गांधी व्यक्ति नहीं विचार हैं

महात्मा गांधी प्रासंगिक रहे है और रहेंगे। वस्तुत: अहिंसा का कोई विकल्प नही है, परंतु सभी लोग गांधी जी के विचारों से  सहमत नही थे। जब नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या की तो वह  भागा नही बल्कि आत्मसमर्पण किया क्योंकि उसने गांधी को नही बल्कि उनके विचारो को मारने का प्रयास किया था, उनके विचारों को चुनौती दी थी। संभव  है यदि गांधीजी की हत्या नही हुई होती तो शायद वो इतने अनुकरणीय न होते, क्योंकि मरने के बाद सिर्फ अच्छाईयां ही रह जाती है। अगर वो जिन्दा रहे होते तो संभव है कि  उनकी चारित्रिक कमियां सामने आती जाती और तब शायद उस इंसान का महात्मा या भगवान मे परिवर्तन मुश्किल होता । हरेक आदमी में अच्छाई-बुराई दोनों होती है, जाहिर है मोहनदास करमचंद गांधी भी इससे परे नहीं थे। गोडसे मानता था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी। जैसे कि आज हिन्दूवादी कहते हैं कि इसी तरह हिन्दुओं मे परिवार नियोजन और मुसलमानों मे जनसंख्या वृद्धि होती रही तो मुस्लिम एक दिन यहाँ भी बहुसंख्यक हो जायेंगे। गांधीजी की हत्या करने के पीछे गोडसे के अपने तर्क थे , जिसको वह सही ठहराने के लिये न्यायालयो मे लडता रहा। भगत सिंह ने असेम्बली मे बम फेंक कर सरेंडर किया था , ताकि वो पुरी दुनिया को न्यायालय मे दिये अपने वक्तव्यो के माध्यम से  अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध  अपने आंदोलन के उद्देश्य," फिलासफी आफ बम" के बारे मे बता सके। उसी प्रकार गोडसे न्यायालय का उपयोग करना चाहता था पर न्यायालय ने उसके बयानों को बाहर निकलने पर रोक लगा दी। गोडसे भी राष्ट्र भक्त थे पर उनके राष्ट्र की परिभाषा गांधीजी के राष्ट्र के परिभाषा से अलग थी। उसने अपने राष्ट्र वाद को आगे बढाने के लिए उन्होंने पिस्तौल का सहारा लिया। अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने मे सहयोग देने से गांधी जी ने  साफ़ मना कर दिया । बाद मे उधम सिंह ने स्वयं जाकर लंदन मे बदला ले लिया, पर समझने की बात है कि गांधीजी इस हिंसा -प्रतिहिंसा के सर्वथा विरूद्ध थे। महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे।  हालांकि गांधी जी का इसके पीछे उद्देश्य यह था कि उन्हें डर था कि बहुसंख्यक हिंदु मुसलमानो को उनका अधिकार नही देगी। भारत विभाजन के विरोध मे वह अनशन पर बैठ गये थे। गांधी जी की नजर मे हिन्दू मुस्लिम भाई भाई है तो बटवारा क्यों? गांधीजी का जवाहरलाल के प्रति प्रेम और अनुराग जगजाहिर है।  वो ये चाहते थे कि सुभाष जैसे उग्र युवा के हाथो  मे देश का भविष्य ना हो।  जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी ,गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया कि वे अंग्रेज़ी सरकार से उन्हे छोड़ देने को कहे क्योंकि किसी भी दशा मे वो हिंसा को बर्दास्त नही  करते थे।गांधी जी  ने कहा था कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए । उधर  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था । गांधी जी भारत के एकीकरण के पक्ष मे थे परंतु ताकत के बल पर उसे भारत मे मिलाने के पक्ष मे वो शायद नही होते। अंत समय तक वो जिन्ना की बातों को इसलिए मानते रहे कि उन्हे लग रहा था शायद बटवारा न हो। इसीलिए महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी, जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध भी  किया। वो  मुसलमानो को अपने ज्यादा नजदीक दिखाने की कोशिश  करा रहे थे जिससे वो असुरक्षित महसूस ना करे, परंतु इससे मुस्लिम तुष्टीकरण की शुरुआत भी मानी जाती है। गोडसे इससे काफी विचलित थे कि गांधीजी एकतरफ मुस्लिमों के पक्ष मे सबकुछ किए जा रहे हैं। हालाँकि कहा जाता है कि किसी को आहत करना है तो उसके विचारों पर प्रहार करो, उस पर नही ,परंतु यहाँ तो गोडसे ने गांधी के विचारों से आहत होकर गांधीजी को ही मार डाला। गांधीजी के विचारों को अंग्रेजी साम्राज्य नही मार सकी तो भला गोडसे क्या मार पाते । जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने  इसे स्वीकार कर लिया। इतना ही नही जब सरदार पटेल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित करवाया तब भी गांधी जी ने इसको  निरस्त करवा दिया और आमरण अनशन की धमकी देकर सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला । इन सब घटनाओं से हिन्दू जन मानस को ठेस पहूंचता था। वस्तुतः हिन्दू मुस्लिम मे उस समय तक मन मुटाव इस कदर बढ चुका था कि उनके पक्ष मे लिया जानेवाला एक कदम दूसरे को आहत करता था।आजादी के बाद भारत को  समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये पाक को देने थे, जिसमे से भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था, जिससे क्षुब्ध होकर शेष 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया गया, जिसका  गांधीजी  ने विरोध किया और आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।  दबाव मे 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी , परंतु गोडसे ने तय कर लिया था कि अब गांधीजी का जीवित रहना हिन्दुओं के लिए सही नही है। गोडसे एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक सोच थी, जिससे प्रभावित होकर उस समय कई लोग  रहे होंगे जो इन सब कारणों से गांधी जी को मार देना चाह रहे होंगे। अभिनेता कमलहासन की एक फिल्म आई थी" हे राम" जो गांधीजी के हत्या से संबंधित थी,जिसमे नायक भी इन्हीं सब कारणो से गांधीजी की हत्या करने का प्रयास करता है पर उससे पहले गोडसे सफल हो गये।

      हाल में आई एक फिल्म द गांधी मर्डर "  की टैगलाइन है कि " बड़े लोगों की हत्या बेकार नहीं जाती " शायद यही कारण था कि महात्मा गांधी के हत्या की साज़िश का पता चलने के बाद भी तत्कालीन खुफिया पुलिस, सिविल पुलिस और सशक्त राजनेताओं ने भी हाथ पर हाथ धरे रखा। शायद गांधी भी जानते थे कि बंटवारे के बाद जो हिंदू मुस्लिम दंगों का भीषण दौर चला है, वह उनकी मौत से थम सकता है। तभी तो अपने अंतिम मुलाकात में सरदार पटेल को उन्होंने कहा कि " यदि जिंदा रहा तो काठियावाड़ से आये लोगों से मिल लूंगा। " उन्होंने बिड़ला हाउस में आनेवाले लोगों की व्यक्तिगत तलाशी लेने से भी पुलिस को मना कर दिया था। खुफिया पुलिस का अधिकारी रैना बार बार इस तथ्य को उल्लेखित करता है कि अमेरिकी सिविल वार का अंत अब्राहम लिंकन की हत्या से ही हो पाया। आखिरकार राष्ट्र के लिए कुर्बानी राष्ट्रपिता को ही देनी थी। 

 "द गांधी मर्डर "तो पूरी गांधी मर्डर थ्योरी को ही उलट देती है जिसमें हिंदूवादी संगठनों के गांधी मर्डर प्लान को छुपाया गया। फिल्म में नाथूराम गोडसे स्वयं जांचकर्ता पुलिस अधिकारी जिमी को बताता है कि उसे इन्वेस्टिगेटर इसी लिए बनाया गया है कि गांधी मर्डर का सच कभी बाहर न आने पाए। अगर महात्मा गांधी के पास पर्याप्त सुरक्षा थी, तो पुलिस ने क्यों उस वक्त कार्रवाई नहीं की। मर्डर कहानी का अधिकांश हिस्सा अभी भी फाइलों में क्यों दबा हुआ है, जिसपर जांच समिति और जज दोनों सवाल उठा चुके हैं।मामले में विशेष न्यायाधीश आत्माचरण अग्रवाल ने टिप्पणी की थी कि अगर पुलिस उपलब्ध खुफिया जानकारी पर कार्रवाई करती तो शायद यह त्रासदी कभी नहीं होती। क्या जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को पता था कि गोडसे गांधी को मारेगा? पुलिस को पता था कि गोडसे की तैयारी क्या है, उसके पास गन कौन सी है। वह कौन से होटल में रुका है। इसके बावजूद सभी ने गांधी को क्यों मरने दिया ? आईबी प्रमुख ने तब राणा और नागरवाला से कहा कि भारत के गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल को गांधी के हमले के जोखिम से बचने के लिए ढीले सिरों को बांधने की कोशिश करें। बॉम्बे राज्य के गृह मंत्री मोरारजी देसाई ने भी एक समानांतर स्रोत से खुफिया जानकारी हासिल की और नागरवाला और पटेल को सतर्क किया। हत्या के पीछे गोडसे की अपनी थ्योरी थी कि 

"गांधीजी महान हैं, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन इतने भी महान नहीं हैं कि हिंदुत्व को मार सकें।' फिल्म तो एक कहानी है परंतु कहीं न कहीं यह तथ्यों पर आधारित है।

           यद्यपि गोडसे ने भी स्वीकार किया है कि  गांधी जी बहुत बड़े देशभक्त थे , जिन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की । वो उनका बहुत आदर करता थे लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के तथा एक संप्रदाय के साथ पक्षपात करने देने के पक्ष मे नही था। गोडसे ने कहा था कि गांधी जी की हत्या करने  के अलावा कोई विकल्प नही था। गोडसे को भटका हुआ इंसान कहा जाता है पर उसकी अपनी सोच थी। गांधीवादी विचारों /सिद्धांत पर चलकर  आगे कई देशों को आजादी भी मिली। गांधीवादी दर्शन और थ्योरी पर लगातार शोध हो रहा है कि आखिरकार क्या चमत्कार था उनमे?  वह ब्रिटिश साम्राज्य जिसके बारे में कहा जाता है कि जिसमें कभी सूरज अस्त नही होता था, उस अधनंगे फकीर के सामने झुक गया। हालांकि सभी इससे सहमत नही है कि मात्र गांधीजी के कारण देश आजाद हुआ, और वो गलत भी नही हैं, क्योंकि इससे लाखों करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी पर प्रश्नचिन्ह उठ जाएगा। परंतु यह तो जगजाहिर है कि  जीत का श्रेय तो हमेशा कप्तान को ही मिलता है। सभी विचारधारा के मानने वालों के अपने मसीहा होते है और उसके पीछे दृढ़ तर्क भी होता है, उसी तरह गोडसे और गांधी  दोनों को मानने और पूछनेवाले हैं। जैसे उतरी भारत मे राम को नायक और रावण को खलनायक माना जाता है लेकिन कंबन रामायण मे रावण नायक बना है। दुर्योधन को भी सही मानने वालो के पास तर्कों और तथ्यो की भरमार है। गोडसे भी कुछ लोगो के लिए पूज्य हो सकते हैं पर भारतीय जनमानस मे गांधीजी हमेशा " महात्मा" रहेंगे, भले ही उनपर आक्षेपो का "अग्निबाण " चलता रहेगा। यह बुद्ध महावीर की धरती है, जिसने सबको शांति अहिंसा का पाठ पढाया है ,गांधीजी उसको आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति थे,उन्होंने मरते हुए भी अपने हत्यारे को माफ कर दिया था। यह अलग बात है कि देश का सेंटीमेंट और कानून उसे माफ नही कर पाया। वर्तमान मे गोडसे वाद का पुनरुत्थान हो रहा है, जिसकी सफलता की राह में गांधीवाद एक चट्टान की भांति अडिग खड़ा है। 

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