साहब का दौरा

"चिडियन के जान जाए और लइकन के खिलौना" यही हाल है आजकल हम जैसो का। सरकार आने वाले हैं, सुनते ही रग रग मे बिजली दौड़ जाती है और मीटिंगो को पंख। दे दनादन दे दनादन प्लानिंग का दौर प्रारंभ हो जाता है।लूट मच जाती है यदि इन आधुनिक जागीरदारो का दौरा जो लग गया।राजा महाराजा तो प्रिवी पर्चस के साथ स्वर्ग सिधारे,पर अपनी संतानो को छोड गए। ये राजा महराजा नही हैं तो और क्या हैं जिनके आने भर की सुचना से उनकी रियासत के छोटे बडे सारे कारिन्दे हलकान हो जाते हैं।फिर मचती है धमाचौकडी, उनके दरबारियों ,सैनिको,गुप्तचरो, भाटों-कवियों की और फिर जमघट लगता है,सुर्खूरु बनने वाले हुक्मरानो और चमचो का।सारी रियासत और रियाया आवभगत मे लग जाती है।सरकारी सेवकों को सभी चाक चौबन्द व्यवस्था के हुक्म सुना दिया जाता है,कहीं कोई कोर कसर न रहनी चाहिए, लेकिन सारी व्यवस्था वह स्वयं अपने संसाधनों से करे, कोई अतिरिक्त बजट नही है , चाहे जहाँ से करें।वह भी क्या करेगा ,अपना घर लुटा कर तो दूगा नहीं, व्यवस्था कैसे बनाई जाती है, उसे मालूम है! उल्टे कमाने का मौका मिल जाता है, तीन खर्च तेरह वसूली !सब कुछ रियाया के मत्थे जाता है।आखिर कार रियाया की सरकार है, जिसे लोकतंत्र कहते है।सारा तामझाम,तंत्र, भाषण, घोषणा, दौरे, सेवाओं का संजाल किसके लिए है,जनता के लिए न! तो कौन भुगतेगा? रोड डायवर्जन, नाकाबंदी,चेकिंग, सख्त सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद ,की किलोमीटर पैदल चलने केबाद गर्मी, भूख प्यास से बेहाल के बावजूद, देखने आये हैं, शायद कुछ आज घोषणा हो जाय, अपने लिए कुछ मिल जाए। राजा जी आये हैं,बडे दयालु हैं, हमारे लिए ढेर सारी सुविधाओं की सौगात लेकर आये हैं,भाषणों के लालीपाप खाते खाते दशकों बीत गए, पर आस न टूटी है। पब्लिक खुश! राजा भी खुश! छोटे बडे सभी कारिन्दे खुश! उनकी नौकरी पक्की!दरबारी भी खुश! उनका ओहदा बरकरार ,बढने की संभावना! इस बीच अचानक एक शख्स हमसे सवाल करता है"" करोड़ों रूपया खर्च करके यह पंडाल, मंच,ताम झाम किसलिए? " क्या वाकई देश समाजवादी लोकतंत्र है?या सामंतवादी सोच लोकतंत्र पर हावी है? क्या राजतंत्र अपने छद्म रूप मे कायम है?नाम सबो के भले ही बदल गए परंतु शासन व्यवस्था वही प्राचीन कालीन प्रतीत होती है।

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