के लिए उसके दिल में एक विशेष जगह थी। जब-जब उससे चंदा मांगा गया, उसने कभी इनकार नहीं किया और छोटे दुकानदारों से उसने जब भी कुछ खरीदा उसने उस सामान का हमेशा दोगुना दाम चुकाया। इतना ही नही सुल्ताना औरतों की बहुत इज्ज़त करता था।

     सुल्ताना का जन्म मुरादाबाद जिले के हरथला गांव में हुआ था। सुल्ताना 17 साल की उम्र में ही डकैत बन गया। 2009 में पेंग्विन इण्डिया से छपी किताब ‘कन्फेशन ऑफ सुल्ताना डाकू’  के अनुसार सुल्ताना का ताल्लुक एक गरीब परिवार से था।उसकी मां और उसके दादा ने उसे नजीबाबाद के किले में भेज दिया ,जहां मुक्ति फौज यानी साल्वेशन आर्मी का कैंप चलता था। इस कैंप में सुल्ताना सहित अन्यों को धर्मांतरण कर ईसाई बनाने के  प्रयास किए गए, इसलिए वह वहां से भाग निकला। यहीं से उसके आपराधिक जीवन की शुरुआतहो गई। 22 साल की उम्र तक सुल्ताना का आतंक इतना फैल गया कि लोग इसके नाम से ही डर जाते थे। सुल्ताना अपने मुंह में चाकू छिपा सकता था और समय आने पर उसका इस्तेमाल भी करता था। जितना वह दिलेर था, उतना ही रहम दिल भी था। सुलताना खुद को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का वंशज मानता था। उसने अपने घोड़े का नाम चेतक  और कुत्ते का नाम राय बहादुर रखा था। सुल्ताना का खौफ उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और मध्यप्रदेश तक फैला था। सुल्ताना की तलाश में पुलिस को कई बार असफल हुई। सुल्ताना डाकू खासतौर पर अंग्रेजों को ही लूटता था।अंततः अंग्रेजों ने इस डकैत को पकड़ने के लिए फ्रैडी यंग की कमान मे सेना के 300 जवानों की टीम बनाई जिसमे 50 घुड़सवारों का दस्ता भी शामिल था। उसको पकड़ने के लिए तमाम हथकंडे अपनाये गये। रामनगर, पीलीभीत के जंगलों की खाक छानी गई। खुफिया तंत्र के साथ साथ उसके गिरोह के लोगों से भी जासूसी कराई गई। उसे  एक पुलिस सार्जेंट ब्रिटिश महिला के प्रेमजाल में फंसाया गया । गोंडा से लेकर सहारनपुर तक सुल्ताना डाके डालता था ,लेकिन उसका मुख्य अड्डा रामनगर- बिजनौर का जंगल था।  जिम कॉर्बेट के सुल्ताना-संस्मरणों में बार-बार कालाढूंगी, रामनगर और काशीपुर का जिक्र आता है।सुल्ताना के गिरोह में शुरू मे करीब 100 डकैत शामिल थे। उस वक्त अंग्रेजों का एक ठिकाना नैनीताल भी था। इसके  रास्ते में अंग्रेजों के काफिले को सुल्ताना अपना निशाना बनाता था और नजीबाबाद के जंगलों में छिप जाता था। सुल्ताना ने कई बार मालगाड़ियों को भी लूटा था। काफी मशक्कत के बाद  फ्रेडी यंग को सुल्ताना पर दबाव डालने में कामयाबी मिलनी शुरू हो गई थी। इस दबाव से बचने के लिए सुल्ताना अपने गिरोह के साथ  पीलीभीत की जंगलों की ओर चला गया। इधर सुल्ताना का गिरोह भी काफी छोटा होने लगा था। उसके गिरोह के कुछ लोग पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे और कुछ गिरोह छोड़कर घर लौट गए। पीलीभीत इलाके में ही रहकर सुल्ताना ने काफी दूर-दूर तक गोरखपुर में भी डकैतियां डालीं। इस काल मे पीलीभीत के आसपास के अनेक जमींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़कर अपना ठिकाना लखनऊ या उसके आसपास बना लिया था। अमीर उससे डरते थे और गरीब प्यार करते थे नजीबाबाद में नवाब नजीबुद्दौला ने किला पर सुलताना डाकू ने कब्जा कर लिया था। किले के अंदर से सुल्ताना ने नजीबाबाद पुलिस थाने तक सुल्ताना ने सुरंग बनाई थी। इसके द्वारा वहाँ से बंदूकें भी लूट लाता था। सन 1911 में बिजनौर थाने से 11 रायफलें लूटने के बाद सुल्ताना ब्रिटिश पुलिस के लिए चुनौती बन गया था। इसी क्षेत्र के भाबर के खूनीबड़ गांव में एक बड़ का पेड़ था, किंवदंती है कि सुल्ताना लोगों को मारकर उस बड़ के पेड़ पर टांग देता था, जिससे उसका डर लोगों में बना रहे। इसीलिए उस गांव का नाम आज भी खूनीबड़ है। सुल्ताना की डकैती और रहमदिली की कई कहानियां प्रचलित है। फ्रेडी यंग ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार के बीच ताबड़तोड़ चौदह बार छापेमारी की और आखिरकार 14 दिसंबर 1923 को सुल्ताना को नजीबाबाद ज़िले के जंगलों से गिरफ्तार कर हल्द्वानी की जेल में बंद कर दिया। सुल्ताना के साथ उसके साथी पीताम्बर, नरसिंह, बलदेव और भूरे भी पकड़े गए थे।इस पूरे मिशन में जिम कॉर्बेट के साथ साथ फ्रैडरिक और एंडरसन ने भी यंग की मदद की थी।नैनीताल की अदालत में सुल्ताना पर मुक़दमा चलाया गया और इस मुकदमे को ‘नैनीताल गन केस’ कहा गया. उसे फांसी की सजा सुनाई गई।हल्द्वानी की जेल में 8 जून 1924 को जब सुल्ताना को फांसी पर लटकाया गया। सुल्ताना को पकड़ने वाले अंग्रेज अफसर फ्रैडी यंग ने सुल्ताना के बेटे को पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया और उसका खर्चा खुद उठाया। इतनी कम उम्र मे इतनी प्रसिद्धि उसने पाई कि उसके जीवन से प्रेरित कई फिल्में उसपर बनी।




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