आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
हाल ही में चीनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल डीपसीक ने अपनी एडवांस टेक्नोलॉजी और कम कीमत के कारण चैट जीपीटी , गूगल जेमिनी , अमेज़न, मेटा सदृश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडलों के लिए बाजार में काफी बड़ी चुनौती प्रस्तुत की है। इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अमेरिकी वर्चस्व के समक्ष चीनी दबदबे के रूप में देखा जा रहा है। यहां तक कि ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक सैम आल्टमैन ने भी इसकी काफी प्रशंसा की है। वास्तव में डीपसीक एक चीनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंपनी है,जो ओपन-सोर्स और एडवांस लार्ज लैंग्वेज मॉडल विकसित करती है, जबकि उससे पहले नंबर पर रही चैट जीपीटी क्लोज्ड सोर्स लार्ज लैंग्वेज माडल पर आधारित है। अपने लांचिंग के कुछ दिनों में डीपसीक ने संयुक्त राज्य अमेरिका में आईओएस ऐप स्टोर पर सबसे अधिक डाउनलोड किए जाने वाले मुफ्त ऐप के रूप में चैटजीपीटी को पीछे छोड़ दिया। अपने नवीनतम रुप में डीपसीक ने जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट को ओपन सोर्स बना दिया है।यह खुलापन और पारदर्शिता इसे लोकप्रिय बना रही है। ओपेन-सोर्स बनाम क्लोज्ड-सोर्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। ओपेन सोर्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है, जिसमें कोड सबके लिए मुफ्त में उपलब्ध होता है। इसमें किसी को भी सॉफ्टवेयर की जांच करने, उसमें सुधार करने और योगदान देने का अधिकार मिल जाता है। दूसरी तरफ, क्लोज्ड-सोर्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोड पर स्वामित्व केवल डेवलपर्स कंपनी के लिए ही सुलभ होता है। इससे सॉफ्टवेयर के विकास पर कंपनी का पूरा-पूरा नियंत्रण हो जाता है।
लेकिन इन सबके बीच भारत की स्थिति जानना भी प्रासंगिक है। कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत ने जिस गति से विश्व समुदाय में अपना स्थान बनाया है उसके दृष्टिगत वैश्विक बाजार की नजर भी भारत पर है।नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज-नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कौशल प्रसार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रतिभा एकाग्रता के मामले में पहले स्थान पर है। यह जी 20 और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन देशों में शीर्ष स्थान पर है। इस स्थिति को बरकरार रखते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बढ़ती लोकप्रियता और आवश्यकता के दृष्टिगत भारत भी अपना देसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल , जिसमें स्वदेशी लार्ज लैंग्वेज मॉडल बनाने की तैयारी कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार बढ़ती टेक्नोलॉजी के कारण प्रत्येक वर्ष आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की लागत दस गुना कम हो रही है। आज भारत ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन चुका है, और भारतीय डेवलपर्स चिप निर्माण, मॉडल डेवलपमेंट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एप्लिकेशन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। सरकार द्वारा इस क्षेत्र में लगभग दस हजार करोड़ रुपए के निवेश से देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्टार्टअप्स और नवाचारों को निश्चित रुप से बढ़ावा मिल रहा है। इसके द्वारा भारत सरकार का उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्टार्टअप्स को तकनीकी और आर्थिक रूप से मजबूत करना है, जिससे वो वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ सके। इस नए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिशन के तहत सरकार स्टार्टअप्स, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स और टेक कंपनियों को फंडिंग और रिसर्च सपोर्ट उपलब्ध करा रही है। निश्चित रूप से इससे नई नौकरियां, टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अतिरिक्त सरकार इस मिशन के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में निजी कंपनियों और सरकारी एजेंसियों के बीच साझेदारी और तालमेल को भी प्रोत्साहित कर रही है। इन सब प्रयासों से भारत में अबतक लगभग 18,693 जीपीयू की एक उच्च स्तरीय और मजबूत कॉमन कंप्यूटिंग सुविधा तैयार हो गई है, जो ओपन सोर्स मॉडल डीपसीक की तुलना में करीब 9 गुना और चैटजीपीटी के मुकाबले लगभग दो तिहाई है। इससे छोटे स्टार्टअप, शोधकर्ताओं और छात्रों को उच्च प्रदर्शन वाले कंप्यूटिंग संसाधनों तक पहुंच बनाने में मदद मिली है। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विकसित करने वाले उन प्रमुख देशों के विपरीत है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बाजार पर सिर्फ बड़ी कंपनियां का वर्चस्व होता है। यहां यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि भारतीय स्वदेशी ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मात्र एक डॉलर प्रति घंटा की दर से उपलब्ध कराएगी, जबकि वैश्विक स्तर पर जीपीयू एक्सेस की लागत करीब ढ़ाई से तीन डॉलर प्रति घंटा है।
वस्तुत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मतलब है कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द की उत्पत्ति वर्ष 1956 में डार्टमाउथ कॉलेज में एक वैज्ञानिक सम्मेलन में हुई थी। उस समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संस्थापकों में से एक मार्विन मिंस्की ने इसे मशीनों से ऐसी चीजें करवाने का विज्ञान के रूप में वर्णित किया था, जिन्हें यदि मनुष्य द्वारा किया जाता तो मानवीय बुद्धि की आवश्यकता होती। वस्तुत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम एक अकेली तकनीक नहीं है, बल्कि तकनीकों का एक समूह है, जिसे विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने के लिए आपस में जोड़ा जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मशीनों की वह क्षमता है ,जो मनुष्यों की तरह सीखने और कार्य करने की क्षमता रखती है, ताकि वे सफलतापूर्वक लक्ष्य प्राप्त कर सकें। दूसरे शब्दों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक ऐसी विधि है , जिसके द्वारा कंप्यूटर, कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या सॉफ़्टवेयर को मानव मस्तिष्क की तरह बुद्धिमानी से सोचने में सक्षम बनाया जाता है। अपनी उपयोगिता और भविष्य के विस्तृत फलक को देखते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का निर्माण मानवीय सभ्यता के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बाजार 8 बिलियन डॉलर का है और यह बाजार चालीस प्रतिशत से अधिक की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर गूगल डीपमाइंड द्वारा प्रोटीन फोल्डिंग में सफलता और ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल के उदय ने इस नये युग को परिभाषित किया है ,जिसमें मशीनें इंसानों की तरह व्यवहार करने की दिशा में अग्रसर है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास के क्षेत्र में भारत, एशिया प्रशांत क्षेत्र में सिंगापुर और हांगकांग के बाद तीसरे स्थान पर है। नीति आयोग के एक आकलन के अनुसार इस क्षेत्र में बढ़ते निवेश , विकास और प्रगति को देखते हुए इस वर्ष 2035 तक इसके द्वारा सकल घरेलू उत्पाद में 957 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक जोड़ा जा सकता हैं। भविष्य में इस क्षेत्र की आवश्यकता और वृहत् स्कोप को देखते हुए वर्तमान में भारत में लगभग 1600 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्टार्टअप हैं। यह स्टार्ट अप वेयरहाउस रोबोट और स्मार्ट इलेक्ट्रिक स्कूटर विकसित करने से लेकर रिटेल एनालिटिक्स और ग्राहक स्वास्थ्य प्रबंधन तक विस्तारित है। इस क्षेत्र में तीव्र प्रगति के दृष्टिगत शिक्षा के क्षेत्र में युवाओं में रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के प्रति दिलचस्पी जगाने और टेक्नोलॉजी संचालित भविष्य की ओर बढ़ने के लिए 50 हजार अटल टिंकरिंग लैब्स का विस्तार किया जा रहा है। इस साल निजी क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अनुसंधान और विकास के लिए 20 हजार करोड़ रुपए का बजट रखा गया है।सेंटर फार एक्सीलेंस देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-संचालित शिक्षण प्लेटफॉर्म विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। वर्ष 2023 में सरकार ने दिल्ली में स्वास्थ्य सेवा, कृषि और सस्टेनेबल शहरों पर केंद्रित तीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की घोषणा की गई थी। बजट-2025 में भी 500 करोड़ रुपये के खर्च के साथ शिक्षा के लिए एक नया उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की घोषणा की गई है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग पंजाब पुलिस गुरुग्राम स्थित स्टार्ट-अप स्टैकू के साथ मिलकर कर रही है। यह संदिग्धों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए डिजिटल आपराधिक रिकॉर्ड और स्वचालित चेहरे की पहचान का उपयोग करता है। कृषि क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग फसल पैदावार को भूमि और मौसम के अनुकूल करने के लिए मौसम पैटर्न मॉडलिंग और भू-स्थानिक इमेजिंग जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। चिकित्सा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल मेडिकल इमेज विश्लेषण में सुधार लाने के लिए किया जा रहा है, जिससे घातक बीमारियों का पहले से पता लगाया जा सके और अधिक सुगम और उपयोगी उपचार योजनाएं विकसित की जा सकें। शिक्षा क्षेत्र में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-संचालित नई प्रौद्योगिकियां कमजोर विद्यार्थियों की पहचान करने, दाखिलों का पूर्वानुमान लगाने और परिणामों की भविष्यवाणी करने में मदद कर रही हैं। भारत सरकार ई-गवर्नेंस, कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, वित्त और बैंकिंग से लेकर कानून प्रवर्तन के क्षेत्रों में, कुछ अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकों को लागू करने में सबसे आगे रही है। माई गोव एप, कोरोना हेल्पडेस्क, आरोग्य सेतु, डिजी लॉकर, डिजी यात्रा और को-विन जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-संचालित उपकरण और एप इसका उदाहरण हैं। आंध्र प्रदेश में माइक्रोसॉफ्ट ने इंटरनेशनल क्रॉप इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स के साथ मिलकर माइक्रोसॉफ्ट के कॉर्टाना इंटेलिजेंस सूट द्वारा संचालित एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बुवाई ऐप विकसित किया है, जो मशीन लर्निंग का उपयोग करके डेटा एकत्र करती है और किसानों को बुवाई की संभावित और उपयोगी तिथियों के बारे में सलाह भेजती है। आज विश्वभर में वायुयानों का आवागमन अर्थात एयर ट्रैफिक सिस्टम पूर्णतः कंप्यूटर और इसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निर्भर है। स्वास्थ्य सेवा में डायबिटिक रेटिनोपैथी की प्रारंभिक पहचान के लिए त्रिनेत्र नाम का पोर्टेबल डिवाइस बनाया गया है। वातस्फीति जैसी पुरानी बीमारियों का निदान करने के लिए और स्तन कैंसर के रोगियों में भी नए कारकों की पहचान करने और बीमारी का जल्दी से पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल किया जा रहा है। स्मार्ट शहरों में स्मार्ट मोबिलिटी और परिवहन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है। सी-डैक ने सारणी फ्लाइट-शेड्यूलिंग विशेषज्ञ प्रणाली बनाई है । टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भारतीय रेलवे के लिए फॉर्मेंट-आधारित स्पीच सिंथेसिस सिस्टम बनाया है। इंडियन इंस्टीट्यूट और स्पेस साइंस और इसरो ने एक इमेज प्रोसेसिंग सुविधा बनाई है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटर विज़न का उपयोग करती है।
स्पष्ट रूप से मानवीय भविष्य मे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भूमिका अहम होनेवाली है तो स्वाभाविक रूप से समग्र विकास के साथ साथ नैतिकता, सामाजिकता और सह अस्तित्व का प्रश्न महत्वपूर्ण है। नैतिकता का संबंध एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रहों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एप में भेदभाव, डाटा पर सहमति, निगरानी और नियंत्रण अर्थात निजता का उल्लंघन पर रोक और कानूनी उत्तरदायित्व से ही हो सकता है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य उर्जा के उपयोग से है क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्षमता ऊर्जा की व्यापक खपत से तैयार होती है इससे अत्यधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन भी होता हैं। जैसे-जैसे डेटासेट और मॉडल जटिल होते जाते हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल को प्रशिक्षित करने और संचालित करने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ेगी है। ऊर्जा खपत में होने वाली यह वृद्धि सीधे-सीधे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को प्रभावित करेगी, जिसको ध्यान में रखते हुए सस्टेनेबल डेवलपमेंट का प्रश्न महत्वपूर्ण होगा। लेकिन इंसान अपनी प्रगति के रास्ते में आनेवाले इन बाधाओं को दूर करने के दिशा में सार्थक कदम उठाता रहेगा।
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