प्राचीन नगरी द्वारिका

उ उउईउउ ईसा पूर्व तक यह भारतीय और अरबी क्षेत्रों के बीच व्यापारिक संपर्कों का द्वार था। वास्तव में संस्कृत  शब्द 'द्वारिका'  का अर्थ  'पोर्टल' या 'दरवाजा' है, जो इस प्राचीन बंदरगाह शहर की ओर इंगित करता है। यह भारत आने वाले विदेशी नाविकों के लिए एक प्रवेश बिंदु के रूप में काम करता था।  बेट द्वारका में उत्खनन से उतर- हड़प्पा मुहरें, तांबे के मछली के कांटे और एक उत्कीर्ण जार जैसी कलाकृतियाँ मिली हैं, जो स्पष्ट करती हैं कि यह द्वीप नगरी कभी एक संपन्न व्यापार केंद्र था। आज पुरानी द्वाईउईईईईउऊउईईउउईईईईईईऊईईईईईईईईरिका नगरी समुद्र में लगभग 300 फीट की गहराई में डूबी है। चूंकि देश में पानी  के अंदर जाकर पुरातत्व संबंधी खोज करने वाले पुरातत्वविद बहुत कम हैं, इसलिए प्राचीन द्वारिका नगरी संबंधित शोध कार्य धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण न अंडर वाटर शोधों  को आगे बढ़ाने के लिए  ‘अंडर वाटर आर्कियोलॉजी विंग’ को सुदृढ़ करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। वस्तुत समुद्र के भीतर द्वारिका की खोजवाली  जगह पर ज्वारीय अंतर्धारा के कारण, केवल दिसंबर और जि थे लेकिन नवरी में ही पानी के नीचे गोता लगाया  जा सकता है। 

             द्वारिका  नगरी के समान ही विश्व इतिहास में अनेक ऐसे नगर है जो हिमयुग के बाद समुद्र का जल स्तर बढ़ने के का समुद्र के गर्भ में समा गए। तमिलनाडु के पास महाबलीपुरम के भी इसी तरह समुद्र में प्राचीन नगरी के होने की संभावना है जिसका पता वर्ष 2004 की सुनामी के समय पता चला, जब उसके कुछ हिस्से समुद्र से बाइसबार जे छहर आ गए थे। समुद्र  में दस मीटर नीचे की एक जगह में खंडहर मिले थे, जिन्हें समुद्र ने नष्ट कर दिया था। भारत ही नहीं दुनिया के कई दूसरे देशों में भी प्रलय, जल प्रलय, ज्वालामुखी जैसी घटनाओं या फिर बाढ़ में शहरों के डूबने की घटनाओं के उदाहरण  हैं। पश्चिमी सोलोमन द्वीप समूह, सेंटोरिनी (ग्रीस), ऑस्ट्रेलिया द्वीप में भी 'डूबे हुए शहरों  के बारे में कथानक प्रचलित है। ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों का मानना है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण ज़मीन का एक बड़ा क्षेत्र जलमग्न हो गया था और इसको लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इन्हीं सब किंवदंतियों, मान्यताओं, कथाओं के आधार पर इन नगरों/शहरों की खोज का अध्ययन करने के लिए वर्ष 1966 में वैज्ञानिक डोराती विटालियानो ने भू-विज्ञान की एक शाखा के तौर पर जियोमिथोलॉजी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य किसी मिथक के पीछे के भूवैज्ञानिक घटना की जांच करना था। यह विज्ञान भी पौराणिक द्वारिका नगरी के शोध की दिशा में कार्य कर रहा है। वस्तुत: वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार लगभग एक हजार ईस्वी में अपने वर्तमान स्तर तक पहुँचने से पूर्व समुद्र का जल स्तर अनेकों बार घटा-बढ़ा  है। समुद्र के इन बदलते जल स्तरों का कारण भूगर्भीय विक्षोभ , जलवायु परिवर्तन,तटीय कटाव आदि  है। यहां एक तथ्य विचारणीय है कि  द्वारिका नगरी के समुद्र में डूबने की  कहानी ग्रीक नगर ‘अटलांटिस’ के बाढ़ में नष्ट होने की कहानी से मेल खाती है।महान दार्शनिक और चिंतक प्लेटो के अनुसार प्राचीन अटलांटिस सभ्यता लगभग 9 हजार वर्ष  पहले बाढ़ में डूबकर नष्ट हो गई थी। हालांकि द्वारिका के जलमग्न होने के समय को लेकर इतिहासकारों, पुरातत्त्ववेत्ता, समुद्र विज्ञानियों में मतभेद है। कुछ इसे लगभग 5 हजार वर्ष  पूर्व तो कुछ इसे  9 हजार वर्ष पूर्व में समुद्र में विलीन होना मानते हैं। श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य शास्त्रों के अध्ययन के अनुसार द्वारका वर्ष 3102 ई.पू. में समुद्र में समाहित हुआ था जो द्वापर युग का अंत और कलयुग का प्रारंभ काल माना जाता है। प्राचीन खगोलविद वराहमिहिर के सूर्य सिद्धांत के अनुसार भी ईसापूर्व 3102 ही सही समय था। लेकिन कुछ ब्रिटिश पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार 9 हजार वर्ष पूर्व हिमयुग की समाप्ति पश्चात समद्र का जलस्तर बढ़ने लगा  तो उसमें तात्कालीन अनेक तटवर्ती शहर समुद्र  में डूब गए, जिसमें द्वारिका नगरी भी थी।  विष्णु पुराण में एक स्थान पर ‘कृष्णांत दुर्गम करिष्यामि’ का उल्लेख है, अर्थात  भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारिका समुद्र में विलीन हो गई थी, जो आज से लगभग 5100 वर्ष पूर्व की घटना थी। 


          सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता लगभग 4 हजार वर्ष पूर्व  सिंध क्षेत्र से भारत के विभिन्न राज्यों में फैल गई थी। इस भारतीय प्राचीन सिंधु घाटी की आर्यन सभ्यता को विश्व के इतिहास में सबसे पुरानी सभ्यता के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन नवीन पुरातात्विक खोजों से द्वारिका नगरी के अवशेष  5 हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन प्रमाणित  होते हैं।  इतिहासकार ए जे चावड़ा के अनुसार जिसे हम सिंधु घाटी सभ्यता कहते हैं, वह वास्तव में द्वारिका सभ्यता थी। यह कथन अतिशयोक्ति प्रतीत होता  है। वस्तुत इतिहासकारों को सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीन मूर्तियों में शिव-पार्वती की मूर्तियां और विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं, जो स्पष्ट करती है कि यह सभ्यता एक आर्य सभ्यता थी। इतिहासकार ए जे चावड़ा के अनुसार लगभग 5500-6000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका नगरी  बसाकर एक आर्य सभ्यता की नींव रखी थी, जो आगे  चलकर सिंधु घाटी सभ्यता के नाम  से विस्तारित हुई। हड़प्पा सभ्यता के शहर मोहन-जो-दाड़ो, लोथल, हड़प्पा, धोलावीरा आदि विकसित और सुनियोजित शहर माने जाते थे, जो द्वारिका  के समान थे। द्वारिका की नगर संरचना और मोहनजो-दाड़ो की नगर रचना एकसमान थी। कई अर्थों में द्वारका नगरी मोहनजो-दाड़ो से भी अच्छे तरह से प्रबंधित और बसाई गई थी। राष्ट्रवादी  इतिहासकारों के अनुसार विश्व की सबसे विकसित और सुनियोजित नगरी द्वारिका को इतिहास में जगह न मिलने के पीछे मुख्य कारण यह है कि द्वारिका का निर्माण हिंदू धर्म के भगवान श्रीकृष्ण ने किया था। वस्तुत ब्रिटिश काल से लेकर हाल फिलहाल तक इतिहास के क्षेत्र में वामपंथी इतिहासकारों का वर्चस्व रहा है, जिनके अनुसार भारत का इतिहास हड़प्पा से शुरू होता है और रामायण या महाभारत एक पौराणिक महाकाव्य भर है। अनंत सदाशिव अल्तेकर  एवं धर्मानंद कोशाम्बी सदृश इतिहासकारों ने भी द्वारिका का कृष्ण के  राज्य से कोई संबंध मानने  से इंकार कर दिया था। वस्तुत राम और कृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष मानने पर भारत का इतिहास काफी पहले से प्रमाणित हो जाता और ऐसा ब्रिटिश इतिहासकार सहित अन्य विद्वानों के उस थ्योरी को झटका लग जाता ,जो यह प्रमाणित करने में लगे हैं कि आर्य भारत में बाहर आये थे और उन्होंने भारतीयों में सभ्यता संस्कृति का बोध कराया। असल में ब्रिटिश शासन के भारत में औचित्य पर कुठाराघात होता। 

              पौराणिक ग्रंथों में द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्यस्थान के नाम से भी जाना जाता है। जैन सूत्र ‘अंतकृतदशांग’ में द्वारका के 12 योजन लंबे, 9 योजन चौड़े विस्तार का उल्लेख है तथा इसे कुबेर द्वारा निर्मित बताया गया है।  इस नगरी के वैभव और सौंदर्य के कारण इसकी तुलना इंद्र की स्वर्ग नगरी अलकापुरी से की गई है। मान्यता है कि महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण  द्वारिका का नाम कुशस्थली हुआ था। विष्णु पुराण के अनुसार इसी प्राचीन कुशावती के स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी। द्वारिका नगरी का उल्लेख  महाभारत,स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत गीता और हरिवंश में भी मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वारिका  भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण के द्वारा बसाया गया। अपने मामा  कंस की हत्या करने के कारण कंस के श्वसुर मगध नरेश जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर निरंतर आक्रमण करना शुरू कर दिया था। इससे त्रस्त होकर कृष्ण ने अपने यदुवंशियों के साथ मथुरा छोड़ दिया और सौराष्ट्र आ गये और यहां उन्होंने अपने लिए एक नगरी बसाने के लिए समुद्र से स्थान का मांग की ताकि जब के बीच रहकर वे सुरक्षित रह सकें। मथुरा छोड़ने के चलते  कृष्ण को रणछोड़ कहते हैं,जबकि द्वारका के संस्थापक होने  के कारण उन्हें द्वारकाधीश कहा जाता है। समुद्र प्रदत्त भूमि पर देव शिल्पी विश्वकर्मा ने द्वारिका नगरी का निर्माण किया। शहर में कृष्ण की 16 हजार 108 पत्नियों के लिए महल और नगरवासियों के लिए घर बनाए गए थे। द्वारिका अर्थात् कई द्वारों का शहर, जिसे संस्कृत में  द्वारवती भी कहा जाता है। इस नगर के चारों तरफ ऊंची-ऊंची दीवारें थी, जिनमें कई सौ दरवाजे बने थे। हिंदू मान्यता और महाभारत काल की किंवदंतियों के अनुसार द्वारिका भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद समुद्र  में वापस में डूब गया था। भगवान कृष्ण इस नगर  में लगभग सौ साल तक निवास करते रहे। द्वारिका एक किलाबंद नगर था। इन धामों और नगरों का उल्लेख गरुड़पुराण के प्रेतखण्ड के 34वें और 56वें ​​श्लोक में मिलता है। स्कंदपुराण के काशीखंड में भी इन सभी सात नगरों का उल्लेख है । द्वारिका हिंदुओं के सप्तपुरियों और चार धाम के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। इन सब नगरों में सबसे पवित्र द्वारिका धाम ही है। 

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