रुममेट्स

"रुममेट्स"या रुमपार्टनर तो जानते ही होंगे आप? सबके रहे होते हैं, चाहे आप हास्टल मे रहकर पढ़े हों, दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, लखनऊ कहीं भी नौकरी की तैयारी किए हों या नौकरी का शुरुआती दौर रहा हो, जब हम आप अपनी गृहस्थी नही बसाये होते हैं, इन्ही रुम पार्टनर या रूममेट्स के साथ कमरा शेयर करते हैं, उस जीवन के सुख दुख शेयर करते हैं। जिंदगी के उस एकाकी पल के सहारा बनते हैं ये रुममेट्स! लेखिका" सीत मिश्रा" का यह प्रथम उपन्यास "रश्मि प्रकाशन "से प्रकाशित हुआ है ,जो एक कामकाजी लड़की के संघर्षों का चित्रण है ,उसके रुममेट्सों की दास्तान है जो लगातार बदलते गये पर उसके दिलों से उतर नही सके। एक छोटे से कस्बे  के मध्यमवर्गीय पारंपारिक ,रुढिग्रस्त परिवार की बेटी किसतरह कस्बे से निकलकर इलाहाबाद पढ़ने आती है और फिर नौकरी की तलाश मे नोयडा दिल्ली के चक्कर काटती है।मीडिया हाऊसों मे लड़कियों के शोषण, राजनीति और पावर की गड्डमड्ड को उजागर करती यह उपन्यास का अंत निराशाजनक है। यह कोई मुकाम पर कहानी को नही पहुंचाती। सेक्स स्कैंडल, अफवाहों की सरगर्मी,हरेक बात मे लड़कियों को दोषी ठहराना, संकुचित समाज मे उसके परिवार का जीना हराम करना, यह हमारे समाज की सच्चाई है।जबतक कथा रुममेट्स को लेकर चलती होती है, तबतक बांधे रहती है परंतु आगे नायिका के साथ बिखर जाती है।पूरब के साथ नायिका का प्रेम प्रसंग का वर्णन काफी अच्छे से पिरोया गया है।".बिटिया कहिया ..टीबी मे देखईबू..। यह हरेक मां बाप की इच्छाओं का शब्दमाल है जिसमे अरमानों की लौ है, जो तबतक टिमटिमाती रहती है जबतक उनके बच्चे कुछ बन न जायें। उनका नाम न रौशन कर दे। " मुंहवा ध के कूच देब..' विशुद्ध देहाती तकिया कलाम है जिसे लेखिका ने अपने रुममेट्स के मुंह से कहलवाया है। कुछ वनलाईनर भी अच्छे बन पड़े हैं.... जब आप प्रेम मे होते हैं, तो अनावश्यक रुप से सकारात्मक हो जाते हैं।...जब कोई सपना एक से अधिक आंखें देखने लगे तो वह सपना ,सपना नही रहता बल्कि हकीकत बन जाता है...आप कितने भी बड़े क्यों न हो जायें, कुछ चीजों के प्रति लगाव कभी खत्म नही होता..।उपन्यास पढ़ते हुए अनायास ही नेहरू विहार(दिल्ली) के अपने रुममेट्सो को याद करने लगा। वाकई मे सबके सब अपने आप मे एक कहानी! कोई भी ईश, निभा ,राज से कम नही। उके नोकझोंक और दिनचर्या वर्णन पढ़ते हुए मेरी आंखो के सामने वो सारे गुजरे हुए पल चलचित्र की भांति चलने लगे थे और यही एक उपन्यास या कहानीकार की सफलता है कि पाठक को अपने साथ बहाकर ले जाये। दामिनी की घटना एक पन्ने मे क्यों है समझ नही पाया! कुल मिलाकर यह स्वभोगा यथार्थ प्रतीत होता है जिसका अंत निराशावादी है और मेरा मानना है कि लेखिका को इसे सार्थक अंत पर पहुंचाना चाहिए था। कुल मिलाकर उपन्यास पठनीय है और एकबार अवश्य पढा जाना चाहिए।

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