गछपकुआ आम

जतिन गाना  सुनते  सुनते यादो के  समन्दर  मे  गोते  लगाने  लगा  था!
गांव  मे खेत मे जब मजदूर काम करते थे उसका " पनपिआई"(नाश्ता) लेकर खेत-बाद मे जाता था! पनपिआई का स्वाद अद्भुत और गजब का होता था। मोटी मोटी रोटियां, प्याज-नमक-तेल- अचार का राई और कभी कभी थोड़ी सब्जी! लेकिन उसको खाने का मजा ही कुछ और था!वह अपने लिए भी पनपिआई रख लेते और खेत मे जाकर " हरवाह" के साथ आरी-डरेर पर बैठकर खाते।इसमें अप्रतिम आनंद आता। आज भी उसके बारे मे सोचकर ही मुंह मे पानी आ जाता है।
एक बार गेंहू के खेत मे पानी पटवाने "सरेह"(दूर का खेत) मे गया था। लौटते वक्त शाम हो गई तो डर से अकेले इसलिए नही वापस आ रहा था कि रास्ते मे पड़ने वाले एक सीम्मर गाछ पर भूत होने के किस्से सुनने को मिलता था। जब दो- तीन लोग वापस आने लगे तो साथ हो लिया।
शाम का धुंधलका हो चला था। सीम्मर गाछ से थोड़ी दूर पहले वे लोग थे तो दूर से कोई आता दिखा। थोड़ी देर मे वह साया दो हो गया तो सबके कान खड़े हो गये। जो सबसे बुजुर्ग था ,उसकी हिम्मत भी जबाब देने लगी थी जब वहाँ तीन साया दिखने लगा। सबलोग आगे बढ रहे थे पर उनके पैर साथ नही दे रहा थे।

 सभी बुरी डरने लगे थे। जब सायों की संख्या चार हो गई ,तब तो सभी की हिम्मत जबाब दे गई और वे पीछे की ओर चिल्लाते हुए भागना शुरु कर दिए। खेतों मे पानी पटा होने के कारण कीचड था। कहाँ चप्पल गया, कहाँ बाल्टी, कहाँ कुदाल, पता नही?  पंपिंग सेट का इंजन इतना तेज बज रहा था कि उसके पास खड़े लोगों को उनकी आवाज सुनाई नही पड़ रही थी। जब वे गिरते पड़ते वहाँ पहुंचे तो वो लोग भी कहने लगे!

 अरे! अच्छा किए नही गये! यह ब्रह्म पिशाच के निकलने का समय है।
हमलोग सोचे" जान बची तो लाखों पाये।" अब सब साथ मे ही घर जायेंगे।
थोड़ी देर बाद वहाँ  बैठे ही थे तो दिखाई पड़ा कि कुछ दूर  आगे रजेसवा का पंपिंग सेट चल रहा था, उसकी मां, दोनों बहन और भाई, उसके लिए रात का खाना लेकर जा रहे हैं।

तब पता चला कि असल मे जो दिखाई पड़े थे ,वो ये ही लोग थे। शाम के धुंधलके मे एक सीध मे आरी पर चलते होने के कारण पहला वाला ही शुरू मे दिखाई दिया और जैसे जैसे वो लोग टेढे मेढे आरी पर चलते आये, अगल बगल दिखने लगे थे।
ये तो अच्छा हुआ कि भ्रम उसी समय खत्म हो गया, वरना जिंदगी भर ये सोचते रहते कि हमने भूत- पिशाच देखा था और बाल बाल बचे थे!
जतिन सोचने लगा कि रात मे भ्रम भी ज्यादा होता है। कैसे एकबार जब वह काफी दिनो के बाद जब गांव गया था तो केले के लंबे चमकते पेड़ को भूत समझ लिया था । हवाओं के चलने से डोल रहे उसके पत्तों भूत के हाथों के समान उसे बुला रहे थे। रात भर वह दनान पर " गब्दी' मारे सोता रहा। सुबह किसी को कहता उससे पहले पता चला वो केला का पेड़ था।

आम के दिनों मे गाछी पर से गिरे" गछपकुआ आम" खाने मे काफी अच्छा लगता था। एक आम जहाँ टप्प से गिरता ,सभी बच्चे एक साथ उसे लूटने दौड़ जाते। आम को चोभ्भा मारकर खाने से स्वाद बढ़ जाता था। आम की" आंठी"(गुठली) चाटकर किसी पेड़ के खोखर मे रखते और जोर से बोलते

" हे कोयली माता आम गिराओ"!

कभी कभी सच मे कोयली माता बच्चों की सुन भी लेती थी।
जामुन खाकर रंग मे रंगे जीभ को एक दूसरे को दिखाते तो कभी आइने मे देखकर खुद ही खुश होते।
आम के दिनो मे जब अंधड़ बयार चलता तो झोरा- बोरा लेकर" गुधनी"(आम का बगीचा) की ओर रात विरात भागते, अंधेरे मे भी अपनी गाछी के नीचे पानी, डबरा, खत्ता, कीचड़ मे आम और " टिकोला"(आम का बच्चा) हंसोरते। जाते वक्त तो उस सुनसान अंधेरी रातों मे तो गाछी मे चले जाते थे पर आते वक्त उसे बहुत डर लगता था।
 जाने वक्त का जोश समाप्त हो जाने पर" जय हनुमान ज्ञान गुणसागर" और जय महरानी जी, जय बरहम बाबा के जाप करते घर लौटते। रास्ते भर इधर उधर नजर नही घुमाते कि कहीं कोई डायन, चुड़ैल, भूत- पिशाच या ब्रह्म पिशाच न दिखाई पड़ जाये।वापस घर पहुंच कर जान मे जान आती थी।
अचानक  दरवाजे  पर  पडी  दस्तक  से  वह  चौंका!  तारतम्य  भंग  हो  चुका  था!  दरवाजा  खोला  तो    सामने  कशिश  खडी  थी!
" आज आफिस नही जाना है क्या?" 
गांव का भूत तो वाकई मे भ्रम था पर शहर का भूत भ्रम नही है। शहरी ब्रह्म पिशाच रोजाना आफिस मे डराता है। काश! ये भी भ्रम होता! और " गछपकुआ आम " की तरह टप्प से किसी दिन गिर जाता! मजा आ जाता।

 कहीं दूर एफ एम रेडियो  पर गीत गुंज रहा था " कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन"!प्यारे प्यारे दिन  वो मेरे प्यारे पल क्षिण"!

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल