छिद्रान्वेषण

जनता है न, जिसने उसे प्रचंड बहुमत से जिताया है या यह भी कोई फर्जीवाडा है? चाहो तो जन सूचना अधिकार से मांग लो! तो उसे करने दो न अपने तरीके से काम! क्यों हरेक काम मे अडंगा लगाये फिर रहे हो! कुछ सोच कर ही जनता ने उसके हाथो मे सता सौंपी है, तो उसे अपने हिसाब से चलाने दो,जिसको रखना चाहे, जिससे काम कराना चाहे, कराने दो! यह भी तुमसे पूछ कर करेगा?अच्छा काम नही करेगा, जनता लात मार कर भगा देगी, जैसा सबको भगाती रही है! बमचक मचाने से क्या?यदि तुम्हारा काम इतना ही अच्छा होता तो तुम न आज, उस कुर्सी पर बैठे होते? जब अपना राज आये, तो अपनी चलाना, बस अब अपनी थोपो मत! बेकार की चकल्लस !अपने कुछ करेंगे नहीं और कोई कुछ करना चाह रहा तो चिल्लम पों मचाये रहेंगे! अरे! सार्थक मुद्दों पर विरोध करो, लोकतंत्र के महापर्व का इंतजार कर अपनी जमीन तैयार करो, ताकि जनता तुमको भी मौका दे !हड़बोंग मचाने से क्या होगा, सरकार तुम्हारी हो जायेगी?right to recall भी तो नही है यहाँ?और क्या पता बहुमत को उसका कामकाज पसंद आ रहा हो,तुम क्या जानो! कहावत है"सूप दूसलन चलनी के, जिसमें खुद बहतर छेद" अपनी गिरेबान देखो तब हल्ला मचाओ।हरेक समय छिद्रान्वेषण! यह भी कोई बात हुई भला!चुनावी लालीपाप के दिन गए । यदि काम पसंद नहीं आया तो जनता फिर बेकार कर देगी!लेकिन जबतक है तबतक तो अपनी चलाने का मौका मिलना ही चाहिए।इसका मतलब यह नही है कि विपक्ष को समाप्त कर देना चाहिए । विपक्ष का विरोध सरकार को सचेत रहने के लिए बाध्य करता है तथा हठधर्मिता एवं निरंकुशता से बचाता है ।परंतु इसका मतलब यह नही है कि सरकार अपने सही निर्णय लेने से पीछे हट जाय ।भक्ति औऱ भक्तों का क्या कहना ,वे तो सोंटा और लोटा लेके हमेशा पिले रहते ही है कि अब कोई मिला तो धर लो।पर लटकन और झंडूबाम लोगों का हाल भी कम दिलचस्प नहीं है।ये भी ताड़ते रहते है कि जहाँ कहीं किसी स्टेटमेंट मे भक्ति का स्कोप नजर आया, भक्तों मे कैटेगराइजेशन करके बकैती चालू! वैसे भी अपने देश मे बायें या मध्य मे चलना ही सही है, दाहिने साइड (पंथ)यानी कि रांग साइड।तो भक्तों से पीडि़तो! अपने मुखार विन्दु से आलोचना रुपी रस प्रवाहित करते रहे और भक्तों को भक्ति रस पान करने देते रहे।सोच-विचारों का संग्राम है जो युग युगांतर से सतत गतिशील है,कोई भी इसे दिल पर ना लें ।किसी भी साइड चलिए लेफ्ट या राइट ,मनोरंजन पर्याप्त है सारे एपिसोड मे दर्शकों के लिए, बस साइड मत पकडि़ए। लटकने वालों के लिए तो बस-ट्रक के पीछे लिखा ही होता है--लटकले त गेले बेटा !मुर्गे की दुकान पर आपने देखा होगा,जब कसाई काटने के लिए एक मुर्गा खीच कर निकलता है तो वही मुर्गा फ़डफ़डाता है।बाकि उस पिजड़े में बंद मुर्गे दाना चुगने में व्यस्त रहते है।ठीक इसी प्रकार हम है जो अपना दाना चुगने में व्यस्त है।जब अपने पर कोई बात आती है तभी फ़डफ़डा कर शांत हो जाते है।परंतु जानवर और मानव मे यही अंतर है।उनमें परिवार व समाज का concept नहीं है, कोई मरे ,क्या फर्क पडता है?वो सोच नहीं पाते कि आज तुम्हारी, कल हमारी बारी है परंतु मानव के पास दिमाग है, वो सोचता है।उसे सब पता है, वो अगर चुप है तो उसके पीछे poltics है, स्वार्थ है। politics of power game । वह चुप इसलिए नहीं है कि नासमझ है, बल्कि इसमें अपना हित देख रहा है।समाज, संगठन,परिवार, सता सभी उसके use की वस्तु है, सिर्फ अपने हित संरक्षण के लिए।जब कोई एक मुर्गा कटता है तै वो सोचता है कि उसका बांग देना, चिल्लाना उसके हित मे है कि नही।कमजोर लोग what's app और फेसबुक पर चिल्लाते हैं और ताकतवर सडको पर।सबसे चतुर मूर्गा कसाई के घर मे अंडे दे आता है,और फिर आकर दाना चुगने मे व्यस्त हो जाता है।तो खाओ पियो ,मस्त रहो।आजकल दुसरो के बारे मे मूर्ख लोग सोचते हैं।लोकलुभावन राजनीति इन के बस की बात नहीं।इसी लिए इनकी सरकार कभी केंद्र मे दुबारा लौट के न आई। बजट की दूरदृष्टि जाए तेल लेने,आमजनता को इससे क्या?व्यापारियों पर टैक्स बढा दिया, भले वहन करेगी जनता पर एक महीना से सर्राफा वाले सरकार के पीछे हुक्का पानी लेकर पडे हैं।ये वोट भी हाथ से गया ही समझो।मुखिया flight mode से बाहर ही नही आ रहे हैं और देश ध्रुवीकरण से राष्ट्रवादी mode मे जा चुका है,पता नही विकासवादी mode बीच मे आता है कि नही?।राज्यों के हाथ मे न आने से राज्यसभा मे धींगामुश्ती के बावजूद सारी कवायद ढाक के तीन पात साबित हो रही हैं। गुजराती इतिहास देखकर लगता नहीं की वे इतनी आसानी से स्टैंड अप इंडिया से

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