संकट में है जंगली जीव

हाल के वर्षों में जंगली जानवरों के रिहायशी इलाकों में आने तथा इंसानों पर आक्रमण करने की घटनाएं  बड़ी तेजी से बढ़ी है। ऐसी घटनाएं ज्यादातर तराई इलाके एवं जंगलों के किनारे वाले इलाके में होती, क्योंकि जंगली जानवरों का  इंसानी बस्तियों में पहुंचना आसान होता है। इसी वर्ष सितंबर  में बरेली के बहेड़ी स्थित मंसूरगंज गांव में नदी के पास भेड़ियों ने हमला कर तीन लोगों को जख्मी कर दिया। उससे पहले मैनपुरी के जरामई गांव मे भेड़िए ने हमला कर एक युवक  को तथा बहराइच में एक युवती को गंभीर रूप से घायल कर दिया।  पीलीभीत में बाघ ने खेत में काम  कर रहे किसान पर हमला कर दिया। मेरठ में चलती बाइक पर तेंदुए ने हमला कर दिया। अमरोहा के मंडी के कुंआखेड़ा गांव में तेंदुए ने बकरियों को अपना निवाला बना लिया। वस्तुत यह सब घटनाएं जानवरों के जंगलों से बाहर निकलकर इंसानी बस्तियों में प्रवेश कर जाने के उदाहरण है। स्वाभाविक रूप से इससे  मानव वन्य जीव संघर्ष की संभावनाएं  बढ़ जाती है। 

           वस्तुत मानव-वन्यजीव संघर्ष तब होता है , जब वन्यजीवों की उपस्थिति या उनके व्यवहार से मानवीय  हितों या ज़रूरतों को खतरा होता हो। इससे लोगों, जानवरों, संसाधनों, और आवास को नुकसान पहुंचता है। मानव-वन्यजीव आपसी संघर्ष के कारण न केवल इंसानों की बल्कि हाथी, बाघ, भेड़िया और तेंदुए जैसे जानवरों की भी मौत हो जाती है। पीलीभीत में भी कई बार नदियों/नहरों से मृत बाघ के शव मिले  हैं। पिछले वर्ष लखीमपुर-खीरी में ग्रामीणों ने एक बाघ को घेरकर मार डाला। आपसी संघर्ष  में श्रीलंका में जंगली हाथियों के कारण वर्ष 2019 में 121 लोग मारे गए थे। तंजानिया में प्रतिवर्ष लगभग 60 लोग शेरों के कारण मारे जाते हैं। पिछले 10 वर्षो में सिर्फ झारखंड, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी 1 हजार से अधिक इंसानों को मार चुके हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पिछले साल बाघों और तेंदुओं के हमले में 53 लोगों की  मौत हो गई थी।

                 बाघ के नरभक्षी हो जाने या फिर तेंदुओं और भेड़ियों  के भटककर बस्तियों में घुस आने की यह कोई अपवादस्वरूप घटना नहीं है, बल्कि वन्यजीवों और इंसानों का टकराव अब निर्णायक दौर में है। वस्तुत: बाघ या अन्य  वन्य जीव अपने नैचुरल हैबिटेट मे भटक रहे हैं, जिस पर इंसानों ने कब्जा कर लिया है। वास्तव में यह क्षेत्र सौ-  डेढ सौ साल पहले जंगल हुआ करता था,  अर्थात बाघों या जानवरों के पूर्वजों का घर या स्थान था । जब जंगली जीवों का घर-द्वार सिमटता जा रहा है, घास का मैदान और जीव कम हो रहा हैं,तो बाघ भोजन की खोज में इनसानी बस्तियों के नजदीक आ रहे हैं। यह तो स्वाभाविक  प्रतिक्रिया है कि हम उनके घर में घुस रहे हैं तो वो हमारे घरों में आ रहे हैं। असल में जंगल से सटे खेतों में गन्ने के खेत बाघों और तेंदुओं के प्राकृतिक आवास बन जाते हैं। वस्तुत बाघ और तेंदुए गन्ने की फसल और नरकुल के जंगल में कोई फर्क नहीं कर पाते हैं। नीलगाय, हिरन और जंगली सुअर बड़ी संख्या में गन्ने के खेतों में घुस आते हैं, जिनके पीछे-पीछे बाघ और तेंदुए भी इनका शिकार करने के लिए जंगल से निकलकर खेतों में आ जाते हैं फिर अनजाने में ही  गांवों में घुसे चले आते हैं। अब जब यहाँ आसानी से इंसान, बकरी, भैंस ,गाय आदि उसे खाने को मिल जाय तो भला वो वापस जंगल मे क्यों जाय?  गांवों में घुस आये बाघ खुद को बचाने के लिए और कई बार घायल होने पर आदमखोर बन जाते हैं और कई बार अंत में मारे भी  जाते हैं। 

    जब जंगलों का क्षेत्रफल बहुत ज्यादा था, तब मानव और वन्यजीव दोनों अपनी-अपनी सीमाओं में सुरक्षित रहते थे। लेकिन  यह संघर्ष वनों के विनाश से बढ़ा। ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्स एसेसमेंट की रिपोर्ट के अनुसार विकास के नाम पर हम प्रत्येक वर्ष सात करोड़ हेक्टेयर वनक्षेत्र का विनाश कर रहे है। भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सन 2008 से 2023 के बीच 15 वर्षों में 3 लाख हेक्टेयर से भी अधिक वनभूमि समाप्त हुआ है। नगरों के विस्तार से बहुत सारे जंगल में जानवरों के एक ज़गह से दूसरी जगह जाने की स्थान घट गया  है या कारिडोर समाप्त  हो गया है। एक जंगल से दूसरे जंगल तक जाने का रास्ता घट गया है,  जैसे महाराष्ट्र के जंगली क्षेत्रों  का आपसी कनेक्शन टूट गया है। इतना ही नहीं पहले जंगल, खेत और आबादी बीच में एक बफर जोन होता था, जिसे गोचर या वेटलैंड कहा जाता था। इस क्षेत्र  के समाप्त होने से जंगल और खेत आपस में मिल  गये हैं। तराई क्षेत्रों में इसी कारण समस्या वृहद स्तर पर है। जहां तक इंसानों पर जानवरों द्वारा आक्रमण करने की बात है तो जानवरों को इंसानों से कई गुना ज़्यादा डर लगता है । किसी इलाक़े में जानवर देखने पर  धीरे धीरे एक भीड़ जमा हो जाती है,  जिससे जानवर का भय बढ़ता जाता है और वो आत्म रक्षा में अटैक करता है लेकिन इंसान उसे आदमखोर या हिंसक मान लेता है।


             आंकड़ों  में  यदि  हम देखें तो  अवैध शिकार के माध्यम से इंसान सबसे ज्यादा जंगली जीवों को नुक्सान पहुंचा रहा है। वर्तमान में देश में लगभग 3682 बाघ हैं। पिछले छः सालों में 560 बाघों  की जान गई,  जिसमें 38% का अवैध शिकार किया गया और 4% एक्सीडेंट में मारे गए। ये शिकार खाल और अन्य अंगों के लिए किया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व नेपाल मे पकड़े गये एक पशु तस्कर ने स्वीकार किया था कि उसने करीब चालीस - पचास बाघों को मारकर उसके खाल को बेचा है। देश में तेंदुओं की संख्या 13874 है।  वर्ष 1995 से वर्ष 2023 तक लगभग 3500 तेंदुओं का शिकार किया गया है। झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ तक हाथियों के आवागमन का गलियारा फैला हुआ था , जिसके टूटने से  इंसानी आबादी में उनकी घुसपैठ पहले से ज्यादा हो गयी है। वर्तमान में देश में हाथियों की संख्या 15887 है जो वर्ष 2017 में 19825 थी। अर्थात पिछले सात साल में अवैध  शिकार के चलते हाथियों  की संख्या में 3938 की कमी आई है। जंगली क्षेत्रों में कमी भी इसके मूल में है। हाथी-इंसान संघर्ष  में पिछले 10 सालों में सिर्फ झारखंड, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी 1 हजार लोगों को मार चुके हैं और 170 से ज्यादा हाथी भी मारे जा चुके हैं। पिछले एक दशक में सिर्फ अफ्रीका में 1.11 लाख हाथी मारे गए हैं। भारत में अवैध शिकार से प्रतिवर्ष 40 प्रतिशत हाथियों की मौत होती है। अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव कल्याण कोष के अनुसार पिछले एक दशक में  दुनिया भर में सत्रह लाख वन्य जीवों का शिकार ट्राफी हंटिंग के लिए किया गया है, जिनमें दो लाख विलुप्तप्राय जीव हैं। पिछले एक दशक में लगभग ग्यारह हजार बाघों का शिकार किया गया, जिनमें से अकेले पचास प्रतिशत बाघों को अमेरिकी शिकारियों ने मारा है। यह चिंताजनक है।

           स्थिति इतनी गंभीर है कि वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जुओलॉजिकल सोसायटी की  रिपोर्ट के अनुसार अगले पांच सालों में  धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। वस्तुत जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण, रोड ऐक्सिडेंट , अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1970 से वर्ष 2012 तक वन्य जीवों की संख्या में 58 प्रतिशत की कमी आई है। वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि पेड़ों की अंधाधुध कटाई और जलवायु में हो रहे बदलाव के कारण कई जीव जातियां धीरे-धीरे ध्रुवीय दिशा या उच्च पर्वतों की ओर विस्थापित हो सकती हैं। पिछले सौ वर्षों में धरती से 200 जीवों की प्रजातियां विलुप्त हुई है जबकि इतनी प्रजातियों की विलुप्ति दस हजार वर्षों में होनी चाहिए थी। अब तक पृथ्वी पर जितने जीव हुए हैं , उनमें से 50 प्रतिशत से अधिक लुप्त हो चुके हैं। इनकी संख्या अरबों में है। वर्ष 1900 से वर्ष 2015 के बीच स्तनपायी जीवों की प्रजातियों का क्षेत्र 30 प्रतिशत घटा है। भारत के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने भी 57 जीवों को संकटग्रस्त जीव घोषित किया है।

      ‌  हालांकि भारत में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वर्ष 1952 में इण्डियन बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ का गठन किया गया  तथा इनके लिए पशु–विहार और राष्ट्रीय उद्यान बनाये गये। वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए एक सेन्ट्रल जू अथॉरिटी का भी गठन किया गया है। सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्यजीव तथा उसके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 लागू किया, जिसे जनवरी 2003 में संशोधित किया गया था और कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा एवं जुर्माने और अधिक कठोर बना दिया गया है। मानव -जंगली जीव  संघर्ष रोकने हेतु एकीकृत पूर्व चेतावनी तंत्र  को विकसित  करना तथा खेतों में बाड लगाना, पालतू एवं कृषि से संबंधित पशुओं की सुरक्षा के लिये बेहतर प्रबंधन करना, तराई के जंगलों से सटे क्षेत्रों मे बाघों के उनके जंगली क्षेत्रों से बाहर निकलने पर रोक लगाने हेतु प्रयास यथा सोलर फेंसिंग या टाइगर सफारी बनाने के उपाय किए जा रहे हैं। जंगलों मे लकड़ियां और फल चुनने जाने पर रोक लगना चाहिए। पीलीभीत  के जंगलों में अक्सर लोग” कटरुआ” चुनने  चले जाते हैं और बाघों का शिकार बन जाते हैं। जंगल  से जलावन लाने से रोकने के लिए जंगल किनारे के गांवों मे प्राथमिकता के आधार पर गैस कनेक्शन दिए जा रहे हैं। गांवो को खुले मे शौचमुक्त (ओ डी एफ) बनाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि लोग अकेले में जंगल झाड़ी की ओर न जायें। सबसे बड़ी बात यह है कि जंगलों की अवैध और धुंआधार कटाई पर रोक लगाई जाय नहीं तो न रहेंगे जंगल और न रहेगा जंगली जानवर। गांवों  में जानवरों के प्रवेश रोकने के लिए कुत्ते पालना तथा रौशनी और ध्वनि से डराने वाली रणनीति का उपयोग करने जैसे उपाय किया जाना चाहिए। जंगली जानवरों की सैटेलाइट बेस्ड निगरानी करके उनको शहरी  क्षेत्र मे आने से रोका जा सकता है। साथ ही जंगली  जानवरों द्वारा पारित पशुओं के शिकार या फसल से हुए नुकसान के लिए त्वरित मुआवजा घोषित करने से वन्यजीवों के प्रति लोगों का आक्रोश कम होगा । वस्तुत मानव और बाघों के संघर्ष को रोकने का सबसे  बड़ा उपाय यह है कि दोनों एक दूसरे के क्षेत्राधिकार मे हस्तक्षेप करना छोड़ दें।

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