बोझ

" छुटकी तुम यहाँ बैठो! मै तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आता हूँ!"
" ठीक है बाबू! थोड़ा जल्दी आना ! अकेले मे डर लगता है!
छुटकी ने डबडबायीआंखो से अपने बाबू को देखते हुए कहा जो उसे मंदिर की सीढियों पर बैठाकर जा रहा था।
" हां हां जल्दी आता हूँ ! घबराना नही!"

घबराये कैसे नही वो नन्ही सी जान! आज पहली बार गांव से बाहर निकली है।
बाबू ने कहा " चलो इसको शहर घुमा लाते हैं। पहले वह डरी क्योंकि अम्मा नही जा रही थी। पर बाबू ने कहा "नये कपड़े दिलायेंगे! छोटू के लिए खिलौने भी खरीद लायेंगे। बस क्या था बाबू की साइकिल के पीछे बैठ गई।शहर देखने की चाह और छोटू के लिए नये खिलौने लाने के उमंग मे वो अम्मा को बताना भी भूल गई कि वो शहर जा रही है।

मंदिर की सीढियों पर बैठे बैठे उसे छोटू की किलकारी और छोटू के प्रति घर मे सबका प्यार याद आने लगा था। उसे तो घर मे अम्मा को छोड़ किसी ने प्यार नही किया। बड़की दाई तो हमेशा उसे बोझ ही कहती हैं।दाई हमेशा बिना बात के दुत्कारती रहती और मारती भी थी। वो उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती थी।

बार बार वो  निहार रही थी,उस ओर जिधर उसके बापू छोडकर गये थे। कई घंटे बीत गये।उसकी आंखें थकने लगी हैं। दिल बैठा जा रहा है कि बाबू कहाँ चले गये? उन्हें कही कुछ हो तो नही गया?वापस  घर जाने का रास्ता  वह नही जानती । यहाँ तक कि गांव का पता भी नही जानती है। बापू का क्या नाम है? वह तो सिर्फ बापू को बापू नाम से ही जानती है!
कैसे घर जाएगी ?कैसे अम्मा के पास जाएगी? कैसे छोटू के साथ फिर से खेलेगी ?सबकुछ नजरों मे तैर रहा है !
बापू  अब नही आयेंगे क्या!कहाँ जायेगी वो?
बेटियां बोझ होती है क्या?
बड़की दाई तो बार बार कहती रहती है! तो क्या बापू ने उनकी बात मानकर बोझ उतार दिया?
क्या अम्मा ने भी उसे बोझ माना और  उतार दिया?
" ना! अम्मा ऐसा नही कर सकतीं! उसने तो नौ महीने उसे अपने पेट मे पाला है!
क्या इतने कठोर दिल हैं बापू? जरूर कोई मजबूरी होगी? वो इस तरह कहीं भी छोड़कर नही जा सकते! बापू भी इतने निर्दयी नही हैं!
अगर बोझ ही मानते थे तो इतने दिन क्यों पालन पोषण किया? जन्म लेते ही नमक चटा देते! तब इतना कष्ट नही होता न! उसने कातर नजरों से भगवान शिव की मूर्ति की ओर देखा!
" क्यों देते हो जन्म बेटियों को? कुछ ऐसा करो कि बेटियां पैदा ही न हो! "
"लेकिन बेटियां न होंगी तो सृष्टि कैसे चलेगी!"मानो शिवजी ने कहा!
लग रहा है उसके नैनो से बहती अविरल धारा
बहा देगी आज  उस मंदिर को!
उस मंदिर बनाने वाले समाज को!
समाज की उस सोच को,
जो कहती है  कि बेटियां बोझ होती है।
पर वो इंतजार कर रही है ,अभी भी अपने बापू के आने का! काश! उनकी सोच बदल जाय और बेटी के प्रति प्यार उमड़ जाय। फिर से अंगुलियां पकड़े छुटकी घर की ओर लौट जाये,
जहाँ अम्मा है ,छोटू है
और बडकी दाई भी।

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