लव लेटर
टिफिन टाइम मे सब बच्चे फील्ड मे खेल रहे थे ,वो क्लास मे पढाई कर रहा था। अचानक उसने देखा के शंकर आया और चुपके आशा के बस्ते को खोलकर उसमे एक चिट डालकर चला गया।
क्या रख रहे हो?
क्या रख रहे हो?
कुछ नहीं यार! लव लेटर है!
नाम नही लिखा है!
पर कोई पूछे तो मेरा नाम नही बताना!
वरना बहुत मारूंगा!
शंकर के जाने के बाद समीर का मन भी पढाई मे नही लग रहा था।
जाने क्या लिखा होगा साले ने?
आशा कैसे रियेक्ट करेगी?
या चुपचाप पढकर रख लेगी?
क्लास मे वही अकेला बैठा था, कहीं उसी पर आशा को शक हो गया तो? उसकी तो इज्जत की वाट लग जाएगी।
इसी डर से वह भी क्लास से बाहर निकल आया और पानी पीने चला गया। थोड़ी देर मे घंटी बजी और सभी क्लास मे लौट पड़े। वह अभी क्लास मे घुसा ही था कि शोर गुल रोना धोना शुरु हो गया।
आशा के नैनो से गंगा जमुना धुआं धार बह रहे थे और अन्य लड़कियाँ आग बबूला और गुस्से से फायर थी। सभी एकसाथ उस सबूत-ए-वारदात के साथ हेडमास्टर साहब के पास पहुँच गये।
जैसा की समीर को अंदेशा था,वारदात के चश्मदीद गवाह के रुप मे बुलाये जाने का फरमान लेकर सोनफी राम आ गया। जाते वक्त समीर ने चोर नजरों से शंकर की ओर देखा लेकिन वहाँ अब धमकी नही कातरता और भय व्याप्त था।
तिवारी जी मास्टर साहब की वो खजूर की छड़ी से मार और चूरकी पकड़ कर बाल उखाड़ने की हदतक झिझोड़ना, कान पकड़कर इसकदर उमेठना कि अब उखड़ी तो अब उखड़ी। बड़े बड़ो के भूत भाग जाते थे।
स्कूल मे दबी जुबान से सब कहते थे " तिवारी जी पहले एकबार पाकेटमारी के जुर्म मे पुलिस के हत्थे चढ चुके हैं और पुलिसिया थर्ड डिग्री टार्चर झेल चुके हैं। शायद उसी की खीझ यहाँ मिटाते हैं।
" कौन रखा है ये लेटर? तुम उस वक्त क्लास मे ही थे?
" म्म..मुझे नही मालूम है मास्साहब!
" सही सही बताओ नही तो ये सारी छड़ी तुम पर ही तोड़ दूंगा।"
अब तो हिम्मत ही टूट गई। जब बड़े बड़े भूत भाग जाते है तो समीर भला किस खेत की मूली था? वैसे भी वो शंकर का बबाल क्यों अपने सिर पर ले।ज्यादा से ज्यादा करेगा? मार पीट करेगा न! देखा जाएगा!
" जी मास्साहब! शंकर को कुछ रखते हुए देखा था! पर क्या था ,हमे नही मालूम!
उसके बाद शंकर की वो धुलाई हुई की सारा स्कुल उसके चिल्लाने की आवाज से गूंजने लगा। शंकर उस दिन पिट जरुर गया पर स्कूल मे रांझा बनकर छा गया। ऐसा रांझा ,जिसने आखिरकार अपने हीर के दिल मे जगह बना ली और वो लव स्टोरी आगे बढते हुए हाईस्कूल से कालेज तक चली।
इसी डर से वह भी क्लास से बाहर निकल आया और पानी पीने चला गया। थोड़ी देर मे घंटी बजी और सभी क्लास मे लौट पड़े। वह अभी क्लास मे घुसा ही था कि शोर गुल रोना धोना शुरु हो गया।
आशा के नैनो से गंगा जमुना धुआं धार बह रहे थे और अन्य लड़कियाँ आग बबूला और गुस्से से फायर थी। सभी एकसाथ उस सबूत-ए-वारदात के साथ हेडमास्टर साहब के पास पहुँच गये।
जैसा की समीर को अंदेशा था,वारदात के चश्मदीद गवाह के रुप मे बुलाये जाने का फरमान लेकर सोनफी राम आ गया। जाते वक्त समीर ने चोर नजरों से शंकर की ओर देखा लेकिन वहाँ अब धमकी नही कातरता और भय व्याप्त था।
तिवारी जी मास्टर साहब की वो खजूर की छड़ी से मार और चूरकी पकड़ कर बाल उखाड़ने की हदतक झिझोड़ना, कान पकड़कर इसकदर उमेठना कि अब उखड़ी तो अब उखड़ी। बड़े बड़ो के भूत भाग जाते थे।
स्कूल मे दबी जुबान से सब कहते थे " तिवारी जी पहले एकबार पाकेटमारी के जुर्म मे पुलिस के हत्थे चढ चुके हैं और पुलिसिया थर्ड डिग्री टार्चर झेल चुके हैं। शायद उसी की खीझ यहाँ मिटाते हैं।
" कौन रखा है ये लेटर? तुम उस वक्त क्लास मे ही थे?
" म्म..मुझे नही मालूम है मास्साहब!
" सही सही बताओ नही तो ये सारी छड़ी तुम पर ही तोड़ दूंगा।"
अब तो हिम्मत ही टूट गई। जब बड़े बड़े भूत भाग जाते है तो समीर भला किस खेत की मूली था? वैसे भी वो शंकर का बबाल क्यों अपने सिर पर ले।ज्यादा से ज्यादा करेगा? मार पीट करेगा न! देखा जाएगा!
" जी मास्साहब! शंकर को कुछ रखते हुए देखा था! पर क्या था ,हमे नही मालूम!
उसके बाद शंकर की वो धुलाई हुई की सारा स्कुल उसके चिल्लाने की आवाज से गूंजने लगा। शंकर उस दिन पिट जरुर गया पर स्कूल मे रांझा बनकर छा गया। ऐसा रांझा ,जिसने आखिरकार अपने हीर के दिल मे जगह बना ली और वो लव स्टोरी आगे बढते हुए हाईस्कूल से कालेज तक चली।
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