शख्सियत

किसी की आलोचना करने या व्यक्तित्व की समीक्षा का अधिकार या क्षमता उसी मे है जो स्वयं पाक-साफ हो।कहते हैं" शीशे के घरों मे रहने वालों को दूसरे के घरों पर पत्थर नही फेंकना चाहिए"।दुनिया मे परफेक्ट कोई नहीं होता और आदर्श पुरूष श्री राम के बाद कोई आदर्श पुरूष हुआ भी नहीं। कुछ लोग तो उनमें भी कमी खंगाल डालते  है।ऐसे मे किसी के व्यक्तित्व की आलोचना नहीं करना चाहिए, फिर भी दिल है कि मानता नही, समालोचना तो कर ही सकते हैं, खासकर तब जब वो आपकी जिन्दगी को प्रभावित कर रहा हो।। बातें तो उसकी अच्छी है ,दमदार है,सुधार परक है,परंतु समझाने का तरीका थोड़ा जुदा-जुदा सा है। तमाम लोगों को इससे पूर्व भी इसी कार्यशैली का देखा है हमने पर वो असफल और अलोकप्रिय ही रहे है हमेशा।शायद उनकी समझ है कि मानसिक प्रताडना और पब्लिकली बेईज्जती के डर से लोग उनकी बातों को follow करेगा ।जर्मनी के गोयबल्स कहते थे कि किसी बात को इतनी बार दुहराओ कि वो झूठी बात भी सही लगने लगे,हालाँकि उसकी बातें झूठी नहीं है पर दुहराता उसी स्टाइल मे है।।हालांकि उसे गोयबल्स या उसके शासक हिटलर नहीं कहा जा सकता, परंतु अनुशासन प्रियता उसी के जैसी चाहता है।संभवत वह इस मामले मे सही भी हो कि " बिनु भय होत न प्रीति",पर उसका बाडी लैंग्वेज एवं धमकी  भरा अंदाज़, भला किसी को कैसे पसंद आ सकता है, यह उसको अलोकप्रिय बना रही है,लेकिन मात्र अधीनस्थो के मध्य, आम आदमी के नब्ज को जानता है कि यदि उनके सामने, कर्मचारियों को गाली दो, प्रताड़ित करो तो वो खुश हो जाते हैं, आपकी इमेज चमक जाती है।पर अधीनस्थ सब उसके सामने जाने से बचने लगे हैं,उसे avoid करने की कोशिश करते हैं, पर वो अपना काम निकालना जानता है।वह जानता भी है कि पीठ पीछे सब उसको गाली देते हैं,पर इसको माइंड नही करता, बस अपनी धुन मे लगा है,फिर भी उसे सबको सुधारने का पागलपन और खुड़क चढी हुई है।कहता है कुछ डिफरेंट माइंड सेट का आदमी ही दुनिया को कुछ नया देकर गया है, परंतु डिफरेंट होने के चक्कर मे अत्यंत ही अलोकप्रिय होना अनुचित है।सम्मान दिल से होता है, भय से नहीं। "एकोहम द्वितीयो नास्ति" । अपने आगे किसी की प्रशंसा नहीं सुनना चाहता, यदि  धोखे से भी उसके सामने प्रशंसा किसी की किसी ने कर दी तो दोनों की अब खैर नहीं!पढाकू बहुत है, हमेशा पढता रहता है, नई नई जानकारी उसे है और उसे लागू और शेयर भी करता है।जानकारी उसे वाकई बहुत है तथा work culture सुधारने जज्बा भी सराहनीय है ,सिर्फ अपने को सही मात्र मानने और किसी दुसरे की ना सुनने की आदत सुधर जाए तो वह कुछ महान कार्य कर सकता है।कहते हैं विद्वान लोगों अच्छे श्रोता भी होते हैं।जरूरी नहीं कि अनपढ आदमी आपको कोई ज्ञान न दे पाए,उनका व्यवहारिक ज्ञान आपसे ज्यादा हो सकता है, पर क्या कभी केले के पत्ते पर पानी की बुंदो को ठहरते आपने देखा है? कैक्टस के पौधों मे फल-फूल लगते देखा है ?यह अजूबा ही होगा कि उसे अपनी आलोचना पसंद आने लगे और बातों को positively वह लेने लगे।परंतु चाटूकार पसंद होने के बावजूद उसे चाटूकारो की समझ है।फिर भी किसी के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करते उसे नही देखा गया। खैर अब मेरा उससे साबका नहीं है, पर वो हमेशा याद रहेगा और अभी अलविदा न कहें उसे दोस्तों, न जाने किस गली मे मुलाकात हो जाय।

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