सेल्फ इनकम डिक्लेरेशन

होली तो धूम मचा कर चला गया और नये जोशखरोश के साथ नई रिजीम ने  अपना काम क्या करना शुरू की बहुतों की पैंट गीली होनी शुरू हो गई और हाजमा खराब हो गया। उनको तो विलीभे नही होता है कि ऐसा भी समय आ सकता है।
" तुम्हें डर नही लग रहा है!इस तरह खुलेआम रिश्वत मांग रहे हो!"
" क्या हुआ? कौन नही ले रहा है? किसका डर? अरे! कहीं भी जाओ, शिकायत करो , वो भी पैसा ही तो लेगा!" मृणाल बेफिक्री से बोला।
" अरे! अब तो सुधर जाओ! सरकार सत्ता बदल गई है, यह वह सरकार है ,जहाँ भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस नीति है"! मैने उसे डराते हुए कहा।
पर उस पर कोई असर मानो हो ही नही रहा था।
" हु.ह.ह.. बड़ बड़ गेलन त गज्जू अएलन! तुमको क्या लगता है , ई जो पंद्रह साल से भूखायल लोग सत्ता का स्वाद चख रहा है, ऐसे ही बिना कमाये रह जाएगा! भूखा बंगाली खाली भात भात चिल्लाता है। उपर कुछ भी करे पर देखो न सेटिंग गेटिंग शुरू नही हो गया है"!
"सही कहते ह़! उ जो भ्रष्टाचार है न! वो हमारे खुन मे फैल गया है। केतनो कोई प्रयास कर ले ,इसे समाप्त नही कर पायेगा. !"चोर चोरी से जाय हेराफेरी से न जाय"
एक टटपूंजिया नेताजी जो बड़ी बेसब्री से नयी हुकूमत का इंतजार कर रहे थे कि अपने आदमी सब को मलाईदार और मनमाफिक जगहों पर पोस्ट करायेंगे, से मैने कहा कि देखियेगा, ये सरकार ऐसा कुछ करेगी की पैसे से कोई पोस्टिंग या कोई सरकारी काम नही हो पायेगा। जगह जगह ई एंटी रोमियो स्क्वायड की तर्ज पर एंटी करप्शन विजिलेंस स्क्वायड बनाया जाएगा जो न केवल सरकारी कर्मचारी/ अधिकारी बल्कि नेताओं की हरकतों पर नजर रखेगा।
" काहे मजाक करते हैं महाराज! आप तो डरा रहे हैं! अरे! कई लोगों कि तो हमही पैरवी लिए थे। क्या सही मे, ई कुच्छ़ो कमाने नही देगा। न खाऊंगा और न खाने दुंगा तो ठीक है पर न खायेंगे  तो जीयेंगे कैसे हजूर!"
ई तो बड़ा भारी गडबड़ हो गया।
" जियें तो जियें कैसे बिन आपके" की तर्ज पर बिन रिश्वत सब सून वाले मंत्र की दिन रात जाप करने वाले घबराये हैं। " आगे क्या होगा रामा रे"! बड़े साहब ने तो नोटबंदी से जो झटका दिया, उससे किसी तरह उबरे तो ,छोटे साहब भी " सेल्फ इनकम डिक्लेरेशन" की बात करने लगे हैं।
" जानते हो मृणाल !बिहार मे भी  एक समय आया था जब घूस मांगने वालों की शामत आयी थी। एक घटना है कि जब कोई काम एक बाबू ने सही तरीके से कर दिया तो उस सज्जन ने स्वेच्छा से उसे मिठाई खाने के लिए दो सौ रुपया देना चाहा तो बाबू इतने जोर चिल्लाया..न..न...न.न.. जैसे उसने उसके हाथों मे रुपये नही सांप या बम देख लिया हो। यह दहशत थी विजिलेंस की!"
मृणाल मुस्कुराया और बोला" आप अच्छे दिन का इंतजार कर रहे हैं" लेकिन सरकारी तंत्र के लिए तो बुरे दिनों की शुरुआत है! क्या करे ये भी इसके आदी हो गये हैं, जब नमक मिलना बंद हो जाएगा तो नौकरी बेस्वाद हो जाएगी और लोग बाग सरकारी नौकरी से मोह त्यागना शुरू करेंगे और यह अच्छा भी होगा"!
यहाँ दो घटनाओं का जिक्र प्रासंगिक है। एकबार मैं मुजफ्फरपुर से दिल्ली जा रहा था। सेम डे रिजर्वेशन लेने स्टेशन पहुंचा तो मुझसे सौ रुपया बतौर रिश्वत की मांग की गई और न देने पर उसने रिजर्वेशन देने से मना कर दिया। जब कंप्लेन लेकर स्टेशन मास्टर के पास पहुंचा तो उसने उसके खिलाफ कंप्लेन रजिस्टर करने के बजाय मांडवली शुरु कर दी!" अरे! फर्स्ट जनवरी का दिन है! काहे बबाल करते हैं! दे दीजिए पचास रुपया! अरे! सुनो इनसे पचास ही ले लो ! दे दो टिकट! मै आश्चर्य चकित था। इसी प्रकार की दूसरी घटना कुछ दिनों बाद इंदौर रेलवे स्टेशन की है जहाँ सेम डे रिजर्वेशन मे मुझे आसानी से रिजर्वेशन दे दिया गया । लेकिन टिकट देने के बाद क्लर्क बोला" अरे हजूर! कुछ हम गरीबों का भी ख्याल कीजिए! कुछ खाने पीने को दे दीजिए।एक सौ का पत्ता दे दीजिए।!" इतने प्यार से उसने मांगा की मै मना नही कर सका।
दोनों घटनाओं मे रिश्वत मांगा गया और लिया भी गया। पर एक जगह अधिकार स्वरूप और दूसरी जगह रिक्वेस्ट करके। लोग बाग परेशान हैं, पहले वाले रिश्वतखोरों से, जो दंबगई से ,जबरदस्ती आपसे छिनैती करते हैं और आप उसका कुछ नही बिगाड़ पाते। इसका मतलब यह नही कि दूसर वाला सही है। वो भी गलत है ,अवैध है। पर हमें रिश्वत देने की भी आदत सी हो गई है। यदि कोई आपका काम आसानी से हो जाने को आश्वस्त करे, तो पहली दफा आप उसपर विश्वास ही नही करेंगें। जबतक वो पैसा पकड़ न ले आपको विश्वास नही होता कि वो आपका काम कर देगा।
मृणाल ने अमृत को वाणी के रुप मे सीधे क्षीरसागर से लाकर परोस दिया! देखिए भैया!" समय परिवर्तन शील है! जो शुरू हुआ उसका अंत भी अवश्य होगा! अच्छा या बुरा समय सापेक्षिक होता है, मैन टू मैन भैरी करता है। पता नही आप किसमे हैं?
" मै क्या हूँ, किसमे हूं, क्या कहूँ? "अप्पन हारल और बहुअक मारल " कोई किसी को कहता है भला....😀😁😂। यह सोचता हुआ मै " सेल्फ इनकम डिक्लेरेशन फार्म" भरने लगा।

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