धरती के भगवान की चोखो कमाई

 " करीब बीस साल पहले की बात है जब मै अपने रुम पार्टनर के बिमार पिताजी को लेकर पहली बार एम्स गया था, इतनी भीड़ देखी की लगा" दुनिया मे कितना गम है ,मेरा गम कितना कम है!" डाक्टरों ने कहा किडनी फेल है डायलिसिस करानी होगी, यहाँ जगह नही है कहीं और करालो!" राजनेताओं और अफसरों की पैरवी थी नही तो उन्हें लेकर गंगाराम हास्पीटल गये। वहाँ एक दिन का खर्च उस समय लगभग पांच हजार बताया गया। बेचारे पांडेय जी ज्यादा सक्षम नही थे और दस दिन मे ही हिम्मत हार गये ,पिताजी को लेकर गांव वापस चले गये, उनके मरने का इंतजार करने के लिए।बड़ा या छोटा हास्पीटल ,सभी आपकी पाकेट की मोटाई की ओर देखता है। गर पाकेट मे है दम तो रख इधर वरना कचरे की तरह बाहर फेंक देते हैं, यहाँ मानवीयता मतलब कुछ नही।यह सही है कि व्यवस्था में भ्रष्टाचार दीमक के समान देश की नींव को खोखला कर रहा है लेकिन सबसे बड़ी चिन्ता का विषय है कि जिन्दगी की जानलेवा बिमारियों से रक्षा करने वाले जब मौत का सौदागर बन जायेंगे ,तो क्या होगा? धरती पर भगवान का दुसरा अवतार माने जाने वाले डाक्टर जब मरीजों को सिर्फ अपनी कमाई का जरिया मानने लगेंगे तो क्या होगा?  डिग्री प्राप्त करते वक्त प्रत्येक जिन्दगी को बचाने का संकल्प लेने वाले चिकित्सक जब पथभ्रष्ट हो जायें तो क्या होगा?आज मेडिकल समाज सेवा या व्यवसाय न होकर व्यापार या धंधा हो गया है।मरीजों का इलाज उद्देश्य न होकर उन्हें लूटना हो गया है।सरकारी अस्पताल अच्छे डाक्टर विहीन हैं और मल्टी स्पेशियलिटी क्लीनिक एवं हास्पिटलो की बहार आ गई है।सभी जगह कमीशन बंधे है - पैथोलाजी, अल्ट्रा सांउड सेटर, मेडिकल दुकान ।बिला वजह आपरेशन करना, भर्ती कर लेना, बिना मतलब टेस्ट, एक्सरे, अल्ट्रा सांउड, MRI, ct scan कराना, मंहगी दवाओं को लिखना, टेस्ट सेन्टर एवं दवाखाना recommend करना, सभी सेटिंग और धंधे का अंग है।ऐसा नहीं है कि सभी डाक्टर ऐसे हैं, अभी भी गिने चुने सहृदय और निष्ठावान डाक्टर बचे हैं जो मरीज का इलाज करना सेवा मानते हैं। परंतु डाक्टरों के लूट का धंधा बदस्तूर जारी है क्योंकि मौत का भय एवं बिमारी का कष्ट मनुष्य को लुटने हेतु विवश करता है और इन बेरहमो को इनकी बेबसी पर तरस भी नही आता।आप किसी भी हास्पीटल या क्लीनिक मे जाकर आधा घंटा समय गुजार कर देखें, लूट के chain का पता चलेगा और इन बेबसो की लाचारी का! मेडिकल कॉलेज का देश में व्यापार चल रहा है।लाखों करोड़ों के डोनेशन और कैपिटेशन फीस लेकर लड़कों का एडमिशन लेने वाले ये कालेज वास्तव मे ब्रिलियेंट बच्चे नही तलाशते बल्कि व्यवसायियों को इंवेस्ट करने के लिए प्रेरित करते हैं। करोड़ों खर्चा कर यदि कोई डाक्टर बनता है तो उससे हम समाज सेवा की उम्मीद कैसे रख सकते हैं।जब दक्षिण भारत में डाक्टरों की उपाधि प्राप्त 90 प्रतिशत एम.बी.बी.एस के छात्र दिल्ली में इंटर्नशिप करने आते हैं तो यहां इनकी पढ़ाई के स्तर की पोल खुल जाती है। दिल्ली में कई प्रतिष्ठित अस्पतालों में ऐसे नकली  और पैसे के बल पर डिग्री पाये डाक्टर मिल जायेंगे। मेडिकल कालेजों के बाजार का यह काला धन्धा चल रहा है।निजी मेडिकल कालेजो की स्थिति के संबंध मे फिल्म " शिवाजी द बास" मे दिखाया गया है कि किस तरह नेता, मंत्री ,विधायक ने इस पर कब्जा कर रखा है।  किराए के मकान में कालेज स्थापित कर देते हैं और  20 लाख रुपये लेकर 100 विद्यार्थियों को प्रवेश देंगे और यह हो गया मेडिकल कॉलेज? करोड़ाें रुपये व्यय कर डिग्री लेने वाले डाक्टरों का पैसा कमाने से सरोकार है  सेवा से नही।राजनीतिक संरक्षण में चल रहा धन्धा बन्द होना चाहिए और राजनीति के धुरन्धर जो इस बाजार के काले धन्धे में लिप्त हैं उन्हे जेल मे बंद कर देना चाहिए। मूलभूत संसाधनों तथा प्रशिक्षित योग्य प्राध्यापकों के बिना मेडिकल कॉलिज कैसे चल रहे हैं? अथवा उनके स्थापित करने पर विचार किया जा रहे हैं।करीब अस्सी प्रतिशत तक मेडिकल कॉलेज महाराष्ट्र से लेकर केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्धप्रदेश में हैं और शेष भाग में मात्र 20 प्रतिशत हैं। लखनऊ के निजी मेडिकल कालेज की घटना बताऊं कि एक मेरे रिलेटिव के एडमिशन की जानकारी के लिए जब मै गया तो मेरी इतने स्तर पर स्क्रीनिंग की गई जैसे मै उनसे एडमिशन संबंधी जानकारी लेने नही बल्कि उनका स्टिंग आपरेशन करने गया था। अंततः मुझे बताया गया कि वो एडमिशन के संबंध मे मात्र स्टुडेंट या उसके फादर से ही बात करेंगे। मूल बात यह थी कि वो डोनेशन की बात मुझसे नही करना चाहते थे। बाद मे मेरे एक डाक्टर मित्र ने बताया कि एक डाक्टर को एम बीबीएस कराने मे 60-70 लाख लगते हैं और सीधे  एमबीबीएस करने का कोई लाभ नही तो एम डी भी करो जिसमे करोड़ रुपये तक डोनेशन लेते हैं।फिर वो जब निकलेगा तो वह नौकरी से कितना कमा लेगा? स्वाभाविक रुप से प्राइवेट प्रैक्टिस करेगा और वहाँ मरीजों को औने पौने तरीके से लूटकर अपना रुपया निकालेगा। वास्तविक समस्या देश मे सरकारी मेडिकल कालेजों की कमी के चलते है । इस कारण गांव के या मध्यम वर्ग के बच्चों को डाक्टर बनने का ख्वाब देखना ही छोड़ना पड़ता है।आज गांवों मे अच्छे डाक्टर है कहाँ? कोई वहाँ जाकर अपनी जिंदगी स्पायल नही करना चाहता। शहरी सुपर स्पेशियलिटी हास्पीटल तो फाइव स्टार होटल हैं जहाँ  सांस लेने के भी मोल चुकाने होते हैं। आपने अपनी बिमारी का सिम्टम बताया तो दुनिया भर मे जितने भी टेस्ट होंगे वो लिख और कर डालेंगे और उसके बिना एक दवाई तक नही लिखेंगे। सबसे चोखा धंधा सिजेरियन डिलीवरी का है। इतना डरा देते हैं कि आप मजबूर होकर आपरेशन की हामी भर देते हैं? " देखिए मिस्टर अचानक कंप्लीकेशन बढ गया है। यदि जल्दी आपरेशन कर डिलीवरी न कराई तो जच्चा बच्चा को खतरा हो सकता है!" ऐसी स्थिति मे आप रुपया पैसा देखेंगे कि जिंदगी। यही डर है ,जिसका बिजनेस ये लुटेरे करते हैं। बड़े से बड़ा आपरेशन भगवान के भरोसे ही करते हैं पर पेमेंट तो चोखा ही चाहिए।उस भगवान को तो किसी ने नही देखा पर इस भगवान को तो सब देखते हैं पर क्षण प्रतिक्षण प्रतिमान भी भंग ही हो रहा है।डाक्टरों को अपनी  " धरती पर भगवान" की छवि को जिंदा रखना होगा वरना लोगों का विश्वास उठ जाएगा। 

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