भोज न भात हर हर गीत

बेचारे पंडी जी बीबी और छोटे से बच्चे के साथ रहते हैं। अब वैसे ही एक दिन के लिए वायरल हुआ और आसपास के माहौल से घबराये पहुंचे हस्पताल। फटाफट और लोगों की देखा देखी नाक और मुंह मे डंडी घुसाकर सपरिवार टेस्ट दे दिये। अगले दिन बुखार भी ठीक हो गया बाकी सब चकाचक था ही। बेचारे भूल भी गये की अपने आफत की पुड़िया कहीं बांधकर चले आये हैं। पांच दिनों के बाद अचानक एक फोन ने जिंदगी को नरक कर दिया।" आप सपरिवार पाजिटिव हैं"। अब क्या करें बेचारे! मन मे भय होने लगा कि उन्हें कुछ हो रहा है, अचानक से उन्हें अंदर से बीमार होने की फीलिंग आने लगी।  अगले दिन सुबह सुबह नगरपालिका की टीम आयी और घर को चारों तरफ से सैनिटाइज कर गई। दो चार गोलियों की पुड़िया थमा गई और मोबाइल मे आरोग्य सेतु ऐप एक्टीवेट कर गई। बेचारे सुबह शाम कालोनी की गलियों मे टहलते थे, आज निकले तो लोग दूरियाँ बनाने लगे और शंका की नजरों से देखने लगे। उन्हे महसूस होने लगा कि सबकी नजरें उसी को देखकर कुछ कह रही है !"देखो ! वो पाजीटिव जा रहा है!" कलतक जो बड़े प्यार से सम्मान से मिलकर नमस्ते कर रहे थे, उन्हें देखकर कतरा कर निकलने लगे।  अगले दिन प्रशासन के एक अधिकारी दौरे पर आयै। बोले आप बाहर क्यों टहलते हैं। वो बोले मुझे कुछ हो नही रहा है और रही बात निकलने की तो मै तो जब सड़कों पर कोई नही होता है तब अकेले टहलने निकलता हूँ कलतक तो किसी को कोई दिक्कत नही थी, आज से अचानक क्या हो गया? बोले " आप घर से बाहर नही निकलेंगे? अब बेचारे पंडी जी क्या बोलें कि कूड़ा वाला आना बंद कर दिया, दूध सब्जी वाला नही आ रहा, कामवाली बाई भी आना बंद कर दी , खाना नही खायेंगे तो जीयेंगे कैसे? इतना ही नही उस साहब ने नगरपालिका वालों को डांटा कि इनके घर पर वो बैनर क्यों नही लगाया कि" ये घर कोरोना पाजिटिव का है"! शाम होते होते वो बैनर भी पंडी जी के घरपर चिपक गया। और जो भी नही जानता था, उसे भी जनाने के लिए एक लाऊडस्पीकर बांधे रिक्शा ने आकर दरवाजे पर पांच मिनट तक जोर जोर से उद्घोषणा की कि यह घर कोरोना पाजिटिव का है, इससे दूर रहें। यह और बड़ी आफत! बेचारे पंडी जी खुद बहुत सेंसिटिव हैं और कम्युनिटी स्प्रैड की भयावहता से वाकिफ हैं। फोन किया तो बताया" भोज न भात हर हर गीत! खाली सिर्फ ढ़िंढ़ोरा पीट रहे हैं पाजीटिव है भई, पाजिटिव है। कुछ करो भी तो इसके लिए।अरें! भाई यदि बीमार होने का जब ठप्पा लगा ही दिया तो फिर हेल्प करो न! कि जो लोग हेल्प कर रहे थे उसे भी भगा दिया। दवा के नामपर कुछ दिया नही, होम आईसोलेशन मे हाल चाल लेते नही। बाहर निकलने दोगे नही, किसी को अंदर आने दोगे नही। उल्टे बड़ा बड़ा बैनर लगा दिया कि इसके बाहर अंदर जाना कानूनन अपराध है।और पड़ोसियों की तो मत ही पूछो! अछूत बना दिया है "! मैने कहा यही आपदा काल मे हमारा धर्म है कि धैर्य धारण करें मात्र। प्रशासन ने आपको चिन्हित कर दिया है बाकी आप अपनी जिंदगी खुद बचा ले जाईये। अब सरकार कहां -कहां किस- किस की बचाती फिरेगी।  बेचारे पंडी जी आजकल मंदिर भी नही जा पा रहे हैं। भगवान राम ने चौदह वर्ष का वनवास झेला था ,ये चौदह दिन का झेलेंगे। न जाने उसके बाद भी और कितने दिनों तक अछूत बने फिरेंगे। चलिए इसी बहाने इन्हे भी पता चल जाएगा कि समाज मे अछूतों के साथ कैसा व्यवहार होता रहा है और वो कैसा महसूस करते रहे होंगे।

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