चावल मूल्य वृद्धि के मायने

कुछ महीनों  से देशी- विदेशी बाजारों में चावल के मूल्यों में जबरदस्त तेजी देखने को मिल रही है। आजकल चावल का भाव लगभग पंद्रह साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। पारंपरिक बासमती धान की कीमतें 6 हजार रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हैं, जबक‍ि पूसा 1121 और 1718 जैसी अन्य प्रीमियम किस्म के धान का रेट 45 सौ रुपये प्रति क्विंटल  हैं। सोनम चावल भी लगभग  25 सौ रुपए प्रति कुंतल के आसपास बिक रहा है। 23 अक्टूबर 2023 को लंबे दाने वाले बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 950 डॉलर प्रति टन करने के केंद्र सरकार के निर्णय के बाद उत्तर भारतीय राज्यों के अनाज बाजारों में बासमती धान की कीमतों में अचानक उछाल आ गया। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO ) का कुल चावल प्राइस इंडेक्स जुलाई 2023  में एक महीने की तुलना में 2.8 फीसदी बढ़कर औसतन 129.7 अंक हो गया। यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पत्रिका ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार थाईलैंड व्हाइट राइस ( 5% ब्रोकन) में पिछले दो हफ्ते में 57 डॉलर की तेजी आई है और यह 640 डॉलर प्रति टन पहुंच गई है। अगस्त 2023 में जब भारत ने चावल के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाया तो चावल की कीमत अक्टूबर 2008 के बाद उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। स्पष्ट है कि भारत के चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से अन्य देशों खासकर थाईलैंड के चावल की मांग बढ़ गई है। ब्राजील और फिलीपींस जैसे देशों में भी थाईलैंड के चावल की काफी डिमांड आ रही है। देश में बढ़ती कीमत और स्थानीय करेंसी के मजबूत होने से वियतनाम में चावल के स्टॉक में गिरावट से भी थाईलैंड को लाभ हो रहा है। 

    अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की बढ़ती कीमतों के पीछे एक महत्वपूर्ण  कारण है चावल की बढ़ती मांग। पूरे विश्व विशेष कर के एशिया क्षेत्र में, लगभग 3.5 बिलियन लोगों के लिए चावल मुख्य भोजन एवं आजीविका का प्रमुख साधन है। वैश्विक स्तर पर, चावल का उत्पादन 900 मिलियन निर्धन व्यक्तियों को भोजन प्रदान करती है। हालांकि इरान से संबंध बिगड़ने के बाद वहां सीधे चावल नहीं आ रहा है परंतु अभी भी इराक के रास्ते चावल वहां जा रहा है। सऊदी अरब और यमन में भी भारतीय  चावल  की डिमांड  बढ़ी  है। पाकिस्तान में फसल खराब होने के कारण भारतीय चावल की मांग बढ़ी है। बंगलादेश  और नेपाल में भी सेवा और कामना चावल की मांग तेजी से बढ़ी है। चीन चावल का सबसे  बड़ा उत्पादक होने के बावजूद भारत से ब्रोकन राइस आयात करता है। इससे वहां राइस प्रोडक्ट बनाया जाता है, जाहिर है  कि भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। चावल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है। ऐसे में जब भारत ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है, जिसके  चलते भी कीमतों में वृद्धि हुई है।कुछ चावल उत्पादक देशों में अनियमित मौसम की स्थिति के कारण भी पैदावार का कम होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है,जिसकी वजह से आपूर्ति में अधिक गिरावट आई है। अल-नीनो की वजह से एशिया में अनाज उत्पादन कम हुआ है। वर्ष 2023-24 में थाईलैंड के धान के उत्पादन में लगभग 6% की कमी होने की आशंका है। वियतनाम ने तो सूखे की आशंका को देखते हुए किसानों को नई फसल लगाने को कहा है। भारत में भी गत  सीजन के 136 मिलियन टन की तुलना में चावल उत्पादन के 134 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया गया है। बाढ़ के कारण उत्तरी भारत में धान का उत्पादन प्रभावित होने और कम बारिश होने के कारण चालू खरीफ की बुआई के दौरान अनाज का रकबा कम होने की आशंका से भी कीमतें बढ़ी हैं। व्यापारियों का एक वर्ग छत्तीसगढ़  में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाकर 2,800 रुपये प्रति क्विंटल करने के कदम को जिम्मेदार ठहरा रहा है। अब तो वहां नयी सरकार बनने के बाद तो 3100 रुपए प्रति कुंतल धान खरीदा जा रहा है ,जिसका असर घरेलू मूल्य पर पड़ा है। गैर- बासमती चावल के नेपाल, मलेशिया, कैमरुन सहित 14 एशियाई और अफ्रीकी देशों को 2.77 एल एम टी चावल के निर्यात आदेश का भी असर पड़ा है। हरियाणा की कापरेटिव संस्था हैफेड के भी धान खरीद में उतरने से मंडी में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी है, जिससे भी भाव में तेजी आई है। स्वाभाविक रुप से बाजार में जितनी प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी किसानों को फसल का उतना अच्छा दाम मिलेगा। पिछले साल हैफेड ने 85 हजार टन धान खरीदा था और 65 हजार टन चावल का निर्यात किया था। चूंकि रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण इस समय उर्वरक का अंतरराष्ट्रीय बाजार अस्थिर है, इसलिए रोपाई के सीजन के दौरान उर्वरक की उपलब्धता की चिंता अंतरराष्ट्रीय  स्तर पर थी। इसके चलते भी धान की रोपाई पर असर पड़ा है और आशंका है कि कम क्षेत्र में धान की फसल लगाई गई है। सितंबर 2022 को पशुधन एवं इथेनॉल उत्पादन सेक्टर की स्थानीय कमी को दूर करने के लिये  टूटे चावलों के निर्यात को भी रोक दिया गया था। अनाज की बढ़ती कीमतें और 2023-24 फसल वर्ष में अपर्याप्त बारिश के कारण चावल उत्पादन पर चिंता और उसके बाद बाढ़ संभावित कारण के चलते भारत सरकार ने इथेनॉल फैक्ट्रियों को चावल देने पर रोक लगा दी, तो उन्होंने खुले बाजार से खरीदना शुरू कर दिया, जिसका असर मूल्यों पर पड़ा। इथेनॉल मिश्रण के लिए फैक्ट्रियों को प्रतिवर्ष लगभग 1.5 मिलियन टन एफसीआई चावल की आवश्यकता होती है। 

        पिछले एक वर्ष में चावल की खुदरा कीमतों में लगभग 13 से 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। चावल की वार्षिक मुद्रास्फीति दर पिछले दो वर्षों से 12 प्रतिशत के आसपास चल रही है और पिछले कुछ वर्षों में इसमें वृद्धि हो रही है। बढ़ते मूल्य पर नियंत्रण के लिए सरकार का प्रथम  प्रयास बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने को लेकर  है। इसके लिए भारतीय  खाद्य निगम ने खुला बाजार बिक्री योजना (घरेलू) के अंतर्गत ई-नीलामी में चावल की मात्रा बढ़ा दी है। इसके  अंतर्गत 29 रुपये प्रति क्विंटल चावल बेचा जाता है। खुला बाजार बिक्री योजना में भाग लेने वाले बोलीदाताओं से संबंधित नियमों को भी लचीला बनाया गया है। ऐसी पहल जमाखोरी रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि बोलीदाता द्वारा खरीदा गया अनाज बाजार में जारी किया जा सके। मुनाफाखोरों पर रोक लगाने के लिए प्राइस मानिटरिंग सेल हरेक जनपद में बनाए गए हैं और सभी को निरंतर स्टाक घोषणा और निरीक्षण के आदेश है। चुनावी वर्ष होने के चलते सरकार  चावल सहित अन्य खाद्यान्न के बढ़ते मूल्य को लेकर चिंतित हैं और उसको नियंत्रित करने के लिए दृढ़संकल्पित है।

         बढ़ते चावल मूल्य का असर न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत खरीदे जा रहे सरकारी चावल पर पड़ा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्तमान खरीफ मार्केटिंग सीजन के शुरूआती तीन महीनों में यानी अक्टूबर-दिसम्बर 2023 के दौरान भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) तथा उसकी सहयोगी प्रांतीय एजेंसियों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर कुल मिलाकर 299.33 लाख टन चावल (इसके समतुल्य धान) की खरीद की गई जो पिछले सीजन की समान अवधि की खरीद  347.87 लाख टन से 14 प्रतिशत कम है। सरकार का लक्ष्य 2023-24 सीज़न में ख़रीफ़ से उगाई जाने वाली फसल से 521.27 लाख टन चावल खरीदने का है, कम खरीद में योगदान देने वाले कारकों में प्रमुख उत्पादक राज्यों में पिछले साल मानसून की कमी, 2023 में शुष्क अगस्त का धान की फसलों पर प्रभाव, दोबारा बुआई के कारण देरी से आगमन और कुछ क्षेत्रों में देर से फसल शामिल है। केंद्र ने धान के एमएसपी में 7% बढ़ोतरी की घोषणा की, जो सामान्य किस्म के लिए 2,183 रुपए प्रति क्विंटल और 'ए' ग्रेड के लिए 2,203 रुपए प्रति क्विंटल है। सरकार अगले साल आम चुनाव से पहले खाद्य महंगाई बढ़ने को लेकर चिंतित हैं, इसीलिए भारत की ओर से कड़े एक्सपोर्ट प्रतिबंध, अच्छी फसल और पर्याप्त सरकारी भंडार के बावजूद चावल की कीमत बढ़ रही है। 

        चावल की बढ़ती कीमत का कई देशों की खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। चावल दुनिया भर के लाखों लोगों का मुख्य भोजन है और ऊंची कीमतें लोगों के लिए इस आवश्यक भोजन को वहन करना अधिक कठिन बना सकती हैं। भारत, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और पाकिस्तान चावल के प्रमुख निर्यातकों में से हैं, जबकि, चीन, फिलीपींस, बेनिन, सेनेगल, नाइजीरिया और मलेशिया प्रमुख आयातक हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल की औसत निर्यात कीमतों में पिछले एक साल में अचानक वृद्धि देखी गई है, क्योंकि यह 2021 और 2022 में 850-900 डॉलर प्रति टन के मुकाबले लगभग 1,050 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। वैश्विक चावल निर्यात में भारत की 40 फीसदी हिस्सेदारी है। कई देशों में खाद्य संकट खड़ा हो सकता है। भारत सबसे ज्यादा गैर-बासमती सफेद चावल थाईलैंड, इटली, स्पेन, श्रीलंका और संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात करता है।देश से निर्यात होने वाले कुल चावल में गैर-बासमती सफेद चावल की हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी है। दक्षिण एशियाई देशों पर भारी असर पड़ेगा, जो भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार हैं, खासकर चावल के लिए। अफ्रीका का 80 से 90% चावल आयात भारत से ही  होता है। अपने कम कीमत और आर्थिक गुणवत्ता की वजह से, उप-सहारा अफ्रीका, भारतीय ग़ैर-बासमती सफेद चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है। ऐसे में निश्चित रूप से निर्यात पर प्रतिबंध की वजह से, वैश्विक बाज़ार को चावल कमी का सामना करना पड़ेगा, जिस वजह से कीमतों में भारी वृद्धि  होगी और आम जन की थालियों से चावल दूर होता जाएगा। भारत के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञो द्वारा आलोचना भी की गई है, लेकिन देश के लिए अपनी खाद्य सुरक्षा सर्वोपरि है। स्वाभाविक रूप से चावल के पोषण का एक महत्वपूर्ण घटक होने के कारण एशियाई अफ्रीकी देशों में गरीबों के कुपोषण में वृद्धि की संभावना है। हालांकि इस बढ़ती कीमतों का लाभ उन देशों में उठाया जा रहा है, जहां सरप्लस चावल उपलब्ध है और उन्हें चावल निर्यात में लाभ हो रहा है। 

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