जबरन कंठीधारी
थोड़ा बेपटरी की बातें करें तो माइंड बोगलिंग हो जाता है कि नवरात्रि मे मांस मछली की दुकानें बंद क्यों हो जाती है? क्या मुस्लिम, सिख्ख, ईसाई भी नौ दिन मांसाहार त्याग कर देते हैं?लोग कहेंगे हिन्दू बहुसंख्यक हैं, जब वे नही खाते तो बिक्री बंद हो जाती है। ".शायद नवरात्रि का सपोर्ट करते हुएवे भी कहते है " वी आर विद हिन्दूज"। हिन्दू भाई नही खायेंगे तो हम नही खायेंगे! दुकानदार बोलते हैं" भईया! जब बिक्री ही नही होगी तो दुकान क्यों लगायें या बकरा क्यों काटे!"नवरात्रि के अगले दिन तो जैसे बांध ही टूट जाता है। मांसाहार पर " उपवासक" ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे नौ दिनों के भूखे शेर के सामने बकरी!"और कहते हैं पशुओं के कटने के पीछे कोई और जिम्मेदार है। कहीं न कही यहाँ हिप्पोक्रेसी हैं जो अंदर कुछ और बाहर कुछ और! हम लोग तो मैथिली ब्राह्मण हैं जो जगजाहिर मांस भक्षी हैं।माछ मांस के बिना तो कोई काजे संपन्न नही होता वो चाहे किसी का श्राद्ध हो, विवाह हो, या उपनयन हो। छागर की बलि अनिवार्य है, देवी प्रसन्न नही होगी।यहाँ तक कि इतनी श्रद्धा से मनाया जानेवाला " छठ पूजा" के भोरवा अरग" देते ही मल्लाह को फोनियाने लगते हैं कि " आ जाओ! आज पोखरी मे महाजाल गिराना है या " ये फलानां ! जाओ चिकवा से एक किलो खस्सी का मांस ले आओ! कल तो सब बाहर चला जाएगा"।विवाहो मे भोजनभट्ट लोग मांस के हड्डियों का जो कूड़ा लगा डालते हैं उसको देखकर कभी कभी जानवर भी शरमा जाय। तो यूपी के ब्राह्मण ,हमें तुच्छ नजरो से देखते हैं कि मांसभक्षी है। यहाँ ब्राह्मणों के घर मे प्रत्यक्ष रुप से मांस- माछ भोजन नही बनता, अप्रत्यक्ष की बात !" किराये पर मकान देने से पहले पूछते हैं कि " मांस मछली तो नही खाते!" घर अशुद्ध हो जाएगा! भले उनके बच्चे या वो स्वयं बाहर से ठेलकर चिकन खाकर इते हों। पर ये तो अंदर की बात है!" नया जेनरेशन होटलों और रेस्टोरेंट मे खूब ही नान वेज उड़ाता है।साउथ इंडिया, बड़े बड़े विश्वविद्यालयों के कैंटीनो मे बीफ भी शौक से खाता है, उसके लिए पार्टियां भी आयोजित करते हैं क्योंकि हम प्रगतिवादी हैं पर दूसरी ओर जीव हत्या के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराते हैं। यदि बुचड़खानों मे लाखों पशु रोज कटते हैं तो क्या उसे सिर्फ मुस्लिम खाते हैं? नही उनसे ज्यादा हिन्दू खाते हैं, तो फिर बवाल क्यों? आज सोशल मीडिया पर एक फोटो लगी मिली कि" हलीम(बीफ से बनने वाला एक व्यंजन) खाने वाले अपने साथ आधार कार्ड लेकर आयें! क्योंकि इससे पहचान हो सके कि कौन इसे खा रहा है? हिप्पोक्रेसी एक मिनट मे निकल जाएगी और पता चल जाएगा कि " टुंडे कबाब" रेस्टोरेंट मे सबसे ज्यादा कौन आता है? सर्वे करा लो। " जीव हत्या बंद हो"!गौ हत्या बंद हो" सब चाहते हैं पर अपने पर तो लागू करो महाराज! लेकिन एक बात क्लीयरिफाई कर दूं कि अब ये न कहने लगना कि अपने नही खाते हो तो सबको "कंठीधारी" बननाने पर तुले हो। सनद रहे कि वैष्णव लोग गले मे तुलसी की माला पहनते हैं जिस कारण प्रचलन मे वेजटेरियन को हमारे तरफ कंठीधारी कहा जाता है।तो मुस्लिम स्वयं कहते हैं कि हमें बदनाम किया जा रहा है जबकि खाते आपलोग ज्यादा हो। पुरबिया लोग तो " तंत्रवाद को और शक्ति पूजक होने के कारण बलिप्रथा और मांसभक्षी बने रहे पर " पछिमाहा" ब्राह्मण अभी भी " जबरन कंठीधारी" का स्वांग भरते आ रहे हैं। मांस मछली की बिक्री मे अपार वृद्धि उनके टूटते वर्चस्व को दिखाता है लेकिन यह अंदर अंदर है। इसे बाहर आने मे समय लगेगा।लेकिन दोष तो दूसरों पर मत थोपिये महाराज!"
जिन्हे बीफ अच्छा लगता है उन्हें सूअर भी अच्छा लगना चाहिए।क्युकी दोनों तो मांस ही है।
ReplyDeletePeene wale ko peene Ka bahana Chahiye
ReplyDeleteKhaane wale ko khaane Ka.
Vaise vadhshala aur vaishayala hi dharti par narak tulya hai.