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Showing posts from 2019

पहाड़ों मे ट्रैफिक जाम

"हुस्न पहाड़ों का, क्या कहना कि बारहों महीने यहाँ मौसम जाड़ों का" ये फिल्मी गाने कभी हकीकत हुआ करते थे पर अब किस्से कहानियों का हिस्सा बनकर रह गये हैं।"आओगे जब तुम साजना, अंगना फ...

आपका रसिया

आपसबको फिल्म पाकीजा के वो मशहूर ट्रेन वाली सीन तो याद होगी !" आपके पांव खूबसूरत हैं, इसे जमीन पर मत रखिएगा, मैले हो जायेंगे!और दास्तान शुरू हो गई थी।" आपका रसिया"  उपन्यास मे भी द...

जनता स्टोर

लेखक नवीन चौधरी के उपन्यास" जनता स्टोर"  के नाम से  प्रथमदृष्टया यह लगता है कि जैसे किताब का केंद्रबिंदु  कोई फेमस बुक स्टोर होगा, जो युनिवर्सिटी के पास राजनीतिक हलचलों का ...

रुममेट्स

"रुममेट्स"या रुमपार्टनर तो जानते ही होंगे आप? सबके रहे होते हैं, चाहे आप हास्टल मे रहकर पढ़े हों, दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, लखनऊ कहीं भी नौकरी की तैयारी किए हों या नौकरी का शुरुआती ...

औघड़

ग्रामीण परिवेश पर लिखी गयी कहानियां हमेशा से मुझे अपने आप से बांधे रखती है। नीलोत्पल मृणाल का "औघड़" काफी दिनों के बाद पढ़ पाया और सही मायने मे शुरुआती पन्नों मे मुझे ये थोड़ा स...

डार्विन जस्टिस

" डार्विन जस्टिस" नाम  तो बड़ा आकर्षक और अंग्रेजीशुदा रखा गया है, कुछ हदतक लेखक नाम रखने को जस्टिफाई करते भी नजर आते हैं। वस्तुतः यह सत्य पृष्ठभूमि पर रची बुनी गयी कहानी है ,जो ...

कुकुरमुत्तों की तरह उगे इंजीनियरिंग कालेज

पापा ने तो बड़े अरमानों से इंजीनियर बनाने का ख्वाब देखा था परंतु इन्हें तो इतना भी वेतन नही मिलता जिससे बैंक को एजुकेशन लोन की किस्त जमा कर सकें।  अब सरकारी कालेज न मिल सका तो...