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Showing posts from July, 2016

कश्मीरी अवाम का दर्द

"जबरा मारे रोवन न दे" किससे कहें, कैसे कहें अपनी दास्तान ! सलीम ने जब अपनी भीगीं पलको को पोछते हुए जब ये बातें कही तो चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था! साहब  ! इस जन्नत की किसकी नजर लग गई , ...

सरकारी नौकरी मे वर्ग संघर्ष

 आपने कभी अमीरो एवम सम्पन्नो को आपस मे लडते-झगडते देखा है?? उनका हित हमेशा से सधता आया है! वे चुपके से अपना काम under the table काम कराते रहते है और जाहिराना तौर पर आम जनता की भलाई का दिखावा करते है! ये गंवई भाषा मे "भाग्य के सांढ " होते है!अभावग्रस्त एवम गरीब लोगो मे हमेशा कुछ पाने की जद्दोजहद,संघर्ष तथा लडाई होती रहती है! सम्पन्न लोग हमेशा इनको  आपस मे उलझाये रखकर अपना उल्लू सीधा करते है! क्या कभी आजतक इन दोनो वर्गो का मेल (सम्विलियन) हो पाया है? ये इनके लिए लौलीपाप तथा फंतासी ही बना रहेगा! इनका वर्ग संघर्ष जारी है और रहेगा! विभागीय सशक्त और सम्पन्न लोगो का काम केवल निम्न तबको का शोषण करना है! ये ऐसा माहौल पैदा कर देते है कि दबे कुचले  लोग मुख्यालय की गणेश परिक्रमा से लेकर  सचिवालय का चक्कर प्रारम्भ कर देते है!अधिकारियो  और  समर्थ  लोगो ने  अपना नया-नया झोला सिलवाया  लिया  है जो वो हरेक बरसात सीजन अर्थात ट्रांसफर सीजन मे सिलवाते है क्योंकि इस समय बाहर पानी और अंदर धन बरसता है!  बरसात का सीजन  आ गया है,ना जाने कितना बरस जाये...

लंगोटिया यार

बचपन मे उसका दो लंगोटिया यार था एक हरदेव पासवान और दूसरा मोहम्मद अकरम। अब लंगोट तो वे लोग बांधते नही थे, हां सरकारी कोटे के दुकान पर डोरिया वाला कपड़ा आता था,उस समय उसी का सब अं...

मार्केट मे नया है..

बूमरैंग को जब हम फेंकते है तो घूम फिरकर वापस आ जाती है ,पर इससे यह पता नही चलता कि दुनिया गोल है ।प्रयोग के तौर पर सोशल मीडिया पर आप कोई मैसेज डाल दो,इस टैग के साथ कि मार्केट मे न...

तबादला उद्योग

सरकारी विभाग मे यूँ तो तबादला एक सामान्य प्रक्रिया है पर यह कई कर्मचारियों के लिए हादसे से कम नही है।नौकरी ज्वाइन करते समय तो सब तैयार रहते हैं कि कहीं भी नौकरी करा लो परंतु...

पट्टीदारी का डाह

" का हो लाल भैया ! काहे सबेरे सबेरे मुंह लटकाये आ रहे हो? कोनो से झगड़ा मारपीट हो गया, कि भौजी से कहा सुनी हो गया! अरे! नही रे बटेसर! उ जो बगल वाली पोखरी मे मछली पालन होता है न! उसमें हरे...

पोस्टिंग

नरेश ने चैन की सांस ली ,चलो अच्छा है वो विभाग से चले गए।नये साहब तो उसके एरिया के है और पुरानी जान पहचान भी है,अब तो मजे ही मजे है।अब तो उसे मनचाही पोस्टिंग मिल जाएगी, काफी दिन से...

जीवन के रंग

धन एवं भौतिक सुखो की चाह मनुष्य को क्या से क्या बना देती है! अपने पराये, अच्छे बूरे, सच झूठ की पहचान समाप्त हो जाती है।कहा जाता है आंखों पर पर्दा पर जाता है और वह सिर्फ सामने वाल...