आपका रसिया

आपसबको फिल्म पाकीजा के वो मशहूर ट्रेन वाली सीन तो याद होगी !" आपके पांव खूबसूरत हैं, इसे जमीन पर मत रखिएगा, मैले हो जायेंगे!और दास्तान शुरू हो गई थी।" आपका रसिया"  उपन्यास मे भी दास्तान ट्रेन से ही नायक नायिका किसलय- काव्या  के सफर से शुरु होती है और अंत मे प्लेन पर जाकर खत्म होती है। दास्तान ऐसी की दीवानगी की इंतहा है।रश्मि प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित और ओमप्रकाश राय यायावर द्वारा लिखित यह  उपन्यास एक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक सोशल मीडिया आधारित प्रेमकथा है ,जो शुरुआत तो होती है ,ट्रेन के सफर से पर परवान चढ़ती है, फेसबुक चैटिंग से, फिर चैंटिंग की हकीकत खुलने पर प्रेम नैया डगमगाने लगती है और अंत मे " गाइड" फिल्म की तरह दर्शन की पराकाष्ठा पर चली जाती है, जिसमें प्रेम भाव से विरक्त नायिका दैहिक सुख को कमजोर क्षणों मे भोगने के पश्चात भी नायक को छोड़ पलायन कर जाती है। लेखक ने उपन्यास की प्लाटिंग अच्छी की है ,जो सिंपली ट्रेन से शुरुआत होती है ,तो लगता है ,जैसे कोई आम कहानी होगी। कई जगहों पर यह उपन्यास गुलशन नंदा, रानू और मनोज के उपन्यासों की याद दिलाता सा प्रतीत होता है पर इसमे कई तीव्र मोड़ है, कहानी अनेक झटकों के साथ ट्रैक बदलती रहती है जिसे संगीत की भाषा मे "मुरकियां" कहते हैं।आरा मे बैठकर नायक का फेसबुक पर काव्या की तलाश करना और पूजा का काव्या बनकर उससे फेसबुक चैटिंग करने का प्रसंग,उसी मे फिर ट्रेन प्रसंग देखकर लगा जैसे करीना- सलमान की फिल्म" बाडीगार्ड " चल रही है ,पर जल्द ही यह सस्पेंस भी खत्म हो जाता है, जब पूजा स्वयं काव्या से यह  भेद खोल देती है। लेकिन काव्या को इसे किसलय तक पहुंचाने मे काफी मशक्कत करनी पड़ती है। किताब मे कहानी देवल ,देवधा आश्रम, नैनीताल, शिमला, आरा और लखनऊ के इर्द गिर्द घूमती नजर आती है।उपन्यास मे कविताओं और शायरी का बड़ा अच्छा संयोजन है। यह  सच है कि यदि कवि या शायर को पटाना हो तो उसकी रचनाओं की झूठी ही सही, तारीफ कर दो, वो सारे गिले शिकवे भूलाकर आपके साथ हो जाएगा।पूजा इसी हथियार का उपयोग किसलय को पटाने मे करती है।उपन्यास मे फेसबुक चैटिंग का लंबा प्रसंग है, जो हूबहू बतौर चैटिंग ही लिखा गया है। पूरी कहानी तीन पात्रों  किसलय, काव्या और पूजा के इर्दगिर्द सिमटी है पर इसमे सबसे स्ट्रांग कैरेक्टर काव्या का उभरकर सामने आता है। भले ही किसलय एक अटूट प्रेम करनेवाले आशिक के रुप मे स्वयं को पाता है पर काव्या जो सौ साल की जिंदगी तीस साल मे जीना चाहती है, के लिए प्रेम प्यार के लिए समय नही है। पूजा जो इकतरफा प्यार मे पड़ी है, यह जानकर भी कि किसलय काव्या को भूल नही सकता ,उसके साथ दर दर भटकती रहती है। उपन्यास अच्छे थीम पर लिखा गया है पर कहीं न कहीं कहानी मे कसावट मिसिंग है। बहुत सारे प्रसंगो को व्यर्थ खींचा गया है, जैसे बरेली प्लेटफार्म सीन,शिमला प्रसंग, किसलय का व्यक्तित्व वर्णन इत्यादि। साथ ही मुझे लगता है कि उपन्यास का शीर्षक" आपका रसिया" भी इसक कहानी के थीम से मैच नही करता है, शायद इसका कुछ और एट्रैक्टिव या कैची नाम रखा जा सकता था। फिर भी मुझे यह लेखक के पहले उपन्यास " काशी टेल" से बेहतर लगी।

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