जी एम फसलों का औचित्य

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जीएम फसलों के संबंध में अपने एक निर्णय में सरकार को इस संबंध में नीति बनाने का निर्देश देते हुए जेनेटिकली मोडिफाइड (जी एम) फसलों की स्वीकृति संबंधी वाद को माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली मुख्यपीठ को भेज दिया है। जीएम फसलें शुरू से ही विवाद का विषय रही हैं। इसे मूल तौर पर प्रकृति  के साथ छेड़छाड़ और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सिद्धांतों के विपरीत माना जाता रहा है। जीएम फ़सल अर्थात आनुवंशिक रूप से संशोधित/संवर्धित फ़सलें। इनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग की तकनीकों से बदल दिया जाता है। इस तकनीक द्वारा किसी बीज, जीव या पौधे के जीन को दूसरे बीज या पौधे में आरोपित कर एक नई प्रजाति विकसित की जाती है। इस प्रक्रिया में किसी बीज में नए जीन अर्थात डीएनए  को डालकर उसमें आवश्यकतानुसार गुणों का समावेश किया जाता है, जो उसके प्राकृतिक गुणों के अतिरिक्त होते हैं, जैसे आलू के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या सुअर के जीन का प्रवेश टमाटर में करवाना या मछली के जीन का प्रवेश सोयाबीन में करवाना इत्यादि । 

         भारत में पर्यावरण, वन, और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति जीएम फ़सलों के वाणिज्यिक इस्तेमाल की अनुमति देती है। भारत में आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित खाद्य फसलों की खेती करने की अनुमति नहीं है। यद्यपि भारत ने 13 फसलों में जी एम फसलों के परीक्षण की अनुमति दी है परंतु गत वर्ष गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना राज्य की समिति ने इसे अपने यहां परीक्षण करने से मना कर दिया। भारत  में बिना अनुमति के जी.एम. बीज या फसलों का प्रयोग करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 के अंतर्गत 5 वर्ष तक के कारावास और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है । देश में बी.टी. बैंगन, बी.टी. चावल, बी.टी. भिंडी, जी.एम. टमाटर तथा अन्य जी.एम. फसलों को स्वीकृति प्रदान करने हेतु इनका परीक्षण किया जा रहा है। बी टी काटन एकमात्र ऐसी जी.एम. फसल है, जिसे भारत में खेती के लिये अनुमति प्रदान की गई है। बी.टी. कपास का निर्माण मृदा में उपस्थित जीवाणु  तथा दो विदेशी जीन को मिलाकर किया गया है। इसमें कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि यह कीटों के प्रति प्रतिरोधकता पैदा कर देता है। बी टी कपास की पैदावार में वृद्धि ने निजी और सार्वजनिक कृषि संस्थानों को चावल, गेहूँ, टमाटर, बैंगन और सरसों जैसी खाद्य फसलों में जी.एम. बीज विकसित करने के लिए प्रेरित किया। जी एम  सरसों में आनुवंशिक सम्वर्धन के द्वारा पर-परागण  हो सकता है जबकि सामान्य सरसों में स्व-परागण  होता है। 

        वर्तमान में बाज़ार में उपलब्ध आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित फसलों का मुख्य उद्देश्य कीट या विषाणु जनित रोगों से फसलों की सुरक्षा करना है, जो उनके जीन परिवर्तन द्वारा ही सम्भव है। तीव्र गति से बढ़ रही विशाल जनसंख्या  को पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए भी खाद्य फसलों के जीन में परिवर्तन करके खाद्य उत्पादन में कई गुना वृद्धि की जा सकती है। जी एम फसलें समर्थकों के अनुसार जी एम से उत्पादक की लागत और श्रम में कमी होने के साथ ही उत्पादकता में कई गुना वृद्धि होती है। वहीं उपभोक्ता को कम कीमत पर अतिरिक्त पोषक तत्व वाले उत्पाद प्राप्त होते हैं। बी.टी.कपास के प्रयोग से किसानों की कीटनाशक और निराई सम्बंधी उच्च लागत कम हो जाती है। भारत में कपास की खेती में बी.टी. कपास का महत्त्वपूर्ण योगदान होने के कारण वैश्विक स्तर पर कपास के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर पहुँच गया है। हरियाणा राज्य में कीटनाशक पर आने वाली लागत में अत्यधिक कमी के कारण बी.टी. बैंगन का उत्पादन काफी अधिक क्षेत्र पर किया जाता है, परंतु इससे प्राकृतिक परम्परागत खेती के समाप्त होने का खतरा बना हुआ है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य की दृष्टि  संदेह बने रहने के कारण बी.टी. बैंगन के उत्पादन पर रोक लगाई गई है।   

                  वस्तुत जीएम फसलों  का एक दूसरा पक्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उसके व्यवसायिक हितों से जुड़ा है। कृषि व खाद्य क्षेत्र में 'जेनेटिक इंजीनियरिंग' की टैक्नॉलाजी मात्र छः-सात बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में केंद्रित है। इनका उद्देश्य 'जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से दुनियाभर की कृषि व खाद्य व्यवस्था पर ऐसा नियंत्रण स्थापित करना है। यह भी विचारणीय है कि जी एम फसलों का समर्थन करने वाले लगभग सभी वैज्ञानिक किसी-न-किसी स्तर पर 'जीएम' बीज बेचने वाली कंपनियों या इस तरह के निहित स्वार्थों से जुड़े रहे हैं। वैश्विक स्तर पर देखें तो अमेरिका, अर्जेंटीना जैसे देश ही इसका समर्थन कर रहे हैं क्योंकि अधिकांश जी एम संबंधित बहुराष्ट्रीय कंपनियां इन्हीं देशों की है। यूरोप इसका विरोध कर रहा है। चीन ने पहले स्वीकृति दी थी परंतु अब वह भी सचेत हो  रहा है। हाल ही में मैक्सिको की सरकार ने अपनी सबसे महत्वपूर्ण फसल मक्का को जेनिटिकली मोडीफाइड  होने से बचाने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। मैक्सिको पर पड़ोसी देश अमेरिका व वहां की कंपनियों का दबाव था कि वह जीएम मक्का अपनाए। इससे पहले फिलीपींस में वैज्ञानिकों, किसानों व कार्यकर्ताओं ने अदालत में जीएम  फसलों के विरुद्ध मुकदमा लड़ा था।

           भारतीय बाजार में करीब एक हजार से अधिक बीटी कपास की किस्में दर्जनों बीज कंपनियों द्वारा बेची जा रही हैं। हालांकि इसके परिणामस्वरूप भारतीय देसी कपास की हजारों किस्मे लुप्त हो गई है। इस आनुवंशिक बीटी तकनीक को भारत में लाने वाले मोनसेंटो और उसकी पार्टनर भारतीय बीज कंपनी महीको ने  कुछ वर्षों में ही अपनी पहली और दूसरी पीढ़ी की कीटनाशक बीटी-कपास की किस्मों की असफलता को स्वीकार कर लिया था, क्योंकि पिंक बॉलवॉर्म कीट ने बीटी-कपास द्वारा उत्पादित विषाक्त पदार्थों के लिए प्रतिरोधक शक्ति विकसित कर लिया था और वह कीटों पर बेअसर हो गये थे। परिणामस्वरूप  कपास के किसानों के बीच आत्महत्याएं  बढ़ गई थी।  बीटी-बैंगन के विरोध  के दृष्टिगत  वर्ष 2010 में बीटी-बैंगन पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी गई। वर्ष 2012 में  कृषि की संसदीय समिति ने कहा” जीएम फसलें भारत के लिए उचित समाधान नहीं हैं"। इस समिति ने देश के भोजन, खेती, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर जीएम फसलों के संभावित और वास्तविक प्रभावों पर भी कई  सवाल उठाए। मई 2017 में, "जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति  ने फसल  की अनुशंसा की। देशभर के किसान, कार्यकर्ता एवं पर्यावरणविदों ने जीएम-सरसों के विरुद्ध सविनय अवज्ञा “सरसों  सत्याग्रह”  प्रारंभ कर दिया। असल में भारत में सरसों की 12 हजार से अधिक किस्म और स्थानीय भू-प्रजातियों मौजूद हैं और  जीएम-सरसों ने इसके लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। जीएम फसलों पर स्थगन के फैसले और सभी खुले क्षेत्र के परीक्षणों को रोकने के लिए संसद की सिफारिशों के बावजूद, देश भर में कई खाद्य और गैर-खाद्य जीएम फसलों को खेत में परीक्षण के लिए अनुमति दी जा रही है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ जीएम फसलों के अवैध खेती का विस्तार व्यापक है। हर्बिसाइडरोधी कपास का अवैध रोपण देश में  15 प्रतिशत से अधिक है। इससे अत्यधिक विषैले ग्लाइफोसेट नामक हर्बीसाइड का अनियंत्रित उपयोग होने का खतरा है। आधिकारिक अनुमति न मिलने के बावजूद  किसानों द्वारा आनुवंशिक रूप से सम्वर्धित बीजों जैसे, मक्का, सोयाबीन, सरसों, बैंगन और एच.टी. कपास  की फसलों पर रोक के बावजूद बड़े पैमाने पर बुवाई की जा रही है। जून 2021 मे  यूरोपीय आयोग के रैपिड अलर्ट सिस्टम'को एक फ्रांसीसी कंपनी, 'वेस्टहोव' के आटे में जीएम सामग्री मिली। यह आटा भारत से आयातित चावल से बनाया गया था। फलस्वरूप  कंपनियों द्वारा खाद्य उत्पादों को वापस मंगवाना पड़ा जिसमें कैंडी  की दिग्गज कंपनी मार्स व्रिगली भी शामिल है। स्पष्ट  है कि भारत में  जीएम- चावल की खेती की अनुमति न होने के बावजूद जीएम चावल की विभिन्न किस्मों का सीमित क्षेत्र में परीक्षण हो रहा है। इन परीक्षणों के साथ-साथ एचटी-कपास, बीटी-बैंगन और जीएम-सोयाबीन की अवैध खेती से "दूषण या रिसाव" होता रहता है, जो खेतों और हमारे भोजन तक पहुँच रहा है। वर्ष 2018 के  एक अध्ययन के अनुसार देश में वृहत् स्तर पर अवैध रूप से जीएम आयातित खाद्य पदार्थ उपलब्ध थे और उनकी बिक्री खुले आम हो रही है, जिसमें शिशु आहार, खाद्य तेल और नमकीन के पैकेट शामिल हैं। इसके दृष्टिगत अप्रैल 2018 में, भारत में 5 प्रतिशत या अधिक जीएम सामग्री वाले सभी खाद्य उत्पादों के ऊपर तत्संबंधी लेबल लगाना अनिवार्य बनाया गया। इसे नवंबर 2021 में घटाकर  1 प्रतिशत कर दिया गया। अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) और जीएम-फ्री इंडिया  गठबंधन सदृश संगठनों का मानना है कि  जीन-एडिटिंग से प्रेरित छोटे-छोटे बदलाव अभी भी अप्रत्याशित विषाक्तता और जीन-संपादित पौधों की एलर्जी में वृद्धि सदृश बड़े और खतरनाक परिणाम दे सकते हैं।  इन सब अवैध परीक्षण, खेती और प्रयोगों पर कठोरतम कार्यवाही की आवश्यकता है।

            वैज्ञानिकों के अनुसार जी एम फसलों से उत्पन्न खतरों पर  नियंत्रण मुश्किल है। जीएम प्रक्रिया से गुजरने वाले पौधे का जैव रसायन बुरी तरह अस्त व्यस्त हो जाता है,  जिससे उसमें नए विषैले या एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों का प्रवेश हो सकता है व उसके पोषक गुण कम या बदल सकते हैं। बीटी कपास या उसके अवशेष खाने के बाद या ऐसे खेत में चरने के बाद अनेक भेड़-बकरियों के मरने व पशुओं के बीमार होने के समाचार मिले हैं। इस दिशा में शोध करने वाले डॉ. सागरी रामदास के अनुसार आंध्रप्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक व महाराष्ट्र में ऐसे कई मामले सामने आए हैं। हरियाणा में दुधारू पशुओं को बीटी कपास के बीज व खली खिलाने के  बाद उनमें दूध कम होने व प्रजनन की गंभीर समस्याएं आने के प्रकरण सामने आये हैं। इस विषय पर  गहन जानकारी रखने वाले भारत के वैज्ञानिक प्रो. पुष्प भार्गव के अनुसार लगभग 500 शोध प्रकाशनों ने प्रमाणित किया है कि 'जीएम' फसलों के मनुष्यों, अन्य जीव- जंतुओं व पौधों के स्वास्थ्य पर हानिकारक असर पड़ता है। वस्तुत: जी एम  फसलों पर विवाद मूल रूप से वैचारिक है। भले ही यह उपज और कृषि अर्थशास्त्र के पारंपरिक कृषि मानदंडों पर कम उतरता है परंतु सस्टेनेबल डेवलपमेंट के मूल सिद्धान्तों से मेल नहीं खाता। एक तरफ जहां हम पर्यावरण  और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक खेती और आर्गैनिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं, दूसरी तरफ जीएम (जेनिटिकली मोडीफाइड ) फसलों को अभी भी इन मानदंडों पर खरा उतरना और अपना औचित्य सिद्ध करना शेष है। 

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