ट्रांसफर

"इ सब का है हो चंदेसर? ट्रांसफर के नाम से एतना डर काहे जाते हैं?का नोकरिया इ सोच के किए थे  सभे दिन घरे में रहेंगे ?एकदम्मे भगदड़ मचा के छोड़ेंगे का?अरे बहुत  लोगन के धंधा पानी चल रहा है चले द !बहुत अफसरान आ माननीय के झोला सिला गइल बा !ओके का होई ? का हुआ  जो क ऊनो नेताजी पहूंचा पर हाथ नही रखने दे रहा है ई बार!भौजाई के नौकरी के लाभ भी इ बार नहीं मिल पायेगा गांधी बाबा है न! सब ठीक हो जाएगा।लिस्ट भेजे द हिनका के,फेर साल भर धींगा मुश्ती चलता रहेगा! लिस्टबे नहीं निकलने दिया जाएगा और निकलेगा भी तो मनमाफिक !आखिरकार बाबा भैरोनाथ कब काम आयेंगे?
लेकिन चंदेसर तो जैसे बौरा गया है। एतना साल नौकरी घरे पर किया। कहां हो पाएगा? न जाने कैसे जायेंगे? अम्मा बाबूजी का क्या होगा? चाचाजी  तो पैजामा से बाहर हो रहे थे।
"इ जो सरकारी नौकरिया  करे वला के त जैसे आफत आ गया है हो! एक से एक नया फरमान रोजाना जारी हो रहा है जैसे एक ईसको ठीक कर लो तो सारा जग जीत लिया!"
एक तो जबसे नया रिजीम आया है सब  काला सफेद बंद करा दिया है। कहाँ रोज चंदेसर घर लौटता था तो हमेशा थैली भरी रहती थी, जब जो जिसने फरमाइश किया पूरा हो जाता था,अब तो कार से मोटरसाइकिल पर आ गये हैं। ऊपर से एक और आफत आ गया। अब चंदेसर का अपने शहर से ट्रांसफर भी  हो जाएगा।

पूरे पंद्रह साल हो गये हैं चंदेसर को इंहा पोस्टिंग कराये।जब कभी भी ट्रांसफर होता तो कहता

" अरे बाबूजी चिःता नही न करिए! गांधी बाबा कब काम  आयेंगे?
वाकई कमाल के हैं ये गांधी बाबा ,कभी चंदेसर को अपनेशहर से बाहर न जाने दिए। नेताजी का पैड लग जाता, माता जी को गंभीर बीमारी हो जाती और गांधी बाबा ट्रांसफर आर्डर कैंसिल करवा देते। जून का महीना शुरू होता कि  गणेश परिक्रमा शुरू हो जाती। जैसे " चार धाम यात्रा" हो। अफसरों की नई थैलियाँ सिलने लगती पर सबको न जाने किसकी नजर लग गई।
" तोहार  का होई हो संदीप? तुमको भी तो इस साल  जाना पड़ेगा?
"मेरा तो बिना किसी ट्रांसफर पालिसी के प्रत्येक जिले मे से वैसे ही दो तीन साल मे ट्रांसफर हो जाया करता है। सात साल हो गया मंडल मे ,तीसरा जिला है। कितना पैर जमा कर रहेंगे। झखे ऊ जो उंहे अपना घर बनाके बईठा है, ऊ का करेंगे। इस बार तो गांधी बाबा भी बदल गये हैं। आई मीन ,लाल और हरा से गुलाबी और मरछाऊन कलर हो गये हैं। इस बार इफेक्टिव भी नही रहेंगे! जिसने भी छुआ की ,गये काम से! सब काम नियम कानून से होगा।
संदीप बेफिक्री मे बोला।
"चाचा जी कबतक घर की  नौकरिया करवायेंगे? इसे भी बाहर  निकलने दीजिए, दिन दुनिया देखेगा तो थोड़ी अक्ल आयेगी। एक ही जगह रहकर कूप मंडूकता आ गई हैं"!
" अरे!हम का करें! ई   घरघूसना  है  ही!दिन भर अपने कनफुक्का गुरुजी के पास फुसकियाते रहता है। हमरा त ऐके लोभ है कि इहाँ है तो बाल बच्चा के साथ मे हैं, समय कट जाता है। इसका ट्रांसफर हो जाएगा तो ईसके साथ तो न ही न जायेंगे हर जगह! गांव मे  जमीन जजात है, घर दुआर है, किसके भरोसे छोड़ देंगे । जुग जमाना सही नही न  चल रहा है , कोई कब्जा बब्जा कर लिया तो क्या होगा?
अब तो राम भरोसे रहना है। दाल रोटी खाना है।अब तो हो ही जाय बबुआ का ट्रांसफर! सब साल जुन जुलाई मे हुड़दंग मचाते रहता है। कुछ साल निश्चिंत तो रहेगा।
" हां चाचा! हारे को हरिनाम! और कर भी क्या सकते हैं। कोई जुगाड़ काम तो करेगा नही!पर बबुआ जी एतना जल्दी हिम्मत थोड़े न हारेंगे।
" जबतक सांस तबतक आस!"
" लगे रहो बेटा"

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